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Hast mudra vigyan/हस्त मुद्रा विज्ञान

Sudhir Arora by Sudhir Arora
July 3, 2021
Reading Time: 1 min read
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Hast mudra vigyan/हस्त मुद्रा विज्ञान

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हस्त मुद्रा विज्ञान

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मानव जीवन बड़ेे भाग्य से मिलता है। मानव शरीर प्रकृति की अनुपम भेंट है। विभिन्न क्षेत्रों में आश्चर्यजनक खोज हो रही है। लेकिन मानव शरीर के बारे में बहुत कुछ जानना और समझना बाकी है।

हमारे श्रेष्ठ ऋषि-मुनियों ने मानव शरीर पर काफी अनुसंधान किये। उन्होंने शरीर के प्रत्येेक अंग-प्रत्यंग पर सूक्ष्म रूप् से कार्य करके बताया कि मनुष्य शरीर का प्रत्येक अंग एक विशेष ऊर्जा से भरपूर है।

हमारा हाथ विशेष ऊर्जा से भरा पड़ा है। मुद्रा विज्ञान ने बहुत पहले सिद्ध कर दिया था, कि हमारे हाथ की प्रत्येक उंगली से अलग-अलग प्रकार का विद्युत प्रवाह होता है।

पाँच उंगलियां पाँच महाभूतों का संचालन करती है।

 1 :- अंगुष्ठ में अग्नि तत्व।
2 :- तर्जनी में वायु तत्व।
3 :- मध्यमा में आकाश तत्व।
4 :- अनामिका में पृथ्वी तत्व।
5 :- कनिष्ठा में जल तत्व।

प्रत्येक उंगली को एक विशेष प्रकार से मिलाने से विद्युत प्रवाह को घटाया या बढ़ाया जा सकता है।

शरीर में किसी तत्व विशेष की अधिकता या न्यूनता होते ही उसमें विषमता या विकृति उत्पन्न होने लगती है। इस विकृति को रोग, व्याधि कहते है। रोग के शमन के लिये मुद्राओं का प्रयोग किया जाता है। मुद्रा विशेष के प्रयोग से तत्वों को साम्य अवस्था में लाने से रोग शान्त हो जाता है।

हाथ की उंगलियों विशेष द्वारा मुद्रा प्रतिष्ठित होती है। ये मुद्राएँ हमारे पूरे शरीर एवं मन को नियन्त्रित करती है। मुद्राएँ मानव शरीर की सूक्ष्म शक्तियों को जगाने की अदभुत सामथ्र्य रखती हैं। मानव शरीर को स्वस्थ रखने में मुद्राएँ विशेष रूप से सहायक है।

मानव शरीर में विजातीय तत्व के ठहरने से शरीर रोगग्रस्त हो जाता है। विजातीय तत्व को शरीर सदैव बाहर निकालने का प्रयत्न करता है, यही रोग की स्थिति है।

मानव शरीर की रचना इस प्रकार की है कि उसमें विजातीय तत्व लम्बे समय तक ठहर नहीं सकते। यदि विजातीय तत्व शरीर के अन्दर ठहर जाता है, तो शरीर में रोग विशेष उत्पन्न हो जाता है। यह रोग एक प्रकार की सूचना है, कि शरीर में विजातीय तत्व एकत्र हो गया है, उसे निकालने की व्यवस्था करें। यदि निकालने की व्यवस्था नहीं हो पाती है, तो शरीर क्षीण होकर अस्वस्थ बना रहता है। इस भाषा को समझकर यदि हम उचित मुद्रा का प्रयोग करते हैं, तो मानव शरीर पुनः स्वस्थ हो जाता है। वास्तव में मुद्राएँ शरीर में ठहरे हुए विजातीय तत्वों को बाहर निकालने एवं तत्वों को संतुलित करने का कार्य करती है।

शरीर में जितने प्रकार की आकृतियां होती हैं, उतनी ही मुद्राएँ बन जाती हैं। इस प्रकार हजारों मुद्राएँ बन जाती हैं। हमारा उद्देश्य मानव शरीर को स्वस्थ रखना है। अतः हम यहाँ पर कुछ विशेष मुद्राओं का ही वर्णन करेगें, जिनके सदुपयोग के द्वारा रोग विशेष का शमन होकर स्वस्थ शरीर का निर्माण होता हैं।

