* जूठा प्रसाद *
एक बार काला बाग में सत्संग हो रहा था। जब सत्संग समाप्त हो गया, तो प्रसाद बाँटा गया। एक बड़ा रईस सिक्ख सत्संग में बैठा था। उसने प्रसाद लेने से पहले उठ कर मुझसे सवाल किया, ’जी, क्या प्रसाद जूठा है ? तो मैने कहा, ’जूठा भी है और नहीं भी।’ उसने कहा, ’दोनों बातें नहीं हो सकती। मैंने कहा,’हो सकती हैं।’ उसने पूछा कि किस तरह ? मैंने जवाब दिया, ’जिस वक्त हम उठ कर अरदास करते हैं कि हे सच्चे पातशाह ! तेरा प्रसाद तैयार है, आपको भोग लगे, आपका सीत प्रसाद साध-संगत की रसना लायक हो। अब जो गुरु ने खाया है तो जूठा है, अगर गुरु नहीं खाया तो प्रसाद बेकार गया…………। अब जब हम प्रसाद देते है तो अकालपुरुष परमात्मा का ध्यान करते हैं कि तेरा प्रसाद तैयार है, तेरी साध-संगत की रसना के लायक हो। अव्वल तो किसी आदमी का जूठा कोई आदमी खा ही नहीं सकता और न कोई देता ही है। उस बेचारे का कसूर नहीं था। लोगों ने उसको भ्रम में डाला हुआ था। अब आप बतायें, आप यहाँ बैठे हुए हैं, क्या कभी किसी को जूठा मिला है ? जो महात्मा दिन-रात जागेगा, क्या वह अपनी कमाई किसी को मुफ्त बाँटेगा ?
मैंने एक बार चाचाजी महाराज सेठ प्रतापसिंह जी ( स्वामीजी महाराज के छोटे भाई ) से चरणामृत देने के लिये अर्ज की कि मुझे चरणामृत बख्शो। कहने लगे कि मेरे पास इतनी कमाई नहीं है। जब वह चरणामृत नहीं देते तो क्या जूठा देंगे ?
महात्मा जूठा देते नहीं हैं, अगर दे तो कमाई जाती रहती है। हमारा उपदेश है कि न जूठा खाओ और न दो। मेरे पिताजी ने सारी उमर मुझे अपने साथ नहीं खिलाया। ( अपने पुत्रों की और इशारा करके ) इनसे पूछो, इन्होंने कभी मेरे साथ खाना खाया है, यह दोनों लड़के मेरे मौजूद हैं। शिष्य का धर्म भी है कि न जूठा खाये। जो भजन के चोर हैं, वे सन्तों में कोई न कोई बुंराई ढूँढते रहते हैं, हालाँ कवह बुराई उनमें ( सन्तों में ) नहीं होती। अगर भजन करने वाला होगा, वह बेकार क्यों कहेगा। ऐसे लोगों को जो भजन नहीं करते, उनको सत्संग की भी खबर नहीं। पहले तो सत्संग में आते नहीं, अगर आते हैं तो कोई न कोई नुक्स ढूँढते हैं।
* राधा स्वामी जी *
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* अब मैं परमात्मा को मानता हूँ *
मेरा ( श्री हुजूर महाराज बाबा सावनसिंह जी का ) देखा हुआ वाकया है जब मैं मरी पहाड़ पर बतौर सब-डिवीजनल अफसर काम करता था। बाबू गज्जासिंह मेरे साथ थे। वहाँ एक लीडर आया जो परमात्मा को नहीं मानता था। इसलिये वहाँ उसको न मुसलमान रहने देते थे न हिन्दू। वह बड़ा दुखी हुआ। बाबू गज्जासिंह को पता लगा, वह मेरे पास आये और कहा कि एक सज्जन आये हैं जिनको लोग रहने नहीं देते। मैंने कहा कि उसको बुलाओ।
