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Home Hast Mudra

Hast Mudras/11 हस्त मुद्रायें स्वस्थ जीवन के लिए

Sudhir Arora by Sudhir Arora
June 12, 2021
Reading Time: 3 mins read
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Hast Mudras/11 हस्त मुद्रायें स्वस्थ जीवन के लिए

Side view of meditating woman sitting in pose of lotus against clear sky outdoors

रोग मुक्त एवं स्वस्थ जीवन के लिए अपनायें ये 11 हस्त मुद्रायें

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मानव जीवन बड़ेे भाग्य से मिलता है। मानव शरीर प्रकृति की अनुपम भेंट है। विभिन्न क्षेत्रों में आश्चर्यजनक खोज हो रही है। लेकिन मानव शरीर के बारे में बहुत कुछ जानना और समझना बाकी है।
हमारा हाथ विशेष ऊर्जा से भरा पड़ा है। मुद्रा विज्ञान ने बहुत पहले सिद्ध कर दिया था, कि हमारे हाथ की प्रत्येक उंगली से अलग-अलग प्रकार का विद्युत प्रवाह होता है।

पाँच उंगलियां पाँच महाभूतों का संचालन करती है।

1 :-अंगुष्ठ में अग्नि तत्व।

2 :-तर्जनी में वायु तत्व।

3 :-मध्यमा में आकाश तत्व।

4 :-अनामिका में पृथ्वी तत्व।

5 :-कनिष्ठा में जल तत्व।
प्रत्येक उंगली को एक विशेष प्रकार से मिलाने से विद्युत प्रवाह को घटाया या बढ़ाया जा सकता है।

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1 :- अपान मुद्रा:-

 

 

 

 

 

 

मध्यमा एवं अनामिका अंगुलियों के शीर्ष भाग को अंगूठे के शीर्ष भाग से मिलाकर तर्जनी एवं कनिष्ठा सीधा रखने से यह मुद्रा बनती है।

अपान मुद्रा से होने वाले लाभ:-

1 :- नसों और नाडी का शोधन होता है। वायु विकार एवं मधुमेह का शमन होता है।

2 :- मल एवं दोष सम्यक् रूप से बाहर निकलते हैं। कब्ज दूर होकर बवासीर में लाभ मिलता है।

3 :- पेट के सभी अंग स्वस्थ रहते हैं। न्ण्ज्ण्प् में भी इस मुद्रा से लाभ मिलता है।

4 :- गर्भावस्था में इस मुद्रा को रोज करने से प्रसव सामान्य रूप से हो जाता हैं। मासिक सम्बन्धी दोष भी ठीक होते है।

5 :- अपान मुद्रा एवं प्राण मुद्रा दोने के नित्य अभ्यास से आध्यात्मिक साधना का मार्ग प्रशस्त होता है।

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2 :- समान मुद्रा-( मुकुल मुद्रा ):-

अपने हाथों की चारों अंगुलियों के अग्रभाग को अंगूठे के अग्रभाग को मिलाकर आसमान की और करने से यह मुद्रा बनती है। इस मुद्रा में पंचतत्व का मिलन होता है। इस मुद्रा को 5 से 10 मिनट दिन में दो बार करने पर लाभ मिलता है।

समान मुद्रा से होने वाले लाभ:-

1:- इस मुद्रा के अभ्यास से मन में बुरे विचार दूर होकर धार्मिक विचार पैदा होते हैं।

2 :- समन्वय का भाव बढ़ता है। तत्वों का सन्तुलन होता है। शक्ति का विकास होता है, अनिष्ट का निवारण होता हैं।

3 :- समान मुद्रा नाभि से हृदय तक चलती है। इससे आज्ञा चक्र जाग्रत होता है।

विशोष:- यह मुद्रा लेजर थैरेपी के समान कार्य करती हैं। शरीर में जहां कहीं भी कमजोरी अथवा पीड़ा का अनुभव हो तो इस मुद्रा से बनी चोंच  को 5-5 मिनट रोग ग्रस्त अंग पर रखने से अतिशीघ्र लाभ मिलता है।

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3 :- व्यान मुद्रा:- 

व्यान वायु से ही हमारे शरीर की सब क्रियाएँ जैसे खून का चलना, आँखों का खुलना एवं झपकना, शरीर में खून का चलना, हमारा उठना-बैठना, का संचार व्यान वायु से ही होता है।

व्यान मुद्रा बनाने की विधि:-

हाथों की मध्यमा अंगुलियों और तर्जनी अंगुलियों के अग्रभाग को अंगूठे के अग्रभाग से मिलाकर बाकी दो अंगुलियों को सीधी रखने से यह मुद्रा बनती है।

