१ -🙏🏾अमृत वचन 🙏🏾
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“बाबा जैमल सिंह महाराज जी की अमृत वचन पुसतक में लिखा है । पहली बात तो यह समझ लें , वह आदमी व्यर्थ जी रहा है । जिस के पास ढाई घंटा भी स्वयं के लिए नहीं है । वह आदमी जी नहीं रहा , वास्तव में वह सिर्फ अपनी मौत का इन्तजार कर रहा है । जो ढाई घंटा भी अपने भीतर की खोज के लिए नहीं दे सकता है । यही खोज उसे मुकाम तक पहुंचाएगी । क्योंकि आखिर में जब सारा हिसाब किताब होता है । तो जो भी हमने शरीर के बल पर कमाया है , वह तो हम से मौत छीन लेती है । और जो हम ने भीतर कमाया है , वह मौत भी नहीं छीन पाती । वही हमारे साथ होता है , इसे ख्याल रखें कि , मौत आप से सब कुछ छीनेगी । उस समय आप के पास कुछ बचाने योग्य है ? अगर नहीं है , तो जल्दी करो बचाना शुरू करो । भीतर की कमायी करनी शुरु करो । किन साँसों का मैं एतबार करूँ जो अंत में मेरा साथ छोड जाऐंगी ..!! किस धन का मैं अंहकार करूँ जो अंत में मेरे प्राणों को बचा ही नहीं पाएगा..!! किस तन पे मैं अंहकार करूँ जो अंत में मेरी आत्मा का बोझ भी नहीं उठा पाएगा..!! भगवान की अदालत में वकालत नहीं होती … और यदि सजा हो जाये तो जमानत नहीं होती….।
“भजन व सुमिरन” , यह भी अपनी आत्मा का काम है । भजन व सुमिरन ही सदा साथ रहेगा , क्योंकि यह सतगुरु की दी दात है । यह बढ़ेगी , कभी घटेगी नहीं , सो भजन-सुमिरन को ज़्यादा से ज़्यादा वक्त दो । ताकि यह जो दात है , यह बढ़ती जाए कभी कम ना हो । भजन सुमिरन करोगे तो यह दात बढ़ती जाएगी । अगर नहीं करोगे , तो यह खत्म हो जाएगी । यह आप पर निर्भर करता है , कि आप कया चाहते
हरि का नाम निधान है
जिस अंत न पारावार
गुरमुख सेइ सोहदे
जिन किरपा करे करतार
🙏🏾राधा स्वामी जी🙏🏾 सखियाँ भाग -३
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२ -कौन सा दिया जलाने के लिए गुरुजी ने कहा…??
” नाम तेरे की जोत लगाई
भयो उजियार भवन सगलारे”!!
जगत गुरु रविदास महाराज जी ने कहा अपने भीतर नाम की ज्योत जलाने के लिए अर्थात ज्ञान की ज्योत जलाने के लिए ..के ज्ञान की ज्योत जलाने से आपकी जिंदगी के जितने भी अंधकार हैं दूर हो जाएंगे…ज्ञान से विचार उत्पन्न होते हैं विचारों से कर्म उत्पन्न होता है और जब कर्म उत्पन्न हो गया तो आप का विकास जरूर होगा… बस आपको अपने विचारों को और अपने कर्म को सही दिशा में रखना है…
गुरु रविदास महाराज जी ने एक और कथन कहा…
“गुरु का शब्द और सूरत कुदाली
खोदत कोई लहे रें”!!
गुरु से हमको शब्द मिलता है.. अब गुरु का शब्द कहां है यह खोजना है…. गुरु का शब्द मूर्ति में तो नहीं है लेकिन उनकी वाणी में जरूर है.. जगत गुरु रविदास महाराज जी ने कहा शब्द को समझो अर्थात वाणी को समझो…. जब इंसान वाणी के ऊपर चिंतन करता है.. उसको समझता है तो वह सूरत में आ जाता है अर्थात होश में आ जाता है..
