*प्रभु की मर्ज़ी *
एक महात्मा थे। जीवन भर उन्होंने भजन ही किया था। उनकी कुटिया के सामने एक तालाब था। जब उनका शरीर छूटने का समय आया तो देखा कि एक बगुला मछली मार रहा है। उन्होंने बगुले को उड़ा दिया। इधर उनका शरीर छूटा तो नरक गये। उनके चेले को स्वप्न में दिखायी पड़ा:- वे कह रहे थे- “बेटा! हमने जीवन भर कोई पाप नहीं किया, केवल बगुला उड़ा देने मात्र से नरक जाना पड़ा। तुम सावधान रहना।”
जब शिष्य का भी शरीर छूटने का समय आया तो वही दृश्य पुनः आया। बगुला मछली पकड़ रहा था। गुरु का निर्देश मानकर उसने बगुले को नहीं उड़ाया। मरने पर वह भी नरक जाने लगा तो गुरुभाई को आकाशवाणी हुई कि गुरुजी ने बगुला उड़ाया था इसलिए नरक गये। हमने नहीं उड़ाया इसलिए नरक में जा रहे हैं। तुम बचाना !!
गुरुभाई का शरीर छूटने का समय आया तो संयोग से पुनः बगुला मछली मारता दिखाई पड़ा। गुरुभाई ने भगवान् को प्रणाम किया कि भगवन् आप ही मछली में हो और आप ही बगुले में भी। हमें नहीं मालूम कि क्या झूठ है ? क्या सच है ? क्या पाप है, क्या पुण्य है ? आप अपनी व्यवस्था देखें। मुझे तो आपके चिन्तन की डोरी (भजन सुमिरन) से मतलब है। वह शरीर छूटने पर प्रभु के धाम गया।
नारद जी ने भगवान से पूछा, “भगवन् ! अन्ततः वे नरक क्यों गये ? महात्मा जी ने बगुला उड़ाकर कोई पाप तो नहीं किया ?” उन्होंने कहा, “नारद! उस दिन बगुले का भोजन वही था। उन्होंने उसे उड़ा दिया। भूख से छटपटाकर बगुला मर गया अतः पाप हुआ, इसलिए नरक गये।” नारद ने पूछा, “दूसरे ने तो नहीं उड़ाया, वह क्यों नरक गया ?” बोले, _”उस दिन बगुले का पेट भरा हुआ था। वह विनोदवश मछली पकड़ रहा था, उसे उड़ा देना चाहिए था। शिष्य से भूल हुई, इसी पाप से वह नरक गया।” नारद ने पूछा, “और तीसरा ?” भगवान् ने कहा, “तीसरा अपने भजन सुमिरन में लगा रहा और सारी जिम्मेदारी हमको सौंप दी। जैसी होनी थी, वह हुई। किन्तु मुझ से सम्बन्ध जोड़े रहने के कारण, मेरे ही चिन्तन के प्रभाव से वह मेरे धाम को प्राप्त हुआ।।”
अत: पाप-पुण्य की चिन्ता में समय को न गँवाकर जो निरन्तर चिन्तन(भजन सुमिरन) में लगा रहता है, वह पा जाता है। जितने समय हमारा मन प्रभु के नाम, रुप, गुण, धाम और संतों की संगत में रहता है केवल उतने समय ही हम पापमुक्त रहते हैं, शेष सारे समय पाप ही पाप करते रहते हैं।
संत महात्मा समझाते हैं कि:- “भजन-सिमरन के अतिरिक्त जो कुछ भी किया जाता है वह इसी लोक में बाँधकर रखने वाला है, जिसमें खाना-पीना सभी कुछ आ जाता है। पाप, पुण्य दोनों बन्धनकारी हैं, इन दोनों को छोड़कर जो भक्ति वाला कर्म है अर्थात् मन को निरंतर भगवान के श्री चरणों में लगा कर रखें तो पाप, पुण्य दोनों भगवान को अर्पित हो जाएंगे। भगवान केवल मन की क्रिया ही नोट करेंगे, इसका मन तो मुझ में था, इसने कुछ किया ही नहीं। यह भक्ति ही भव बंधन काटने वाली है।
*राधा स्वामी जी*
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*छु कर मेरे मन को*
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प्रेरणादायक दंड
अमेरिका में एक पंद्रह साल का लड़का था
, स्टोर से चोरी करता हुआ पकड़ा गया। पकड़े जाने पर गार्ड की गिरफ्त से भागने की कोशिश में स्टोर का एक शेल्फ भी टूट गया।
जज ने जुर्म सुना और लड़के से पूछा, “तुमने क्या सचमुच ब्रैड और पनीर का पैकेट” चुराया था ?
लड़के ने नीचे नज़रें कर के जवाब दिया। ;- हाँ’।
जज,:- ‘क्यों ?’ लड़का,:- मुझे ज़रूरत थी।
जज:- ‘खरीद लेते। लड़का:- ‘पैसे नहीं थे।’ जज:- घर वालों से ले लेते।’ लड़का:- ‘घर में सिर्फ मां है। बीमार और बेरोज़गार है, ब्रैड और पनीर भी उसी के लिए चुराई थी जज:- तुम कुछ काम नहीं करते ?