व्यान मुद्रा से होने वाले लाभ:-

1 :- रक्त संचार ठीक प्रकार से होता है। रक्त चाप उच्च एवं निम्न दोंनों को सम अवस्था में ले जाती है।

2 :- शरीर में वात, पित और कफ तीनों का संतुलन बनाए्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्रँ रखती है।

3 :- पेशाब ज्यादा आना या रूक-रूक कर आना आदि रोग समाप्त हो जाते है।

4 :- स्त्रियों के मासिक र्घम को सामान्य करती है, स्त्रियों के सारे रोग समाप्त हो जाते हैं।

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4 :- उदान मुद्रा:- 

 

 

 

 

 

उदान मुद्रा शरीर में थायराॅयड को कंट्रोल करती है। थायराॅयड ग्रंथि को शरीर का पावर हाउस कहा जाता है। जिन लोगों के थायराॅयड से जुड़ी समस्या जैसे भूख का बढ़ना, पसीना अधिक आना, रक्तचाप का बढ़ जाना, नींद न आना, वजन का घटना शुरू हो जाता है। यह आसन उन लोगो के लिए काफी फायदेमंद होता है।

उदान मुद्रा बनाने की विधि:-

अंगूठे के अग्रभाग से मध्यमा, तर्जनी और अनामिका तीनो अंगुलियों को मिला कर कनिष्ठा उंगली (सब से छोटी उंगली) को सीधा रखने से यह मुद्रा बनती है। अग्नि, वायु, आकाश, और पृथ्वी तत्वों को आपस में मिलाने पर यह विशुद्धा चक्र को प्रभावित करती हैं।

उदान मुद्रा से होने वाले लाभ:-

1 :- थायराॅयड संबधी सभी रोगों में लाभकारी।

2 :-मन एवं मस्तिष्क दोनों सामान्य रूप से कार्य करते है।

3 :- बुद्धि का विकास होता है। स्मरण शक्ति बढ़ती है।

4 :- निर्णय क्षमता का विकास होता है।

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5 :- अपान वायु मुद्रा:-

अपानवायु मुद्रा का दूसरा नाम संजीवनी मुद्रा है। वायु मुद्रा़अपान मुद्रा यह दो मुद्राओं को एक साथ लगाया जाता है। इसका सीधा संम्बंध हृदय से होता है, यह हमारे हृदय को सही रखती है। यह रक्तचाप को ठीक रखने में सहायता करती है। हर रोज 20 से 30 मिनट तक इस मुद्रा को किया जा सकता है।

अपान वायु मुद्रा बनाने की विधि:-

अंगूठे के पास की उंगली यानी तर्जनी उंगली को अंगूठे के मूल में लगाएँ ( वायु मुद्रा ) अर्थात मध्यमा और अनामिका को मिलाकर अंगूठे के अग्रभाग से मिलाकर कनिष्ठा अंगुली को सीधा रखने से यह मुद्रा बनती है।

अपान वायु मुद्रा से होने वाले लाभ :-

1 :- घबराहट में सद्य लाभ मिलता है। हृदय शूल मंे लाभ होता है।

2 :- कमर दर्द, घुटनों का दर्द, गैस, एसिडिटी, पेट दर्द, जलन आदी में लाभ होता है।

3 :- थकावट से नींद ना आने पर इस मुद्रा से काफी राहत मिलती है।

4 :- उच्च रक्त चाप और निमन रक्त चाप दोनों में लाभ मिलता है।

5 :– यह मुद्रा फेफड़ों को स्वस्थ बनाती है, और अस्थमा में भी लाभ करती है।

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6 :- लिंग मुद्रा:-

शरीर में पांच तत्वों को संतुलित करने में हस्त मुद्राओं का महत्वपूर्ण योगदान रहा है। इन्ही मुद्राओं में से एक हैं लिंग मुद्रा। यह मुद्रा पुरुषत्व का प्रतीक है, शरीर में अग्नि तत्व ( गर्मी ) को संतुलित करने में मदद करती है। यह छाती की जलन और कफ को दूर करती है। व्यक्ति में स्फूर्ति और उत्सााह का संचार करती है। शरीर की अनावश्यक कैलोरी को हटाकर मोटापे को कम करती है। इसे अधिक देर तक करने पर सर्दियों में भी पसीना आ जाता है।

लिंग मुद्रा बनाने की विधि:-

अपने दोनों हाथों की अंगुलियों को आपस में एक दूसरे में फंसाकर रखें तथा मुट्ठी बंद को बंद करे और बायें हाथ के अंगूठे के बिलकुल सीधा खड़ा रखनें से यह मुद्रा बनती हैं।