फिर जगत गुरु रविदास महाराज जी ने कहा उस सूरत को उस होश को कुदाली बनाकर अपने भीतर खोद…अपने आप से भेंट कर.. अपने गुणों अवगुणों से भेंट कर.. अपनी बुराइयों और अच्छाइयों से भेंट कर… अपनी मूरत को खुद गढ़ तू… अर्थात अपने आप को तू लाइक बना.. अच्छे कर्मों को धारण कर.. अपना और अपने परिवार का विकास…
इसलिए जगत गुरु रविदास महाराज जी ने हम लोगों को अपने भीतर ज्ञान का दीपक जलाने के लिए कहा लेकिन हम लोग मंदिरों में ही दिए जलाते रहे…
अपना दीपक खुद बन… अपने आप के ऊपर भरोसा कर… और अपने अनमोल जीवन को ऊंचाइयों तक ले जा.
**राधा स्वामी जी **
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३ -मनुष्य के कर्म कभी नही छोड़ते हैं, देर सबेर उनका हिसाब अवश्य ही होता है!
मादा बिच्छू की मृत्यु बहुत ही दु:खदायी रूप में होती है।मादा बिच्छु जब बच्चो को जन्म देती है तब,ये सभी बच्चे जन्म लेते ही अपनी मांँ की पीठ पर बैठ जाते हैं।और अपनी भूख मिटाने हेतु तुरंत ही अपनी माँ के शरीर को ही खाना प्रारम्भ कर देते हैं, और तब तक खाते हैं,जब तक कि उसकी केवल,अस्थियां ही शेष ना रह जाए।वो तड़पती है, कराहती है, लेकिन ये पीछा नहीं छोड़ते,और ये उसे पलभर में नहीं मार देते बल्कि कई दिनों तक यह मौत से बदतर असहनीय पीड़ा को झेलती हुई दम तोड़ती है।मादा बिच्छु की मौत होने के पश्चात् ही ये सभी उसकी पीठ से नीचे उतरते हैं!
लख चौरासी के कुचक्र में ऐसी असंख्य योनियां हैं, जिनकी स्थितियां अज्ञात हैं, कदाचित् इसीलिए भवसागर को अगम और अपार कहा गया है।संतमत के मुताबिक यह भी मनुष्य योनि में किए गये कर्मों का ही भुगतान है।*अर्थात्, इन्सान इस मनुष्य जीवन में जो कर्म करेगा,नाना प्रकार की असंख्य योनियों में इन कर्मों के आधार से ही उसे दुःख सुख मिलते रहेंगे। यह तय है!
मनुष्य जन्म बड़ी मुश्किल से मिला है, ये जो गलियों में आवारा जानवर घूम रहे हैं न! इन्हें भी कभी मनुष्य जन्म मिला था, इनमें से कोई डॉक्टर था, कोई इंजीनियर, कोई कुछ और *इनके गुरु भी इन्हें नाम का भजन करने को कहते थे तो हँस कर जवाब देते थे कि अभी हमारे पास समय नहीं है! *वो मनुष्य जन्म हार गए, भगवान का भजन व धन्यवाद नहीं किया, पशु योनि में आ गए। अब देखो समय ही समय है, बेचारे गली-गली आवारा घूमते हैं,कोई धुत्कारता है, कोई फटकारता है,कर्म बहुत रूला डालते हैं,किसी को नहीं छोड़ते अब नहीं समझेंगे तो कब समझेंगे…?
सिमरन और भजन कर्मफलों को भी धो डालता हैं।
मनुष्य को चाहिए कि सिमरन और भजन जरूर करें।
🙏😊 राधास्वामी जी!
