* धन्ना जाट और त्रिलोचन *
धन्ना गुरु और त्रिलोचन शिष्य था। त्रिलोचन ब्राह्मण था और धन्ना जाटों के खानदान से आया था, इसलिये धन्ना ने सोचा कि इसको जाति का अंहकार है और इसको तारना जरूरी है। यहाँ मूर्ख बन कर इसे समझाऊँ। यह सोच कर एक दिन जब त्रिलोचन ठाकुरों की पूजा कर रहा था, धन्ना थोड़ी दूर हट कर बैठ गया। जब वह पूजा कर चुका तो बोला, दादा। पूजा है तो बड़ी अच्छी। क्या तुम एक ठाकुर मुझे भी दे सकते हो ? त्रिलोचन ने कहा, हाँ। एक बछड़े वाली गाय मुझे ला दो। धन्ना ने कहा कि दादा ! बहुत अच्छा। यह कह कर गाय ला दी। त्रिलोचन ने यह सोच कर कि यह मूर्ख है, इसको क्या पता कि ठाकुर क्या होते है, एक दो सेर का बाट लेकर उसके आगे रख दिया और कहा कि ले जा।
एक दिन जब त्रिलोचन मूर्ति के मुँह को भोग लगा कर आप खाने लगा तो धन्ना ने कहा, दादा ! ठाकुर के साथ ठगी। त्रिलोचन बोला, मैं तेरा मतलब नहीं समझा। धन्ना ने कहा, तुम ठाकुर को कुछ खिलाते नहीं और आप खाये जाते हो। मेरा ठाकुर खाता है, पीता है, हल चलाता है और कुएँ पर रहट चलाता है। वह मेरा सारा काम करता है। त्रिलोचन ने यह मजाक समझा। पूछा कि मुझे दिखायेगा ? धन्ना ने कहा कि मेरे साथ अभी चलो, तुम्हें अभी दिखाता हूँ। यह कह कर त्रिलोचन को कुएँ पर ले गया। कुएँ पर रहट चल रही थी। धन्ना ने कहा कि देख मेरी जगह पर ठाकुर बैठा हुआ है। त्रिलोचन ने कहा, मुझे तो दिखाई नहीं देता।
जब डाक्टर फोड़ा चीरता है तो उसकी कोशिश होती है कि जरा भी गन्दगी अन्दर बाकी न रह जाये। ठीक इसी तरह धन्ना ने त्रिलोचन को बताना शुरू किया कि तुम्हारे में यह नुक्स है, वह नुक्स है? इसके बाद उपदेश देना शुरू किया; जैसा कि राजा जनक ने सुखदेव के साथ व्यवहार किया था। आखिर जब वह बिलकुल साफ हो गया तो दिखला दिया। अगर मनुष्य पाँच तत्व वाला होते हुए भी एक तत्व को पूजे तो कितना अफसोस हैं। एक तत्व वाले को तो बोलना ही नहीं है। सब धर्मो में अगर कोई ऊँचा है तो उस मालिक की पूजा है जो हमारे अन्दर है।
एक जिज्ञासु: आदमी में भी परमात्मा है, लकड़ी पत्थर में भी परमात्मा है।
महाराज जी: मैं यह नहीं कहता कि आदमी के सिवा लकड़ी, पत्थर वगैरह दूसरी चीजों में परमात्मा नहीं है। मेरा मतलब सिर्फ यह है कि जिस तरह लकड़ी में आग है, लेकिन जलाती तो नहीं है। पर जब लकड़ी पर लकड़ी रख कर रगड़ेें तो आग जरूर निकलती है, इसी तरह बिना नाम की कमाई के मालिक नहीं मिलता और पूरे गुरु के बगैर नाम नहीं मिलता। दूसरे,
नाम की कमाई सिर्फ मनुष्य-जन्म में ही हो सकती है, किसी और में नहीं।
Radha Swami ji