वहाँ एक असिस्टेण्ट मैडिकल अफसर था जो मेस्मेरिज्म के द्वारा इलाज करता था, उसके पास वह इलाज कराने के लिये आया था। जब वह लीडर मेरे पास आया तो मैंने पूछा कि तुम्हें क्या चाहिये? वह बोला, “जी! एक कुर्सी, एक मेज और बरामदा।” उसको ये चीजें दे दी गई। बातचीत से पता लगा कि वह काठियावाड़ का एक बहुत बड़ा पण्ड़ित है। परमार्थी खयाल रखता था और परमात्मा की तलाश में निकला था, लेकिन परमात्मा न मिला; किसी ऐसे समाज के हाथों में फँस गया जिसने साबित कर दिया कि परमात्मा नहीं हैं।
मैं तो दौरो पर जाता रहता था। पीछे बाबू गज्जासिंह सत्संग करते थे और वह सत्संग में आया करता था। काफी समय सत्संग सुनता रहा, आखिर एक दिन मुझसे कहने लगा, “मुझे नाम दे दो।” मैंने अभी इस बात का कोई उत्तर नहीं दिया था, बल्कि कई दिन इसी तरह खामोशी में बिता दिये थे कि एक दिन बोला, जी! आप मजदूरों को रोजाना क्या मजदूरी देते हैं ? मैंने कहा कि चार आने। उसने कहा, मैं तीन आने ले लूँगा, मुझे मजदूरों में शामिल कर लो। उसी बीच में वह बीमार हो गया। मैं उसे मजदूरों में तो क्या शामिल करता, कह दिया जब तू ठीक होगा नाम दे दूँगा। आखिर वह बिना नाम लिये चला गया। कुछ समय बाद मुझे सोलन में उसकी चिटठी आई, लिखा था कि मुझे उम्मीद नहीं कि मेरी चिटठी पहुँचे, खैर ! अब मैं परमात्मा को मानता हूँ। मालूम नहीं मेरी सँभाल करेगा कि नहीं ? मैंने उत्तर में लिखा, वह सबके अन्दर है, तेरे अन्दर भी है और तेरी सँभाल भी करेगा।
* राधा स्वामी जी *
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* राजा भरथरी और अमर फल *
एक बार राजा भरथरी ने एक सती की तारीफ अपनी स्त्री के आगे की कि वह बहादुर निकली जिसने अपने पति के साथ जल कर जान दे दी, तो उसकी स़्त्री ने उत्तर दिया कि उस स्त्री ने अपने आपको चिता तक जाने की फुरसत ही क्यों दी ? क्यों न पहले ही मर गई! राजा भरथरी ने सोचा कि इसने बड़े ऊँचे वचन कहे हैं। दिल में विचार आया कि आजमाइश तो करें। एक दिन शिकार को गया, अपने कपड़े ,खून से लथपथ करके घर भेज दिये और कहला भेजा कि राजा शेर के शिकार को गया था, लेकिन शेर ने उसको मार डाला है। जब उसकी स्त्री ने यह बात सुनी तो गश खाकर गिर पड़ी और झट जान दे दी।
राजा भरथरी को बहुत अफसोस हुआ कि इतनी योग्य स्त्री हाथ से खो दी। लेकिन जो दूसरी स्त्री मिली, आपने उसका हाल किताबों में पढ़ा ही होगा कि एक साधु जंगल से फल जाया, जिसमें खूबी थी कि बूढ़ा खाये तो सदा के लिये जवान हो जाये। भरथरी ने सोचा, मैंने फल खाया तो क्या फायदा, रानी को दे दूँ। उसने सोचा कि यह भी पहली जैसी होगी, साथ ही बता दिया कि इसके खाने से बूढ़ा हमेशा के लिये जवान हो जाता है। आगे रानी का दिल उधर कोतवाल पर था, उसने वह फल कोतवाल को दे दिया। कोतवाल उस रानी से ही प्रेम नहीं करता था, उसकी प्रीति एक