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पढ़े :- सन्तमत की सखियाँ भाग -१
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४ -♻️आस्था♻️
एक मंदिर था. उसमें सब लोग पगार पर काम करते थे। पूजा कराने वाला आदमी, घंटा बजाने वाला भी पगार पर था। घंटा बजाने वाला आदमी आरती के समय भाव के साथ इतना मशगुल हो जाता था कि होश में ही नहीं रहता था।
घंटा बजाने वाला व्यक्ति भक्ति भाव से खुद का काम करता था। मंदिर में आने वाले सभी व्यक्ति भगवान के साथ साथ घंटा बजाने वाले व्यक्ति के भाव के भी दर्शन करते थे, उसकी भी वाह वाह होती थी…
एक दिन मंदिर का ट्रस्ट बदल गया,और नए ट्रस्टी ने ऐसा आदेश जारी किया कि अपने मंदिर में काम करते सब लोग पढ़े-लिखे होना जरूरी है। जो पढ़े-लिखे नहीं है उन्हें निकाल दिया जाएगा।
उस घंटा बजाने वाले भाई को ट्रस्टी ने कहा कि ‘तुम्हारे आज तक का पगार ले लो अब से तुम नौकरी पर मत आना।
उस घंटा बजाने वाले व्यक्ति ने कहा, ‘साहेब भले ही मैं पढ़ा लिखा नहीं हूं पर इस कार्य मे मेरा भाव भगवान से जुड़ा हुआ है देखो…
ट्रस्टी ने कहा, ‘सुन लो, तुम पढ़े-लिखे नहीं हो, इसलिए तुम्हें रख नहीं रख पाएंगे, दूसरे दिन मंदिर में नये लोगों को रख लिया, परन्तु आरती में आए लोगों को अब पहले जैसा मजा नहीं आता। घंटा बजाने वाले व्यक्ति की सभी को कमी महसूस होती थी।
कुछ लोग मिलकर घंटा बजाने वाले व्यक्ति के घर गए, और विनती की तुम मंदिर आया करो।
उस भाई ने जवाब दिया, ‘मैं आऊंगा तो ट्रस्टी को लगेगा नौकरी लेने के लिए आया है इसलिए आ नहीं सकता हूं, लोगों ने एक उपाय बताया कि ‘मंदिर के बराबर सामने आपके लिए एक दुकान खोल देते हैं, वहां आपको बैठना है और आरती के समय बजाने आ जाना, फिर कोई नहीं कहेगा तुमको नौकरी की जरूरत है..’
उस भाई ने मंदिर के सामने दुकान शुरू की, वह इतनी चली कि एक दुकान से सात दुकान और सात दुकान से एक फैक्ट्री खोली।
अब वो आदमी मर्सिडीज से घंटा बजाने आता था, समय बीतता गया, यह बात पुरानी हो गई। मंदिर का ट्रस्टी फिर बदल गया।
नए ट्रस्ट को नया मंदिर बनाने के लिए दान की जरूरत थी। मन्दिर के नए ट्रस्टी को विचार आया सबसे पहले उस फैक्ट्री के मालिक से बात करके देखते हैं, ट्रस्टी मालिक के पास गया सात लाख का खर्चा है। फैक्ट्री मालिक को बताया। फैक्ट्री के मालिक ने कोई सवाल किए बिना एक खाली चेक ट्रस्टी के हाथ में दे दिया। और कहा चैक भर लो ट्रस्टी ने चैक भरकर उस फैक्ट्री मालिक को वापस दिया। फैक्ट्री मालिक ने चैक को देखा और उस ट्रस्टी को दे दिया।
ट्रस्टी ने चैक हाथ मे लिया और कहा, सिग्नेचर तो बाकी है। मालिक ने कहा मुझे सिग्नेचर करना नहीं आता है, लाओ अंगूठा लगा देता हूं, ..वही चलेगा …’
यह सुनकर ट्रस्टी चौंक गया और कहा, “साहब तुमने अनपढ़ होकर भी इतनी तरक्की की, यदि पढ़े-लिखे होते तो कहां होते …!!!”
