* सतगुर की रहमत *
एक बहन किसी डेरे में अपने मुर्शिद के हुक्म अनुसार लंगर की सेवा करती थी। जाणी-जान सतगुरु के हुक्म अनुसार उसकी डेरे में हाजिरी हर रोज जरूरी थी और एक दिन उसका छोटा लड़का उम्र लगभग 7 साल, उसे तेज बुखार हो गया। उस बीबी ने बच्चे को दवाई देकर, अपनी सासू माँ के पास छोड़कर, और आप सतगुर की सेवा में चली गयी।
सेवा करते-करते मन ही मन अरदास करने लगी किहे सच्चे पातशाह ! ओ मेरिया मालिका, घर मेरा बच्चा बिमार है। मुझे आज जल्दी भेज देना, मेरे सतगुरू…!लेकिन मुर्शिद तो कामिल है, फिर उसकी लीला तो न्यारी ही होगी ।
जब वह बीबी आज्ञा लेने गयी तो सतगुर ने कहा :जाईऐ ! चाय बनाओ, संगत के लिए।
बिचारी चाय बनाने लग गई। चाय बना कर दुबारा आज्ञा लेने गई, तो गुरू ने हलवा (प्रसाद) बनाने को बोल दिया। हलवा बनाने लग गई।
सेवा करते रोते हुए, उस बहन को देख कर सतगुरु जी बोले :बीबी ! अब घर जाओ, यह वीर तुम्हें घर छोड़ देंगे।उस वीर ने बीबी को गाड़ी में बिठाया और घर की ओर चल पड़े। रास्ते भर रोती हुई और दोनों हाथ जोड़कर मुर्शिद का ध्यान करती हुई, घर की ओर जा रही थी। बार बार उसे अपने लड़के का भी ध्यान आ रहा था। जैसे ही घर पहुँची, क्या देखती है……कि उसका लड़का अपने दोस्त के साथ खेल रहा था और जोर-जोर से हंस कर बातें कर रहा था । फिर क्या था ? बीबी ने झट से उसे गले लगाया और पूछा :
बेटा कैसी तबियत है ?
तो लड़का बोला :
मम्मी ! आपके जाते ही यह फोटो वाले बाबा जी आये और शाम तक मेरे साथ खेले और आपके आने से थोड़ी देर पहले ही गये हैं। तबियत का तो पता ही नहीं चला। जैसे ही सतगुरु जी महाराज आए, मैं ठीक हो गया।
बीबी ने रोते हुए, अपने मुर्शिद का लाख-लाख शुक्र किया कि
औ मेरिया मालिका ! मुझ से थोड़ी सी सेवा करा के, आपने मेरा इतना बड़ा काम किया, कि मेरे परिवार की रखवाली की, शुक्र है मालिका ! तेरा शुक्र है…….!
गुरु की सेवा मे लगाया हुआ क्षण ( समय)कभी व्यर्थ नही जाता
चाहे वो साँसे हो चाहे वक्त!