ध्यान और एकाग्रता बढ़ानेके लिए करेः आकाश मुद्रा
आकाश मुद्रा:-
आकाश मुद्रा, यह मुद्रा शरीर में आकाश तत्व का संतुलन करती है। यह मुद्रा अंगुठा और मध्यम अंगुली मिला कर बनती है। ज्योतिष के अनुसार हमारा अंगूठा मंगल ग्रह का प्रतीक है और मध्यम अंगुली शनि ग्रह का प्रतीक है। हमारा अंगूठा अग्नि तत्व का प्रतीक है और मध्यम अंगुली आकाश तत्व का प्रतीक है। जब अग्नि तत्व और आकाश तत्व मिलते है, तो एक गहन शुन्यता उतपन होती हैं। इसी शुन्य के लिए मनुष्य ध्यान का अभ्यास करता है।
मस्तिष्क का विकास:-
आकाश मुद्रा को करने से शरीर में चुस्ती-फुर्ती पैदा होती है। इस मुद्रा के अभ्यास के साथ सफलता के लिए विशेष ध्यान का अभ्यास किसी भी क्षेत्र में सफलता दिलाता है। जाप करने वाली माला के मोतियों को सुख-समृद्धि और शांति के लिए मध्यम अंगुली से ही आगे की ओर सरकाते हैं। आकाश मुद्रा मन मस्तिष्क से पुरानी बातों को निकाल कर नए विचारों के लिए स्थान बनाती है।
आध्यात्मिक ज्ञान का विकास:-
आकाश मुद्रा में आकाश शब्द का अर्थ खालीपन अर्थात वह खुला स्थान जिसकी कोई सीमा नहीं होती है। जो मनुष्य के भीतर के संसार से जोड़कर आकाश के गुण को धारण करने में मदद करती है। यह मुद्रा मनुष्य के भीतर चल रहे निराधार विचारों को निकालकर नए ज्ञान को धारण करने के लिए खाली स्थान बनाती है।
आकाश मुद्रा बनाने की विधि:-
अंगूठे के अग्रभाग को मध्यमा अंगुली के अग्रभाग से मिलाने कर बाकी तीनों अंगुलियां सीधी रखने से, आकाश मुद्रा बनती है।
आकाश मुद्रा से होने वाले लाभ:-
1 :- हृदय के सारे रोगों को दूर करने में सहायक है।
2 :- कैल्श्सियम की कमी दूर होकर हड्डियां मजबूत होती है।
3 :- कान का बहना, कर्ण पीड़ा आदि कानों के दोष दूर होते है।
4 :- इस का अभ्यास करने से चेतना शक्ति का विकास होता है।
5 :– शरीर को विषाक्त तत्वों से मुक्ति मिलती है।
6 :– ध्यान के समय इस मुद्रा को करने से आज्ञा चक्र का विकास होता है।
ग्याहरा तरह की हस्त मुद्राएं :-
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