तो वह सेठ हंसते हुए बोला,
‘भाई, मैं पढ़ा-लिखा होता तो बस, मंदिर में घंटा बजाते होता’
कार्य कोई भी हो, परिस्थिति कैसी भी हो? तुम्हारी स्थिति, तुम्हारी भावनाओं पर निर्भर करती है। भावनाएं शुद्ध होंगी तो ईश्वर और सुंदर भविष्य पक्का तुम्हारे साथ होगा।
**राधा स्वामी जी**
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५ -* मालिक की मौज *
एक बार हुज़ूर बड़े महाराज जी अपने घर सिकंदरपुर गये हुए थे । उस समय वेहड़े में बैठे हुए थे कि एक मिरासी टूमबे म्यूज़िक बजाने वाला यंत्र पे गाना गाता हुआ उनके सामने से निकला। आवाज़ अछी लगी तो हुज़ूर ने नौकर से उसको अंदर बुलावाया ।
हुज़ूर ने कहा भाई कोई सूफ़ी कलाम सुना सकते हो । वो बोला, जी सरदार जी, जो मर्ज़ी सुनो, सब गा बजा लेता हुँ पर अभी मुझे एक शादी में गाने के लिए जाना है, उन्होंने मुझे दस रुपए देने हैं, मैं बाद में आकर सुना दूँगा ।
अब हुज़ूर मौज में आए हुए थे, बोले अगर हम तुझे बीस रुपए दें तो ।
इसपर उसने कहा बीस रुपए में तो मैं सारा दिन गाना सुना दूँगा ।
गाने बजाने का दौर शुरू हुआ, लगभग एक घंटा सुनने के बाद हुज़ूर ने कहा, भाई बाहर के राग तो अच्छे से गाते हो कभी अन्दर के राग भी सुने हैं क्या ?
इस पर वो बोला सरदार जी अंदर के कौन से राग, मैंने कभी नहि सुने। हुज़ूर की मौज चरम सीमा पर पहुँच चुकी थी, बोले सुनेगा तूँ अंदर के राग । बोला जी सुना सकते हो तो सुन लूँगा । हुज़ूर ने कहा आँखें बंद करके बैठ जा, और उसके सिर पे हाथ रखा और लगभग एक घण्टे के बाद उसको बाहर आने को कहा,आँखे खोल ।
आँखे खोलने पे मिरासी अपनी ऊँची आवाज़ और अन्दाज़ में बोला,
ओय सरदारा मैं ता सोच्या तूँ कोई सिधा सादा ज़मींदार जाट हैं
पर मैं ता वेख्या तूँ ते पूरा रब्ब हैं ।।।।
फिर उसने कहा मेरे घरवालों को भी ये राग सुनवाँ देओ ।
इसपर हुज़ूर ने कहा इसकेलिए तुझे हमारे हेड्क्वॉर्टर डेरा ब्यास आना पड़ेगा ।
इस प्रकार कैसे सन्त अगर चाहें तो बिना नामदान की कमायी के किसी भी जीव को अंदरूनी मंडलो की सैर करवा सकते हैं क्यूँकि वो ख़ुद उन मंडलो के मालिक होते हैं ।।।
राधा स्वामी जी 🙏
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६ -सतगुर की रहमत
एक बहन किसी डेरे में अपने मुर्शिद के हुक्म अनुसार लंगर की सेवा करती थी। जाणी-जान सतगुरु के हुक्म अनुसार उसकी डेरे में हाजिरी हर रोज जरूरी थी और एक दिन उसका छोटा लड़का उम्र लगभग 7 साल, उसे तेज बुखार हो गया। उस बीबी ने बच्चे को दवाई देकर, अपनी सासू माँ के पास छोड़कर, और आप सतगुर की सेवा में चली गयी।
सेवा करते-करते मन ही मन अरदास करने लगी किहे सच्चे पातशाह ! ओ मेरिया मालिका, घर मेरा बच्चा बिमार है। मुझे आज जल्दी भेज देना, मेरे सतगुरू…!लेकिन मुर्शिद तो कामिल है, फिर उसकी लीला तो न्यारी ही होगी ।
जब वह बीबी आज्ञा लेने गयी तो सतगुर ने कहा :जाईऐ ! चाय बनाओ, संगत के लिए।
बिचारी चाय बनाने लग गई। चाय बना कर दुबारा आज्ञा लेने गई, तो गुरू ने हलवा (प्रसाद) बनाने को बोल दिया। हलवा बनाने लग गई।
सेवा करते रोते हुए, उस बहन को देख कर सतगुरु जी बोले :बीबी ! अब घर जाओ, यह वीर तुम्हें घर छोड़ देंगे।उस वीर ने बीबी को गाड़ी में बिठाया और घर की ओर चल पड़े। रास्ते भर रोती हुई और दोनों हाथ जोड़कर मुर्शिद का ध्यान करती हुई, घर की ओर जा रही थी। बार बार उसे अपने लड़के का भी ध्यान आ रहा था। जैसे ही घर पहुँची, क्या देखती है……कि उसका लड़का अपने दोस्त के साथ खेल रहा था और जोर-जोर से हंस कर बातें कर रहा था । फिर क्या था ? बीबी ने झट से उसे गले लगाया और पूछा :
बेटा कैसी तबियत है ?
