{ अंधा और भूलभुलैयाँ }
एक आदमी अंधा भी था और साथ ही गंजा भी था। थोड़ी सी गलती के कारण राजा ने बेचारे का एक ऐसी जेल में बंद कर दिया जो खास तौर पर भूलभुलैयाँ जैसी बनायी गयी थी। उस जेल के कई नकली दरवाजे थे पर बाहर जाने के लिए एक ही दरवाजा था। राजा का हुक्म था कि जो कोई उस ठीक दरवाजे को ढूँढ़कर बाहर निकल जायेगा, उसको छोड़ दिया जायेगा।
काफी देर तक वह अंधा आदमी जेल की दीवारों के साथ-साथ असली दरवाजे को ढूँढ़ता रहा, परंतु जब वह दरवाजे के पास आता तो अचानक उसके सिर में खुजली होने लगती। वह सिर में खुजली करने लग जाता और दरवाजे से आगे निकल जाता। इसी तरह हर बार जब वह दरवाजे के पास आता, तो उसके सिर में खुजली हो जाती और वह असली दरवाजे को ढूँढ़ न पाता। इस प्रकार वह जेल की दीवारों के साथ-साथ घूमता रहता और हर बार असली दरवाजे से आगे निकल जाता।
यही हाल हमारा है। जब मनुष्य-जन्म मिलता है तो उसे मन की लज्जतों में गुजार देते हैं और फिर से चैरासी के चक्कर में पड़ जाते हैं। यही वक्त मुक्ति का होता है, जिसे हम गँवा देते हैं।