पंचतत्वों में असंनुलन होने पर शरीर रोग ग्रस्त हो जाता है, अतः हमारा उद्देश्य शरीर में पांचो तत्व-पृथ्वी,जल,अग्नि,वायु,आकाश, में संतुलन बनाये रखना है।

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हाथ की आकृति एवं तत्व : –ध्यान देने योग्य बातें :-

1:- अंगूठे के अग्र भाग पर अंगंलियों के अग्र भाग को मिलाने से तत्व सम अवस्था में आ जाता है।

2:- अंगूठे के मूल में अंगुली के अग्रभाग को दबाने से तत्व विशेष में कमी आने लगती है।

3:- पुरुष, महिला, रोगी या निरोगी कोई भी इन मुद्राओं का उपयोग कर सकता है।

4 :- मुद्रा दोनों हाथों से करनी चाहिए। दाहिने हाथ की मुद्रा से शरीर के बायें भाग को लाभ मिलता है। बायें हाथ की मुद्रा से शरीर के
दाहिने भाग को लाभ मिलता है।

5 :- अंगूठे एवं अंगुलियों का स्पर्श सम्यक् हो तथा आपस में हल्का सा दबाव भी बना रहें तथा शेष अंगुलियों सीधी रहें।

6 :- भोजन के तुरन्त बाद किसी मुद्रा का प्रयोग न करें। केवल गैस बनने या अफारा आने पर वायु मुद्रा की जा सकती है।

7 :- प्राण मुद्रा, अपान मुद्रा, पृथ्वी मुद्रा, ज्ञान मुद्रा, को अधिक समय तक भी किया जा सकता है। वैसे 45 मिनट से 60 मिनट तक मुद्रा करने
से यथेष्ट लाभ प्राप्त किया जा सकता है।

8 :- अन्य सभी मुद्राओं को लाभ प्राप्त होने तक ही करें। लाभ प्राप्त होने पर उपयोग बन्द कर दें।

9 :- वायु मुद्रा, शून्य मुद्रा, लिंग मुद्रा, का उपयोग रोग होने पर अर्थात् आवश्यकता हो तभी करें।

10 :-किसी अन्य चिकित्सा या औषधि का सेवन कर रहे हों, तो उसके साथ-साथ मुद्राओं के प्रयोग से लाभ अवश्य उठाएं।

11 :-मुद्राओं के प्रयोग से तत्वों मे परिवर्तन, संवर्धन, विघटन एवं संतुलन पैदा होता है।

12 :-प्राण एवं अपान मुद्रा का प्रयोग प्राण-अपान को सम रखने हेतु करना सर्वोत्तम है। इनके प्रयोग से नाडी शोधन के साथ-साथ शरीर
स्वस्थ रहता है।

13़:- रोग शान्त कर शरीर को स्वस्थ बनाने हेतु अधिकांश मुद्राएँ हर स्थिति में चलते-फिरते, सोते समय, जागते समय, लेटकर, उठते-बैठते,
किसी भी स्थिति में की जा सकती हैं। मुद्राओं के प्रभाव एंव लाभ अवश्य प्राप्त होगा।

हमारे शरीर को स्वस्थ रखने के लिए मुख्यतय 20 मुद्राएँ है। जो हमारे पूरे शरीर को स्वस्थ रखने मे सक्ष्म है।

1 =ज्ञान मुद्रा, 2 =वायु मुद्रा, 3 =आकाश मुद्रा, 4 =शून्य मुद्रा, 5 =पृथ्वी मुद्रा,

6 =सूर्य मुद्रा, 7 =इन्द्र मुद्रा, 8 =जलोदर मुद्रा, 9 =प्राण मुद्रा, 10 =अपान मुद्रा,

11 =समान मुद्रा(मुकुल मुद्रा), 12 =व्यान मुद्रा, 13 =उदान मुद्रा, 14 =अपान वायु मुद्रा,

15 =लिंग मुद्रा, 16 =शंख मुद्रा,17 =आदित्य मुद्रा, 18 =कुबेर मुद्रा, 19 =सन्धि मुद्रा, 20 =महाशीर्ष मुद्रा,

 

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