तो लड़का बोला :
मम्मी ! आपके जाते ही यह फोटो वाले बाबा जी आये और शाम तक मेरे साथ खेले और आपके आने से थोड़ी देर पहले ही गये हैं। तबियत का तो पता ही नहीं चला। जैसे ही सतगुरु जी महाराज आए, मैं ठीक हो गया।
बीबी ने रोते हुए, अपने मुर्शिद का लाख-लाख शुक्र किया कि
औ मेरिया मालिका ! मुझ से थोड़ी सी सेवा करा के, आपने मेरा इतना बड़ा काम किया, कि मेरे परिवार की रखवाली की, शुक्र है मालिका ! तेरा शुक्र है…….!
गुरु की सेवा मे लगाया हुआ क्षण ( समय)कभी व्यर्थ नही जाता
चाहे वो साँसे हो चाहे वक्त!
* राधा स्वामी जी *
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७ –कर्मों का हिसाब किताब
एक स्त्री थी जिसे 20 साल तक संतान नहीं हुई, फिर कर्म संजोग से 20 वर्ष के बाद उसे पुत्र संतान की प्राप्ति हुई। किन्तु दुर्भाग्य वश 20 दिन में ही वह संतान मृत्यु को प्राप्त हो गयी। वह स्त्री हद से ज्यादा रोई और उस मृत बच्चे का शव ले कर एक सिद्ध महात्मा जी के पास पहुच गई।वह महात्मा जी से रो रो कर कहने लगी, मुझे मेरा बच्चा एक बार जीवित कर के दीजिये। मात्र एक बार मैं उस के मुख से “माँ” शब्द सुनना चाहती हूँ। स्त्री के बहुत जिद करने पर महात्मा जी ने 2 मिनट के लिए उस बच्चे की आत्मा को बापिस बुलाया। तब उस स्त्री ने उस आत्मा से कहा तुम मुझे क्यों छोड़ कर चले गए मेरे बच्चे?मैं तुम से सिर्फ एक बार ‘माँ’ शब्द सुनना चाहती हूँ।
तभी उस आत्मा ने कहा कौन माँ? कैसी माँ ! मैं तो तुम से कर्मों का हिसाब किताब करने आया था। स्त्री ने पूछा कैसा हिसाब! आत्मा ने बताया पिछले जन्म में तुम मेरी सौतन थी, और मेरी आँखों के सामने तू मेरे पति को ले गई। मैं बहुत रोई तुम से अपना पति मांगा। पर तुम ने मेरी एक नही सुनी, तब मैं रो रही थी और आज तुम रो रही हो। बस मेरा तुम्हारे साथ जो कर्मों का हिसाब था, वह मैंने पूरा किया और मर गया। इत ना कह कर वह आत्मा वापिस चली गयी।
उस स्त्री को यह सब देख और सुन कर ऐसा झटका लगा कि उसकी आंखें खुल गई। फिर उसे महात्मा जी ने समझाया कि देखो मैने कहा था। कि यह सब रिश्तेदार माँ, पिता, भाई-बहन सब कर्मों के कारण जुड़े हुए हैं। उस औरत ने महात्मा जी से कहा, जी महात्मा जी! आप सच बोल रहे थे, अब मेरी आंखें खुल चुकी है। हम सब यहां पर कर्मो का हिसाब किताब करने आये हैं। इस लिए सदा अच्छे कर्म करो, ताकि हमे बाद में यह सब भुगतना ना पड़े। वो स्त्री समझ गयी और अपने घर लौट गयी ।
इसलिए हमें हमेशा अच्छे कर्म करने चाहिए हमारा यह शरीर एक किराये का घर है। जैसे कि जब हम “किराए का मकान” लेते है तो “मकान मालिक” कुछ शर्तें रखता है! मकान का किराया समय पर देना। मकान में गंदगी नही फैलाना, उसे साफ सुथरा रखना। मकान मालिक का कहना मानना,और मकान मालिक जब चाहे मकान को खाली करवा सकता है!! इसी प्रकार परमात्मा ने भी जो हमें यह शरीर दिया है, यह भी एक किराए का मकान ही है। हमें परमात्मा ने जब यह शरीर दिया है, तो यह सॉरी शर्ते हमारे लिये भी लागु होती है।