लिंग मुद्रा से होने वाले लाभ:-

1 :- गलें में खराश से संबंन्धीत समस्याओं को दूर करती है।

2 :- सर्दियों में शरीर में गर्माहट उत्पन्न कर बीमारियों से बचाती है।

3 :- साइनस तथा रक्तचाप जैसी बीमारियों में अत्यंत लाभ पहुंचाती है।

4 :- यदि सर्दी के दिनोें में यदी सर्दी से बुखार हो गया हो तो इस मुद्रा से तुरंत आराम आता है।

5 :- स्त्रियों के मासिक स्त्राव सम्बंधित अनियमितता तथा पुरूषांे के समस्त यौन सम्बंधित रोगों में अत्यंत लाभ पहुंचाती है।

6 :- ज्यादा वजन उठाने या किसी भी कारण से अपने स्थान से हटी हुई नाभि पुनः आपने स्थान पर आ जाती है।

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7 :- शंख मुद्रा:-

 

आध्यात्मिक काल में भारत में शंख भी एक ऐसी वस्तु है जिसे तब फूंका जाता है जब कोई भी शुभ कार्य शुरू होने वाला होता है। जहंा शंख की ध्वनि सें रोगों में लाभ होता हैं। वही हस्त मुद्रा में भी शंख मुद्रा का खास महत्व है। इस मुद्रा से स्वर-तंतु ठीक होते हैं, वाणी में मधुरता आती है और वाक्शक्ति भी बढ़ती है। इसी तरह एक शंख मुद्रा आपके नियमित जीवन में एक अच्छी स्वस्थ प्रदान करने में सहायक सिद्ध होती है।

शंख मुद्रा बनाने की विधि:-

अपने बायें हाथ के अंगूठे को दायें हाथ की मुट्ठी में बन्द करकेे, दायें हाथ के अंगूठे को बायें हाथ की तर्जनी या मध्यमा अंगुली के अग्रभाग से मिलाएं। बायें हाथ की चारों अंगुलियां मिलाकर रखने से शंख जैसी आकृति बंन जाती है। इसी प्रकार से दूसरे हाथ से भी कर सकते हैं।

शंख मुद्रा से होने वाले लाभ:-

1 :-इस मुद्रा से गुदा संबंधित रोग जैसे बवासीर-फिशर आदि पूरी तरह से समाप्त हो जाते है।

2 :-गले के रोग (गले मेें खराश) जैसी समस्या तथा हकलाने से भी छुटकारा दिलाने में भी सहायता करती है।

3 :-महिलाओं में मासिक धर्म की अनियमितता समाप्त होती है।

4 :-पाचन शक्ति ठीक होती है, और कंठ की आवाज में मधुरता आती है।

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8 :-आदित्य मुद्रा:-

आप बार-बार छींके आने से परेशान है, खासकर सार्वजनिक स्थानों पर लगातार छींके आना या सुबह-सुबह उठते ही लगातार छींके आती है। इसके लिए यह मुद्रा रामबान उपाय है। यह समस्या शरीर में पृथ्वी तत्व की कमी के कारण होती है। इसका कारण मौसम परिवर्तन या फिर प्रदूषण भी हो सकता है। जिन लोगों को साधना करते समय कुछ रूकावट महसूस होती है। आदित्य मुद्रा करने से लाभ मिलता है।

आदित्य मुद्रा बनाने की विधि:-

अपने हाथ के अंगूठे के अग्रभाग को अनामिका अंगुली के मूल में लगाकर बाकी सभी अंगुलियों को मिलाकर सीधी रखने से यह मुद्रा बनती है। अपने दोनों हाथों को पास-पास रखें।

आदित्य मुद्रा से होने वाले लाभ:-

1 :- इस मुद्रा को करने से लगातार आने वाली छींके रूक जाती है।

2 :- इस मुद्रा को करने के बाद प्राण मुद्रा करने से शरीर की कमजोरी दूर होती है।

3 :- इस मुद्रा को करने से स्कीन की एलर्जी का शमन होता हैं।

4 :- इस मुद्रा को ज्यादा करने से वैराग्य की भावना प्रबल होती है अतः इसे ज्यादा देर तक मत करें।

