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Santmt ki Sakhiya in hindi/ Sant ki ninda

गुरु अर्जुन साहिब ने सहनशीलता और नम्रता कमाल की थी, जरा बुरा न माना, बल्कि आप उनके घर गये

Sudhir Arora by Sudhir Arora
April 25, 2023
Reading Time: 1 min read
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Santmt ki Sakhiya in hindi/ Sant ki ninda

{ संत की निंदां }

सत्ता और बलवंडा, गुरु अर्जुन देव जी के दरबार में कीर्तन किया करते थे। अपनी बेअक्ली और उतावलेपन के कारण उन्होंने बिना सोचे-समझे गुरु जी से अर्ज की कि घर में बेटी की शादी है, संगत से कहो कि दान इकटठा करके उनकी सहायता करें। जब उन्हें कुछ सहायता न मिली तो नाराज होकर उन्होंने सत्संग में आना बिलकुल बंद कर दिया।
उन्हें भ्रम था कि उनके मधुर कीर्तन के कारण ही लोग सत्संग में आते हैं, यदि वे कीर्तन नहीं करेंगे तो संगत भी आना छोड़ देगी।

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उनके व्यवहार से दुःखी होकर गुरु जी ने उन्हें कई संदेश भेजे कि सत्संग में आकर कीर्तन करें पर वे आने के लिए न माने।

गुरु अर्जुन साहिब ने सहनशीलता और नम्रता कमाल की थी, जरा बुरा न माना, बल्कि आप उनके घर गये और उन्हें कहा कि जितना रुपया हमारे पास है ले लो, बाकी रुपया फिर सही, लेकिन रूठो नहीं और आकर कीर्तन करो। फिर भी न माने। उनको पक्का विश्पास हो गया कि हमारे बिना इनका काम नहीं चलता, इसलिए अब खुद आये हैं। वे बोले कि अगर हम कीर्तन नहीं करेंगे तो संगत नहीं आयेगी, और यह भी कहा कि जो आपके बड़े गुरु नानक जी थे उनके पास भी लोग मरदाने को सुनने के लिए ही आते थे। इसी तरह गुरु नानक साहिब से लेकर सारे गुरु साहिबान की निंदा की।

https://sudhirarora.com/santmt-ki-sakhiya-in-hindi-guru-nanak-or-garib-ki-roti/

गुरु अर्जुन साहिब ने कहा कि आप मेरी चाहे जितनी मरजी निंदा कर लेेते, लेकिन मेरे गुरु नानक साहिब और अन्य गुरु साहिबान की शान में गुस्ताखी के वचन नहीं कहने चाहिए थे। जाओ, तुम भ्रष्ट हो गये।जो तुम्हारा मुँह देखेगा वह भी भ्रष्ट हो जायेगा, जो तुम्हारी सिफारिश लेकर आयेगा उसका मुँह काला करके गधे पर सवार किया जायेगा और पीछे लड़के लगाये जायेंगे और गाँव-गाँव घुमाया जायेगा।

इधर गुरु साहिब ने और आदमी बुलाकर कीर्तन करवाना शुरू कर दिया। जब संगत को पता चला तो संगत ने भी सत्ता और बलवंडा को दुत्कार दियां मालिक की मौज, वे दोनो उसी वक्त सख्त बीमार हो गये, उन्हें कोढ़ हो गया और शरीर से खून और पीप बहने लगी। जितना रुपया पास था, दवाइयों पर खर्च हो गया। अब जिस शिष्य के पास जाते वह मुँह फेर लेता। जो गुरु द्वारा दुत्कारा गया हो उससे भला कौन बोले! जिधर जाते, शिष्य दरवाजा बंद कर लेते। जब सख्त परेशान हो गये तब भाई लद्धा के पास गये। लद्धा अपने परापकार के लिए मशहूर था। उसको आवाज लगायी, ‘भाई लद्धा! लद्धा!! जैसे भी हो सके अब हमको बचाओ। दुनिया में कोई हमारी सूरत भी देखने को तैयार नहीं है। जब लद्धा ने आवाज सुनी, उसने भी मुँह ढक लिया और दरवाजा बंद करते हुए बोला कि गुरु के दुत्कारे हुए को कौन बरदाश्त करे! गुरु के दुत्कारे को मुँह लगाना मौेत से भी बुरा है। जब उन्होंने बहुत विनती की और कहा कि गुरु की खातिर हमें बचाओ तो उसने कहा, ’अच्छा, जो कुछ मुझसे हो सकेगा मैं करूँगा। अब तुम जाओ। तब वे अपने घर को चले गये।

भाई लद्धा ने एक गधा लिया। अपना मुँह काला किया, गधे पर सवार हो गया, पीछे लड़के लगवाये और गुरु साहिब की शर्त को पूरा करता हुआ, गाँव-गाँव फिरता हुआ अमृतसर आया। जब सारे शहर का चक्कर लगाकर गुरु साहिब की ओर आया तो उन्होंने दूर से देखकर पूछा, ’यह शोर कैसा है? संगत ने कहा कि जी! लद्धा गधे पर चढ़ा आ रहा है। जब लद्धा पास आया तो अर्ज की, ’सच्चे पातशाह! गुरु के धिक्कारे हुए का कहीं ठिकाना नहीं, अगर कहीं ठिकाना हो तो बताओ।’ गुरु साहिब दयाल हो गये और फरमाया, ’अच्छा! सत्ता और बलवंडा दोनों को बुलाओ और कहो कि जिस मुँह से गुरु साहिबान की निंदा की थी उसी मुँह से प्रशंसा करें। वह सारी प्रशंसा गुरु ग्रन्थ साहिब में दर्ज हैं। मतलब तो यह है कि संतो के द्वार से निकाले गये जीव को कहीं जगह नहीं, गुरु के निकाले हुए हो गुरू ही बख्श सकता है। सत्ता और बलवंडा को गुरु साहिबान की निंदा करने की भारी कीमत चुकानी पड़ी।

*राधा स्वामी जी *

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