9 हस्त मुद्राओं द्वाराअपने जीवन में आलौकिक एवं आध्यात्मिक शक्ति को बढ़ाए
मानव जीवन बड़ेे भाग्य से मिलता है। मानव शरीर प्रकृति की अनुपम भेंट है। विभिन्न क्षेत्रों में आश्चर्यजनक खोज हो रही है। लेकिन मानव शरीर के बारे में बहुत कुछ जानना और समझना बाकी है।
हमारा हाथ विशेष ऊर्जा से भरा पड़ा है। मुद्रा विज्ञान ने बहुत पहले सिद्ध कर दिया था, कि हमारे हाथ की प्रत्येक उंगली से अलग-अलग प्रकार का विद्युत प्रवाह होता है।
पाँच उंगलियां पाँच महाभूतों का संचालन करती है।
1 :-अंगुष्ठ में अग्नि तत्व।
2 :-तर्जनी में वायु तत्व।
3 :-मध्यमा में आकाश तत्व।
4 :-अनामिका में पृथ्वी तत्व।
5 :-कनिष्ठा में जल तत्व।
प्रत्येक उंगली को एक विशेष प्रकार से मिलाने से विद्युत प्रवाह को घटाया या बढ़ाया जा सकता है।
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1 :- ज्ञान मुद्रा:-
तर्जनी शीर्ष और अंगूठे के अग्रभाग को मिलाएं। बाकी तीनों उंगलियां सीधी रखें। सुखासन या पद्मासन में बैठकर इस मुद्रा को करने से बुद्धि का विकास होता है। याद-दाशत वापस लाने में सहायक है।स्वास्थ लाभ हेतु चलते-फिरते, उठते-बैठते, सोते जागते, इस मुद्रा को करने से लाभ ही लाभ प्राप्त होता है। 15 से 45 मिनट तक करने पर अवश्य लाभ मिलता है।
ज्ञान मुद्रा से होने वाले लाभ:-
1 :- स्मरण शक्ति का विकास होता है।
2 :- मन एकाग्र होता है। चिड़-चिड़ापन, एवं क्रोध शान्त होता है।
3 :- तनाव दूर होता है। तनाव से होने वाले रोग जैसे-रक्तचाप, हृदय रोग, सिरदर्द, माइग्रेन आदि में लाभ मिलता है।
4 :-अनिद्रा रोग में लाभकारी है।
5 :-इस मुद्रा से दांत दर्द, त्वचा रोग शान्त होते है। चेहरे की आभा बढ़ती है।
6 :- नशा छुड़ाने में सहायक है
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2 :- वायु मुद्रा:-
तर्जनी अंगुली को मोडकर अंगूठे के मूल में स्थापित करने से एवं अंगूठे को तर्जनी अंगुली के ऊपर डालने से वायु मुद्रा बनती है। शेष अंगुलियां सीधी रहनी चाहिए।वज्रासन में बैठकर भोजन के पश्चात 5 मिनट इस मुद्रा को करने से अपच एवं वायु विकार में लाभ मिलता हैं।
वायु मुद्रा से होने वाले लाभ:-
1 :- सभी प्रकार के वात रोगों में लाभकारी है। कमर दर्द, गर्दन दर्द, गठियाँ , घुटनों का दर्द, एड़ी दर्द आदि में लाभ
मिलता है।
2 :- हाथ-पैरों का कम्पन, अंगो में सुन्न होना अधरंग आदि रागों में लाभ करता हैं।
3 :- असाध्य और चिरकालिक वायुरोगों में इसके साथ प्राण मुद्रा का भी प्रयोग करना चाहिए।
4 :- दर्द ठीक हो जाने पर मुद्रा का प्रयोग बन्द कर दें।
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3 :- आकाश मुद्रा:-
अंगुठे के अग्रभाग को मध्यमा अंगुली के अग्रभाग से मिलाने से, शेष तीनों अंगुलियां सीधी रखने से, आकाश मुद्रा बनती है।
आकाश मुद्रा से होने वाले लाभ:-
1 :- सुनने की शक्ति का विकास होता है।
2 :- कान का बहना, कर्ण पीड़ा आदि कानों के दोष दूर होते है।
3 :- हृदय रोग एवं उसके दोषों को दूर करने में सहायक है।
4 :- आकाश मुद्रा से शून्यता समाप्त होती है।
5 :- कैल्शियम की कमी दूर होकर हड्डियां मजबूत होती है।
विशेष लाभ:-
जबड़े की अकड़न में इस मुद्रा से तुरंत लाभ मिलता है।
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4 :- शून्य मुद्रा:-
मध्यमा उंगुली को मोडकर अंगूठे के मूल में लगाकर अंगूठे से दबाएं। शेष तीनों अंगुलियां सीधी रखें।
शुन्य मुद्रा से होने वाले लाभ:-
1 :- शरीर में किसी भी अंग में सुन्नपन आ जाए तो इस मुद्रा को करने से रक्त संचार होकर लाभ मिलता है।
2 :- कानों में सांय-सांय की आवाज हो तो इस मुद्रा से लाभ मिलता है।
3 :- कानों में दर्द होने पर इस मुद्रा से तुरंत लाभ मिलता है।
4 :- कानों का बहना, कानों में मैल होना तथा बहरापन में इस मुद्रा से लाभ मिलता है। प्रतिदिन 45 मिनट इसका प्रयोग करें।