………………………………………………………………………………………………………………………………………………………

9 :- कुबेर मुद्रा:-

भारत में कुबेर को धन और स्मृद्धि के देवता के रूप में माना जाता हैं। इसलिये इसे लक्ष्मी या धन मुद्रा भी कहते है। शरीर में किसी भी प्रकार का तनाव अथवा आत्मव्श्रिास की कमी और हमारे पंच तत्व पृथ्वी, जल, आकाश, अग्नि, और वायु के असंतुलन के कारण होते है। कुबेर मुद्रा इन तत्वों का संतुलन करती है। हमारे इरादो को मजबूत कर लक्ष्य प्राप्ति के लिए आगे बढ़ाने में मदत करती है।

कुबेर मुद्रा बनाने की विधि:-

अपनी हथेली की अनामिका और कनिष्ठा दोनों अंगुलियों को हथेली के मध्य में दबाकर तर्जनी एवं मध्यमा अंगुलियों के अग्रभाग से अंगूठे के अग्रभाग से लगाने से यह मुद्रा बनती है।

कुबेर मुद्रा से होने वाले लाभ:-

1 :- इस मुद्रा को करने से आपकी एकाग्रता और सोचने की क्षमता बढ़ती है, मन शांत रहने लगता है।

2 :- यह मुद्रा आपको तनावमुक्त तथा सकारात्मक सोच से भरती है।

3 :- यह मुद्रा करने से साइनस संक्रमण के कारण होने वाला सिरदर्द और सिर का भारीपन दूर होता है।

4 :- पृथ्वी और जल तत्च की अधिकता को कम कर के कफ की समस्या को दूर करती है।

……………………………………………………………………………………………………………………………………………………….

10 :- सन्धि मुद्रा:-

जोड़ो का दर्द यह रोग खराब जीवनशैली से उपजा रोग है। एक ही स्थिति में लगातार बैठे रहने या सारा दिन खड़े रहने ,किसी प्रकार की चोट, जोड़ पर दबाव पड़ने, ज्यादा प्रोटीनयुक्त पदार्थों का सेवन करने से आर्थराइटिस की समस्या उत्पन हो सकती है। यह समस्या पुरूषों के मुकाबले महिलाओं में ज्यादा पाई जाती है। जिनका वजन अधिक होता है, उनके जोड़ों में दर्द की संभावना अधिक होती है। शरीर में जहां कहीं भी जोड़ो में दर्द हो, तो संधि मुद्रा करने से लाभ होगा।

सन्धि मुद्रा बनाने की विधि:-

दायें हाथ से पृथ्वी मुद्रा बनाये, आर्थत् अंगुठे को अनामिका अंगुली के अग्रभाग से मिलाकर शेष अंगुलियों को सीधा रखें। बायें हाथ से आकाश मुद्रा बनाये, अर्थात् बायें अंगुठे को मध्यमा अंगुली के अग्रभाग से मिलाकर शेष अंगुलियों को सीधी रखने से संन्धि मुद्रा बनती हैं।

सन्धि मुद्रा करने से लाभ:-

1 :- संन्धि मुद्रा को करने से शरीर में जहां कहीं भी जोड़ो में दर्द हो, उससे राहत मिलती है।
2 :- संन्धि मुद्रा आर्थराइटिस के रोगियों के लिए भी बेहद फायदेमंद होती है।
3 :- संन्धि मुद्रा का 10 से 15 मिनट प्रतिदिन दिन में 3-4 बार प्रयोग करने से लाभ प्राप्त होता है।
4 :- स्वस्थ व्यक्ति प्रतिदिन 10 मिनट तक इसका प्रयोग करके अपने शरीर को संधियों को स्वस्थ रख सकता हैं।

……………………………………………………………………………………………………………………………………………………

11 :- महाशीर्ष मुद्रा:-

किसी भी प्रकार के सिरदर्द, माइग्रेन, सर्वाइकल, बदहजमी, ठंडे अथवा गर्म मौसम के बदलने, मासिक धर्म और कमर दर्द या किसी भी कारण से होने वाले सिरदर्द में तुरन्त आराम मिलता है। सिरदर्द का कारण कफ-सर्दी अथवा गर्मी व थकान भी हो सकता है।

महाशीर्ष मुद्रा बनाने की विधि:-

अनामिका अंगुली को मोडकर अंगूठे के मूल में लगाकर तर्जनी एवं मध्यमा अंगुलियों के अग्रभाग को अंगूठे के अग्रभाग से मिलाकर कलिष्ठा अंगुली को सीधी रखने से यह मुद्रा बनती है।

महाशीर्ष मुद्रा से होने वाले लाभ:-

1 :- इस मुद्रा को करने से किसी भी कारण से सिर दर्द हो लाभ होता है। तनाव भी कम होता है।

2 :- इस मुद्रा का प्रयोग 5-6 मिनट ही करें। दिन में 3-4 बार कर सकते है।

 

 

 

 

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