1 किराया है। (भजन -सिमरन)
2. गन्दगी (बुरे विचार और बुरी भावनाये) नही फैलानी।
3. जब मर्जी होगी परमात्मा अपनी आत्मा को वापिस बुला लेगा!! मतलब यह है, कि यह जीवन हमे बहुत थोड़े समय के लिए मिला है। इसे लड़ाई -झगड़े कर के या मन मै द्वेष भावना रख कर नही। बल्कि प्रभु जी के नाम का सिमरन करते हुए बिताना चाहिए। और हर समय उस सच्चे मालिक के आगे विनती करनी है कि हे मेरे प्रभु जी! इतनी कृपा करना कि आप की आज्ञा में रहे और भजन -सुमिरन करते रहे!! “ये जन्म मनुष्य शरीर जो हमे मिला है। गुरु किरपा का प्रशाद समझें, हम इस की बेकदरी ना करे। और अपने हर स्वास के साथ नाम जपन और जीवन का राज समझे !!”
रात गंवाई सोय कर दिवस गंवायो खाय।
हीरा जनम अमोल था कौड़ी बदले जाय॥
अर्थ: रात सो कर बिता दी, दिन खा कर बिता दिया हीरे के समान कीमती जीवन को संसार के निर्मूल्य विषयों की कामनाओं और वासनाओं की भेंट चढ़ा दिया इस से दुखद क्या हो सकता है?
*राधा स्वामी जी *
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८ -शहद की एक ही बूँद
एक महात्मा एक दुकान पर खड़ा था। कुछ ख़याल आया। मन से बोला कि तेरी तारीफ सुनी है, कुछ अपनी करतूत तो दिखा! क्हता है, देखना है ? एक मनुष्य शहद बेच रहा था। उसकी मटकी से उंगली भर कर एक दीवार पर शहद लगा दिया। शहद लगाने की देर थी कि उसकी खुशबू पाकर एक मक्खी आ बैठी और आँखे बन्द करके शहद खाने लगी। अभी शहद खा रही थी कि एक छिपकली ने देखा कि यह तो मेरा शिकार है। उसने छलांग लगाई और मक्खी को शहद समेत खा गई। उस दुकानदार ने बड़े प्यार से एक बिल्ली पाल रखी थी। बिल्ली छिपकली पर झपटी और उसको एक बार में खा गई। पास ही एक ग्राहक का कुत्ता खड़ा था, उसने बिल्ली पर हमला करके उसको चीर-फाड़ डाला। दुकानदार को गुस्सा आया, उसने अपने नौकरों से कहा मारो कुत्ते को। उन्होंने डण्डे मार कर कुत्ते को मार डाला। ग्राहक को इसका दुःख हुआ। उसने दुकानदार को गाली निकाली। गाली निकालने की देर थी कि दोनें आपस में जूतों से लड़ने लगे। खूब लड़ाई हुई, तो मन ने उस महात्मा से कहा, ये मेरे खेल हैं, ये मेरे धोखे हैं।
* राधा स्वामी जी *
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९ -” मरना सच है और जीना झूठ है “
एक बार गुरु नानक देव जी ने मरदाने को एक टका दिया और कहा कि एक पैसे का झूठ ला और एक पैसे का सच ला| परमार्थ की इतनी ऊँची बात को कोई कोई ही समझ सकता है|
मरदाना जब एक टका लेकर झूठ और सच खरीदने किसी दुकान पर जाता तो लोग उसका मजाक उड़ाते, कि क्या झूठ और सच भी दुकानों पर मिलता है| अंत में मरदाना एक प्यार वाले के पास पहुंचा, उसको मरना याद था, क्यूंकि जिसको मरना याद रहता है उसको सिमरन भी याद रहता है| उस व्यक्ति के पास जाकर मरदाने ने कहा कि एक पैसे का सच दे दो और एक पैसे का झूठ दे दो|