5 :- गले के रोग, आवाज का बैठना तथा थायरायड सम्बन्धी रोग ठीक हो जाते है।
6 :- मसूडे मजबूत होते हैं तथा पायरिया ( मसूडों में खून आना ) रोग ठीक हो जाता हैं।
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5 :- पृथ्वी मुद्रा:-
यह मुद्रा अनामिका अंगुली के अग्रभाग को अंगूठे के अग्रभाग से मिलाकर शेष तीनों अंगुलियां सीधी रखने से बनती है।
पृथ्वी मुद्रा से होने वाले लाभ:-
1 :- शरीर में हड्डियों एवं मांसपेशियों को मजबूत करती है। इसको करने से वजन बढ़ता है।
2 :- शरीर में विटामिन्स को बढ़ाती है। पाचन शक्ति ठीक होती है।
3 :- सर्दी-जुकाम से बचाव होता है। कार्यक्षमता बढ़ती है।
4 :- शरीर में नयी ताजगी, नया जोश एवं स्फूर्ति आती है। रक्ताल्पता ठीक हो जाता है।
विशेष:- इस मुद्रा को करने से लम्बाई बढ़ती है। तथा शरीर एवं चेहरे की सुन्दरता बढ़ती है। ……………………………………………………………………………………………………………………………………………………
6 :- सूर्य मुद्रा:-
अनामिका के शीर्ष को अंगूठे के मूल में लगाकर अंगूठे से अनामिका को हल्के से दबा कर शेष तीनों अंगुलियों को सीधे रखने से यह मुद्रा बनती है।
इस मुद्रा को एक बार में 8 से 15 मिनट तक ही करें। दिन में दो बार कर सकते हैं।
सूर्य मुद्रा से होने वाले लाभ:-
1 :- वजन को संतुलित करती है। हाइपो थाइरायड से होने वाले मोटापे को ठीक करती है।
2 :- जिन्हें सर्दी ज्यादा लगती है, हाथ-पैर ठण्ड़े रहते हैं। उन्हें इस मुद्रा से लाभ होता है।
3 :- दमा, खाँसी, सर्दी, जुकाम, सायनस के रोग ठीक होते है।
4 :- सूर्य मुद्रा से मोमियाबिन्द ठीक होता है। आँख की रोशनी बढ़ती है।
5 :- सिर दर्द में तुरन्त लाभ होता है। तनाव दूर करती है।
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7 :- इन्द्र मुद्रा:-
कनिष्ठा अंगुली के अग्रभाग को अंगूठे के अग्रभाग से मिलाकर शेष तीनों अंगुलियों का सीधा रखने से यह मुद्रा बनती है।
इन्द्र मुद्रा से होने वाले लाभ:-
1 :- इस मुद्रा के प्रयोग से त्वचा कोमल, मुलायम व स्निग्ध बनती है। चेहरे पर झुर्रियां नहीं पड़ती, यौवन लम्बे समय तक बना रहता है।
2 :- यह मुद्रा प्यास का शमन करती है। शरीर में जल तत्व की कमी नहीं होने पाती।
3 :- चर्म रोग ठीक हो जाता है। रक्त विकार दूर होता है। बार-बार पेशाब आने पर इस मुद्रा में लाभ होता है।
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8 :- जलोदर मुद्रा:-
कनिष्ठा अंगुली मोडकर अंगूठे के मूल में लगाकर अंगूठे से दबाकर शेष तीनों अंगुलियां सीधी रखने से यह मुद्रा बनती है।
जलोदर मुद्रा से होने वाले लाभ:-
1 :- पेट में पानी भर जाये, फेफडों में पानी भर जाने पर, जलोदर रोग में इस मुद्रा में लाभ होता है।
2 :- हाथ-पैरों में पानी भर कर सूजन हो जाए, शरीर में कहीं भी सूजन हो जाए इस मुद्रा से लाभ होता है।
3 :- नजले-जुकाम मेें जब नाक से पानी बह रहा हो, साइनस के रोग में, आंखों से पानी आ रहा हो, बलगम आने पर इससे लाभ होता है।
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9 :- प्राण मुद्रा:-
कनिष्ठा एवं अनामिका अंगुलियों के अग्रभाग को अंगूठे के अग्रभाग मे मिलाकर शेष दो उंगलियों को सीधा रख कर यह मुद्रा बनती है।
प्राण मुद्रा से होने वाले लाभ:-
1 :- शरीर की रोग प्रतिरोधक शक्ति मजबूत होती है। जीवन शक्ति का विकास होता है।
2 :- नेत्र-ज्योति बढ़ती है। कैंसर रोग में लाभ करती है। तन-मन में स्फूर्ति, आशा एवं उत्साह का प्रवाह होता है।
3 :- मधुमेह रोग में अपान मुद्रा के साथ करें। तथा अनिद्रा रोग में ज्ञान मुद्रा के साथ करें।
4 :- कोमा में पड़े हुए व्यक्ति को प्राण मुद्रा कराकर तीनों अंगुलियों को टेप से फिक्स कर दें। 72 घंटे के अन्दर आशातीत लाभ होने की
संभावना होती है।
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