* मस्त फकीर *
एक बार का जिक्र है, एक महात्मा ने कुछ भजन-बन्दगी की। भजन-बन्दगी के बाद एक दिन उसने घोषणा कि जो मेरे दर्शन करेगा वह सीधा स्वर्ग में जायेगा। अतएव लोग उसको पालकी में बिठा कर लिये जा रहे थे और बे-शुमार स्वर्ग के इच्छुक लोग उसके दर्शनों को आ रहे थे। रास्ते में एक मस्त फकीर बैठा हुआ था, शोर सुन कर उसने पूछा कि यह शोर कैसा है ? किसी ने कहा कि अमुक महात्मा आ रहा है, उसकी घोषणा है कि जो उसके दर्शन करेगा, सीधा स्वर्ग को जायेगा।
इतना सुनना था कि फकीर सड़क की ओर पीठ करके मुँह लपेट कर बैठ गया। जब स्वर्ग पहुँचने वाले महात्मा की पालकी वहाँ पहुँची तो वह हैरान रह गया कि यह कौन है जो मुझे देख कर मुँह लपेट कर बैठ गया है, जबकि सारी दुनिया मेरे दर्शनों को आ रही है। यह सोच कर कहता है कि पालकी को खड़ा कर दो। फिर पालकी से उतर कर कहता है, भाई! तूने सिर क्यों लपेटा हुआ है ? फकीर ने उत्तर दिया, मैं तेरा मुँह नहीं देेखना चाहता। मुझे जाना है सचखण्ड को और तू देता है स्वर्ग। मैं तेरा मुँह क्यों देखूँ। तब पालकी वाले महात्मा ने कहा, आज से तू मेरा मुर्शिद है। इसलिए ख्वाजा हाफिज कहते हैः
इश्क यारम मरा ब-कुफ्रो ब-ईमां चहकार,
तिशनाए दर्दम मरा ब-वसलो ब-हिजरा चहकार।
मैं उसका आशिक हूँ। मुझे मोमिन बनने की जरूरत नहीं। मैं न कुफ्र माँगता हूँ, न ईमान और कुछ और।
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* गुरु नानक साहिब और काजी रुकनुद्दीन *
गुरु नानक साहिब जब काबा ( मक्का शरीफ ) में काजी रुकनुद्दीन से मिले, तो उसने पूछा कि खुदा का महल कैसा है ? उसकी कितनी खिड़कियाँ हैं ? कितने बुर्ज हैं ? कितने किंगरे हैं ? अब यह कोई फिजूल बात नहीं, विचार करने योग्य बात है। इस शरीर के बारह बुर्ज हैं ( तीन दाहिनी बांह के जोड़; तीन बाई बांह के जोड़ और दोनों टाँगों के तीन-तीन जोड़, इस प्रकार कुल हुए बारह ), नौ दरवाजे हैं ( बीस नाखून दो हाथों और दो पैरों के, और बत्तीस दाँत ) दोनों आँखें दो खिड़कियाँ हैं। महल बहुत अजीब और सुन्दर है। यह सब कुछ समझा कर गुरु साहिब कहते हैः
ऊचे खासे महल ते देवे बांग खुदाए।
कि आपके शरीर के अन्दर खुदा बाँग दे रहा है। यह शरीर खुदा की मसजिद है, यही ठाकुरद्वारा है। हम बाहर माथे रगड़ते हैं। कभी किसी को बाहर मिला है ? किसी को नहीं। बाँग तो हरएक के अन्दर हो रही है, लेकिन लोग सो रहे हैंः
सुत्ते बाँग न सुन सकण रहिआ खुदा जगाए।
वह मालिक तो जगाना चाहता है लेकिन कोई जागता ही नहीं। फिर कहते हैः
सुत्ती पई निभाग सब सुने न बांगां कोए।
वे लोग बदकिस्मत हैं जो रात को जाग कर उस बाँग को नहीं सुनतेः
जो जागे सोई सुणे साई संधी सोए।
जो जागता है, उसकी सुरत शब्द में लगती है, वही मालिक की आवाज अर्थात नाम को सुनता है।
*राधा स्वामी जी *