उस आदमी ने अपनी जेब से एक कागज निकला, उसके दो हिस्से किये और एक पर लिखा कि ‘मरना सच है’ और दूसरे पर लिखा ‘जीना झूठ है’, और वो कागज मरदाने को दे दिए| मरदाना वो कागज लेकर गुरु नानक जी के पास वापिस पहुंचा और नमस्कार कर के कहा कि गुरु जी ये वो कागज की पर्चियां मिली हैं| बाबा जी ने पर्चियों को पड़ा कि मरना सच है, तो कहा कि ये ही दुनिया का सब से बड़ा सच है| दुनिया में जो कोई भी आया है उसने यहाँ से जाना है, वो अपने आने से पहले अपना मरना लिखवा कर आया है|
अगर कोई यह कहता है कि मेरे संगी- साथी दुनिया छोड़ कर जा रहे है, और मुझे भी पता नहीं कब परमात्मा का बुलावा आ जाना है, तो यह सच है| जिसको अपना मरना याद रहता है वो दुनिया में कोई बुरा काम नहीं करता और हर वक्त परमात्मा को याद करता रहता है, उसका सिमरन करता रहता है|
दूसरी पर्ची पर बाबाजी ने ‘जीना झूठ है’ पढ़ कर कहा कि अगर कोई आदमी यह कहता है कि उसने हमेशा इस दुनिया में रहना है तो ये सब से बड़ा झूठ है| इस दुनिया में कोई भी चीज सथाई नहीं है| जनम होने से पहले ही सब का मरना तय हो जाता है,
सन्तमत विचार-इस लिए ये कहना सब से बड़ा झूठ है कि किसी ने हमेशा जीते रहना है| इस लिए हमें अपनी मौत को कभी भूलना नहीं चाहिए और उसे याद करके ही सब कर्म करने चाहिए| प्रभु का सिमरन करना चाहिए और अच्छे काम करने चाहिए|
*राधा स्वामी जी *
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१० -तीर-कमान अमानत
एक ऋषि ने इतनी तपस्या की कि स्वर्ग के राजा इन्द्र को डर लगा कि कहीं उसका सिंहासन ऋषि न छीन ले। वह हाथ में तीर-कमान लेकर शिकारी का रूप धारण करके ऋषि की कुटिया पर आया और अर्ज़ की कि मैं किसी काम से जा रहा हूँ, मेरा यह तीर-कमान रख लो। थोड़ी देर में आकर ले जाऊँगा। ऋषि ने कहा कि मैं ऋषि! यह तीर-कमान! म्ेरा इसका सम्बन्ध क्या! इन्द्र ने खुशामद की कि कृपा करके रख लो! मैं अभी ले जाऊँगा। ऋषि ने कहा, मैं इसका ख़याल कैसे रखूँगा ? तब इन्द्र ने बड़ाई करनी शुरू की कि तू ऐसा है तू वैसा है। मुझ पर दया कर। जब बहुत बार कहा तो ऋषि ने मान लिया और कहा कि उस कोने में रख दो। इन्द्र तो तीर-कमान रख कर चलता हुआ, अब वापस किसे आना था ?
ऋषि पहले राजा था और तीर-कमान चलाना अच्छी तरह जानता था। इसलिये जब भजन से उठे तीर-कमान सामने दिखाई दे। रोज़-रोज़ देखने से तीर-कमान का ध्यान मन में पक्का होता गया। एक दिन कहता है, हम भी तीर चलाते थे। ज़रा चला कर तो देखें, किसी को मारूँगा नही। यह सोच कर, तीर-कमान हाथ में लेकर तीर चलाया, सीधा निशाने पर जा लगा, और शौक़ बढ़ा। इसी प्रकार धीरे-धीरे पूरा शिकारी बन गया। भजन-बन्दगी छूट गई और लगा शिकार के पीछे-पीछे फिरने। सो ऐसे हैं मन के धोखे। ज़रा-सा इसको ढीला छोड़ो, झट बुरी आदतें अपना लेता है।
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