-: फ़क़ीर की गाँववालों को नसीहत :-
उत्तरी भारत के एक गाँव में एक बुजुर्ग फ़कीर रहते थे। गाँव के लोग अकसर उनसे सलाह लेने जाते थे। उस गाँव में आचानक एक बीमारी फैल गयी और गाँव के सारे मुर्गे-मुर्गियाँ और चूजे मर गये। गाँववाले फकीर के पास गये और कहा, हजरत हमारे गाँव के सब मुर्गे-मुर्गियाँ और छोटे-छोटे चूजे मर गये हैं, हम क्या करे ?
फकीर ने केवल इतना ही कहा, अच्छा हुआ, इसी में भलाई है।
कुछ दिनों के बाद कुछ ऐसी बीमारी फैली कि गाँव के सारे कुत्ते मर गये। गाँववाले फिर फकीर के पास गये और अर्ज की, हजरत, गाँव के सब कुत्ते मर गये हैं। अब कुत्तों के बिना, चोरों से गाँव की रखवाली कौन करेगा ? हम क्या करें ? फकीर ने फिर कहा, इसमें भी कोई भलाई ही होगी।
उस जमाने में दियासिलाई नहीं होती थी। गाँव में लोग आमतौर पर आग राख में दबाकर रखते थे। गाँव के कुत्ते मरने के कुछ समय बाद ऐसी जबरदस्त आँधी और बारिश आयी कि सारे गाँव की आग एकदम बुझ गयी। इस पर लोग और भी दुःखी हो गये। लोगों ने फकीर के पास जाकर कहा, हजरत ! अब तो सारे गाँव की आग भी बुझ गयी है। क्या किया जाये ? वे कहने लगे, यह तो मालिक की और भी दया है। लागों ने फकीर से पूछा, हजरत, इस में दया वाली कौन-सी बात है जब कि हमारे पास भोजन बनाने के लिए आग भी नहीं है ?
फकीर ने कहा, इंतजार करो और देखते जाओ। मालिक की मौज को समझना इतना आसान नहीं, धैर्य रखो।
लोगों ने इस बात को पसंद नहीं किया और दोबारा अर्ज की, हजरत! हमारे हक में प्रार्थना करो। उन्होंने जवाब दिया, अच्छा! एक दिन और ठहर जाओ, फिर अपने-आप पता चल जायेगा। लोगों ने विश्वास न करते हुए कहा, चलो चलें, यह तो इसी तरह कहता रहता है।
अभी एक दिन ही गुजरा था कि एक बादशाह कत्लेआम करता हुआ उस गाँव के पास से गुजरा तो बोला कि यहाँ पेड़ तो हैं पर न कुत्ते भौंकते हैं, न मुर्गे बाँग देते हैं, न धुआँ ही निकलता है। यहाँ कोई आबादी नहीं है। छोड़ो इसको, यह कह कर वह गाँव के बाहर से ही निकल गया।
अब गाँवालों को पता चला कि ऐसा सब कुछ क्यों हुआ। वे फकीर के पास गये और सच्चे दिल से उन का शुक्रिया अदा किया। फकीर ने कहा, भाइयो, शुक्र है कि आप सब कुशल हैं, जिन पर मालिक की दया हो, उनका कुछ बुरा नहीं हो सकता।
इसी लिए कहते हैं कि फकीरों की हर बात में रम्ज होती है। जो परमात्मा का हुक्म माने, वही उसका असली सेवक है, वही गुरमुख हैं।