वेश्या के साथ थी। उसने वह फल वेश्या को दे दिया। वेश्या ने सोचा मेरी सारी उमर बुरे कामों में ही बीती है, मैंने फल खाकर यही कुछ करना हैं। क्यों न राजा को फल दे दूँ। राजा बड़ा धर्मात्मा है, उसके राज्य में प्रजा को बहुत अधिक सुख है। जब राजा के पास फल आया, उसने पहचान लिया। वेश्या से कहा कि सच बता यह फल कहाँ से लाई हैं ? कहने लगी कोतवाल से मिला था। राजा ने नौकर भेज कर कोतवाल को बुलाया और पूछा, सच बताओं तुम्हें यह फल कहाँ से मिला। कोतवाल पहले तो इधर-उधर टालने लगा, लेकिन जब राजा ने धमकाया तब कहने लगा कि रानी के पास से मिला है। फिर रानी को बुलाया। इस वक्त राजा भरथरी ने पहले अपने आपको धिक्कारा, कि धृग है मुझको जो मैंने एक पतिव्रता स्त्री की बेकार में आजमाइश की और फिर ऐसी औरतों के जाल में फँसा, फिर धक्कार है उस रानी को जो राजा को छोड़ कर नौकरों से धूल खाती है। फिर धृग है कोतवाल को, कि जिसको रानी मिलीत्र लेकिन रानी को छोड़ कर दूसरे के पास धूल खाता फिरता है। इसी विचार में राजा भरथरी ने राज-पाट त्याग दिया।
* राधा स्वामी जी *
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* राजा वीरसिंह की परीक्षा *
कबीर साहिब जुलाहे थे। राजा वीरसिंह राजपूत उनका सेवक था। उसका उनके प्रति काफी प्यार था। जब कबीर साहिब उसके पास आते थे तो वह तख्त छोड़ देता, कबीर साहिब को ऊपर बैठाता और आप नीचे बैठता। एक बार उन्होंने राजा को आजमाना चाहा। एक वेश्या थी जिसने अपना पेशा छोड़ कर कबीर साहिब की शरण ले ली थी। एक तरफ उसको लिया, दूसरी तरफ रविदास चमार को लिया, दोनों हाथों में शराब से मिलते-जुलते रंग की पानी की बोतलें पकड़ लीं और काशी के बाजारों में झूमते-झामते शब्द पढ़ते निकले। चूँकि हिन्दू-मुसलमान दोनों जातियाँ उनके खिलाफ थीं, इसलिये शोर मच गया। लोग कहने लगे कि एक तरफ वेश्या और दूसरी ओर रविदास चमार है, हाथों में शराब की बोतलें हैं। वे इसी तरह राज दरबार में चले आये। जब राजा ने देखा, अभाव आ गया, तख्त से नहीं उठा। कबीर साहिब ने सोचा कि यह तो गिर गया हैं। अब संभाल लें, नही तो मुश्किल हो जायेगी। उन्होंने दोनों बौतलें पैरो पर गिरा लीं। राजा ने देखा। राजा विचार करता है कि शराबी कभी शराब नहीं गिराता,यह शराब नहीं कोई और चीज है। तख्त से उतरा और रविदास से पूछा, “महाराज! यह क्या कौतुक है ?” उन्होनें कहा कि तू अँधा हे, तुझे पता ही नहीं। जगन्नाथ के मन्दिर में आग लग गई है। कबीर साहिब उसे बुझा रहे हैं। राजा ने तारीख और वक्त नोट कर लिया और पता लगाने के लिये सवार भेजे कि जाकर पता करो। जब वहाँ पहुँचे और मालूम किया, तो लोगों ने कहा, ठीक है, आग लगी थी और कबीर साहिब बुझा रहे थे। राजा का विश्वास पक्का हो गया। अब ऐसे मौके पर बड़े-बड़े अभ्यासी लोक-लाज में आकर रह जाते हैं। कोई-कोई प्रेमी ही पूरा उतरता है, यह आसान नहीं है।
