* तीर-कमान अमानत *
एक ऋषि ने इतनी तपस्या की कि स्वर्ग के राजा इन्द्र को डर लगा कि कहीं उसका सिंहासन ऋषि न छीन ले। वह हाथ में तीर-कमान लेकर शिकारी का रूप धारण करके ऋषि की कुटिया पर आया और अर्ज़ की कि मैं किसी काम से जा रहा हूँ, मेरा यह तीर-कमान रख लो। थोड़ी देर में आकर ले जाऊँगा। ऋषि ने कहा कि मैं ऋषि! यह तीर-कमान! मेरा इसका सम्बन्ध क्या! इन्द्र ने खुशामद की कि कृपा करके रख लो! मैं अभी ले जाऊँगा। ऋषि ने कहा, मैं इसका ख़याल कैसे रखूँगा ? तब इन्द्र ने बड़ाई करनी शुरू की कि तू ऐसा है तू वैसा है। मुझ पर दया कर। जब बहुत बार कहा तो ऋषि ने मान लिया और कहा कि उस कोने में रख दो। इन्द्र तो तीर-कमान रख कर चलता हुआ, अब वापस किसे आना था ?
ऋषि पहले राजा था और तीर-कमान चलाना अच्छी तरह जानता था। इसलिये जब भजन से उठे तीर-कमान सामने दिखाई दे। रोज़-रोज़ देखने से तीर-कमान का ध्यान मन में पक्का होता गया। एक दिन कहता है, हम भी तीर चलाते थे। ज़रा चला कर तो देखें, किसी को मारूँगा नही। यह सोच कर, तीर-कमान हाथ में लेकर तीर चलाया, सीधा निशाने पर जा लगा, और शौक़ बढ़ा। इसी प्रकार धीरे-धीरे पूरा शिकारी बन गया। भजन-बन्दगी छूट गई और लगा शिकार के पीछे-पीछे फिरने। सो ऐसे हैं मन के धोखे। ज़रा-सा इसको ढीला छोड़ो, झट बुरी आदतें अपना लेता है।