* राजा पीपा और सन्त रविदास *
राजा पीपा कौम का राजपूत था। एक बार उसके दिल में परमार्थ का चाव पैदा हुआ। अमीरों-वजीरों को इकटठा करके पूछा कि क्या इस वक्त कोई महात्मा है ? उन्होंने कहा कि कबीर साहिब और गरीबदास जी तो चोला छोड़ गये हैं। लेकिन इस वक्त एक महात्मा रविदास चमार है। अब राजा सोचने लगा कि क्या करूँ ? परमार्थ भी जरूरी है, उधर वह महात्मा चमार है, अगर खुल्लम-खुल्ला जाता हूँ तो राज्य पलट जायेगा, लोग विरुद्ध हो जायेगें। दिल में प्रेम था। सोचा कि कहीं रविदास अकेले मिलें तो उनसे नाम ले लूँ।
आखिर एक दिन ऐसा मौका आया। गंगा-स्नान का मेला था। सारी दुनिया गंगा चली गई। इधर राजा अकेला, उधर रविदास का मुहल्ला सूना, कोई भी घर पर नहीं था। राजा चोरी-चोरी रविदास के घर गया और अर्ज की, ’ गुरु महाराज ! नाम दे दो।’’ उस समय रविदास जी चमड़ा भिगोने के कुण्ड में से पानी निकाल रहे थे और पानी का डोल उनके हाथ में था। उन्हेंने देखा कि राजा आया है, उसको कुछ दें। उसी पानी का चुल्लू भर कर कहा, ’ राजा ! ले यह चरणामृत पी ले। राजा ने हाथ आगे करके ले तो लिया। लेकिन खयाल आया कि चमार का पानी, मैं क्षत्रिय राजपूत और फिर राजा! कैसे पीता ? खुली आस्तीनों का कुरता पहना हुआ था। इधर-उधर देखा और पानी बाहों के बीच में गिरा लिया। रविदास ने देखा लेकिन जबान से कुछ न कहा।
राजा घर चला आया। दिल में कहने लगा कि इसने तो आज मुझे चमार ही बना लिया था, बड़ी मुश्किल से बचा हूँ। उसी वक्त धोबी को बुलाया और हुक्म दिया कि इसी वक्त इस कुरते को खड़े धाट धोकर लाओ। धोबी घर ले गया और अपनी लड़की से कहा कि कुरते की बाहों को मुँह में ले कर चूसो ताकि दाग निकल जायें और जल्दी साफ हो जायें। यह कह कर धोबी मसाला तैयार करने लग गया।
लड़की छोटी थी। वह दाग चूस कर थूकने की बजाय अन्दर निगलती गई। लड़की का परदा खुल गया। अब वह ज्ञान-ध्यान की बात करने लगी। होते-होते सारे शहर में खबर फैल गई कि एक धोबी की लड़की बड़ी महात्मा है। आखिर राजा तक बात पहुँच गई। दिल में खींच तो लगी हुई थी, एक रात वह धीरे-धीरे धोबी के घर जा पहुँचा। राजा ने कहा, ’ देख बेटी ! मैं तेरे पास भिखारी बन कर आया हूँ, मँगता बन कर आया हूँ, राजा बन कर नहीं आया। ’’ लड़की ने कहा, ’ मैं आपको राजा समझ कर नहीं उठी, बल्कि मुझे जो कुछ मिला है आपकी कृपा से मिला है।’ राजा ने हैरान होकर पूछा कि मेरी कृपा से ? लड़की ने कहा, ’ जी हाँ ! मुझे जो कुछ मिला है आपके कुरते से मिला है और जो भेद था, आपके कुरते में ही था।’ यह सुन कर राजा पीपा रोने लगा और अपने आपको कोसने लगा कि धृग है मेरे राज्य को, धृग है मेरे क्षत्रिय होने को ! छूत-छात तेरा बुरा हो जिसने मुझे परमार्थ से खाली कर दिया ! जब ठोकर लगी तो लोक-लाज, जात-पात की परवाह न करता हुआ सीधा रविदास के पास पहुँचा। हाथ जोड़ कर अर्ज की, ’ गुरुदेव ! वही चरणामृत फिर बख्शो।’ रविदास ने कहा, ’अब नहीं। जब तू पहली बार आया तो मैंने सोचा कि तू क्षत्रिय राजा हो कर मुझ चमार के घर आया है, तुझे वह चीज दें जो कभी नष्ट न हो। वह कुण्ड का पानी नहीं था। अमृत था, सचखण्ड से आया था। मैंने कहा मैं तो रोज पीता हूँ, आज राजा भी पी ले। लेकिन तूने चमड़े का पानी समझ कर घृणा की और कुरते में गिरा लिया। धोबी की लड़की ने कुरते के दाग चूसे और वह महात्मा बन गई। अब मैं तुझे नाम दूँगा। कमाई करके इस दौलत को प्रकट कर लेना। ’
राजा को समझ आ गई, विश्वास हो गया, शौक था, नाम लेकर कमाई की और महात्मा बन गया। राजा पीपा के शब्द गुरु ग्रन्थ साहिब में आये हैं। वह राज्य भी करता था और नाम भी जपता था।
ऐसे होते हैं सन्त राधा स्वामी जी