इसी लिये हमेशा गुरु पर विश्वास होना चाहिये, वह जो भी करते है हमारे भले के लिये करते है।
* राधा स्वामी जी *
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–* या भीख *
पीरान कलीयर का जिक्र है, वहाँ साई भीख जी अच्छे कमाई वाले महात्मा हुए हैं। उनका एक शिष्य था। वह मस्ती की हालत में एक दिन दिल्ली के बाजारों में मुर्शिद के इश्क में ‘या भीख’ के नारे लगाता हुआ जा रहा था। पास से काजी निकला, कहने लगा, ‘ अरे काफिर! क्या बकता है। तू खुदा कह, रसूल कह, यह भीख क्या है ? फिर पूछा, तेरा रब ( परमात्मा ) कौन है ? कहता है कि ‘भीख‘। तेरा रसूल कौन है ?……‘भीख‘। जब काजी ने देखा कि यह यों नहीं समझता तो पकड़ कर दिल्ली की मसजिद में ले गया। उलेमाओं को इकट्ठा किया और कहा कि इसको समझाओ। अब ऐसे प्रेमी आशिकों को कौन समझाये! सब जोर लगा कर थक गये, लेकिन वह न माना। आखिर उलेमाओं ने मिलकर उसको कत्ल करने का फतवा दे दिया। उस जमाने में यह नियम था कि कत्ल के फतवे के ऊपर जब तक बादशाह दस्तखत न करे तब तक मुफ्ती कभी कत्ल नही कर सकते थे। फतवा देकर बादशाह के आगे पेश किया। अकबर का राज्य था। अकबर ने देखा कि यह तो कोई मस्त है, इसका कत्ल मुनासिब नहीं। पूछा, तेरा खुदा कौन है ? कहता है, ‘भीख‘। फिर पूछा, तेरा रसूल कौन है, ‘भीख‘। उन दिनों बारिश नहीं हुई थी, बड़ा अकाल पड़ा हुआ था। अकबर ने कहा, ‘ अपने भीख से बरसात करवा दो।‘ कहने लगा पूछ लूँगा! पूछा कब ? बोला परसों। बादशाह ने हुक्म दिया कि इसको छोड़ दो। उलेमा कहने लगे कि यह भाग जायेगा। अकबर ने कहा परवाह नहीं भाग जाने दो। शिष्य ने जंगल में जाकर अपने मुर्शिद का ध्यान किया। मालिक की मौज, बरसात हो गई। अगले दिन खुद बादशाह की कचहरी में हाजिर हो गया। बादशाह ने कहा कि बारिश हो गई। कहता है, भीख ने कर दी। अकबर ने कहा, कुछ माँगो। कहता है, भीख के सिवा मुझे किसी की जरूरत नहीं। बादशाह ने उसका इतना मुर्शिद-प्यार देख कर इक्कीस गाँवों का पट्टा उसके मुर्शिद के नाम करवा दिया और अपने नौकरों के हाथ पट्टा साई भीख के पास भेज दिया। फिर जब शिष्य अपने मुर्शिद के पास पहुँचा, तो मुर्शिद ने पूछा, ‘ देख, तूने क्या माँगा! बारिश! उस वक्त तू अगर कहता कि मुझे वली बना दे, कुतुब बना दे, औलिया बना दे, या कुछ और कहता तो मैं तुझे बना देता। जिस वक्त तूने मेरा ध्यान किया, मेरा ध्यान अपने मुर्शिद में था और मुर्शिद का ध्यान दरगाह में। शिष्य ने कहा, ‘हजरत! मुझे किसी चीज की जरूरत नहीं। मुझे तो एक तेरी जरूरत है।
इसी का नाम है शरण।
* राधा स्वामी जी *
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Radha swami ji
Radha Swami ji