लड़का:- करता था एक कार वाशिंग प्वाइंट में।
मां की देखभाल के लिए एक दिन की छुट्टी की थी, तो मुझे निकाल दिया गया।’ जज:- तुम किसी से मदद मांग लेते? लड़का:- सुबह से घर से निकला था, तकरीबन पचास लोगों के पास गया, बिल्कुल आख़िर में ये क़दम उठाया।
जिरह ख़त्म हुई, जज ने फैसला सुनाना शुरू किया, चोरी और पनीर ब्रैड की चोरी बहुत शर्मनाक जुर्म है । और इस जुर्म के हम सब ज़िम्मेदार हैं। ‘अदालत में मौजूद हर शख़्स मुझ सहित सब मुजरिम हैं, इसलिए यहाँ मौजूद हर शख़्स पर दस-दस डालर का जुर्माना लगाया जाता है। दस डालर दिए बग़ैर कोई भी यहां से बाहर नहीं निकल सकेगा।’
ये कह कर जज ने दस डालर अपनी जेब से बाहर निकाल कर रख दिए और फिर पेन उठाया लिखना शुरू किया:- इसके अलावा मैं स्टोर पर एक हज़ार डालर का जुर्माना करता हूं कि उसने एक भूखे बच्चे से ग़ैर इंसानी सुलूक करते हुए पुलिस के हवाले किया।
अगर चौबीस घंटे में जुर्माना जमा नहीं किया तो कोर्ट स्टोर सील करने का हुक्म दे देगी।’ जुर्माने की पूर्ण राशि इस लड़के को देकर कोर्ट उस लड़के से माफी तलब करती है। फैसला सुनने के बाद कोर्ट में मौजूद लोगों के आंखों से आंसू तो बरस ही रहे थे, उस लड़के के भी हिचकियां बंध गईं।
वह लड़का बार बार जज को देख रहा था जो अपने आंसू छिपाते हुए बाहर निकल गये।
क्या हमारा समाज, सिस्टम और अदालत इस तरह के निर्णय के लिए तैयार है ? चाणक्य ने कहा है कि यदि कोई भूखा व्यक्ति रोटी चोरी करता पकड़ा जाए तो उस देश के लोगों को शर्म आनी चाहिए ।
*राधा स्वामी जी*
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{गोरा राम, काला राम}
✍️एक समय की बात है एक गुरु के २ शिष्ये थे एक का नाम (गोरा राम) और दुसरे का नाम (काला राम) था, गुरु जी का ज्यादा लगाव (काले राम) के साथ था और गुरु जी उसको ज्यादा अहमियत देते थे,
एक दिन एक शख्स ने उनसे से पुछा गुरु जी आप (गोरे) से ज्यादा (काले) को तवज्जह क्यूँ देते है जब कि (गोरा) सुबह शाम पाठ पूजा करता है और रोज रामायण भी पड़ता है और डेरे मे खूब सेवा भी करता है,
तब गुरु जी ने कहा कल सुबह आप हमारे डेरे मे एक ऊंठ लेकर आईयेगा फिर मै आपकी बात का जवाब दुंगा, वो शख्स दुसरे दिन एक ऊंठ लेकर डेरे पहुँच गया, और कहा लीजिए हुजूर मै ऊंठ ले आया
गुरु जी ने (गोरे) को आवाज दी और कहा के गोरेराम यह ऊंठ छत पर चढ़ा दो,
गोरे राम ने कहा हुजूर यह कैसे हो सकता है यह ऊंठ बहुत बड़ा है और मुझमे ईतना बल नही के मै इसे उठा सकूँ, गुरु जी ने कहा ठीक है आप जाओ अपना काम करो
थोड़ी देर बाद गुरु जी ने (कालेराम) को आवाज दी और कहा कालेराम: यह ऊँठ जरा छत पर चढ़ा दो, कालेराम ने बिना कोई सवाल किए ऊँठ की टाँगो मे अपना सिर फँसा कर अपने कँधों से ऊठ उठाने के लिए जोर लगाने लगा,
इस पर गुरु जी ने उस शख्स की और देखकर कहा यही आपके सवाल का जवाब है,
सच्चा शिष्य वही है जो तन से नही मन् से जुड़े, अपने सतगुरु के हुक्म की परख न करें, संत मार्ग मे बुद्धि से काम नही चलता, बल्कि बुद्धु बनना पड़ता है !!
*राधा स्वामी जी*
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*पारसमणि और परमात्मा *
एक लोक कथा प्रचलित है। की एक बार एक संत किसी नदी के किनारे खड़े अत्यंत ध्यान से उसकी लहरो को देख रहे थे, इतने मे एक दरिद्र व्यक्ति उनके पास पहुँचा और बोला -“हे महान संत! मै धन के आभाव मे दर दर भीख माँग रहा हूँ। मेरे बच्चे भूख से बिलख रहे है।मेरा जीवन अत्यंत दुःखमय हो गया हैं।यदि आप जैसे तपस्वी संत की कृपाद्रष्टि हो जाये तो मेरी स्थिति सुधर सकती हैँ।
संत ने अत्यंत स्नेह से पूछा, बताओ मैं तुम्हारी किस तरह मदद कर सकता हूँ।
निर्धन व्यक्ति ने कहा, आप मेरे लिए कुछ धन की व्यवस्था करा दीजिये।संत ने कहा, मेरे पास तो ऐसा धन हैं नहीं, लेकिन नदी के उस पार, जहाँ बालू का ढेर हैं, वहाँ जाकर देखो, शायद तुम्हारा भाग्य चमक जाये। कल मैंने वहाँ पारस मणि पड़ी देखी थी।
निर्धन व्यक्ति यह जानकारी पाकर अत्यंत प्रसन्न हुआ, तुरंत बालू के ढेर की और दौड़ गया।वहाँ जाकर वह पारसमणि को खोजने लगा।थोड़ी देर मे उसे वास्तव मे वह मणि वहाँ पड़ी हुई मिल गयी।
उस गरीब व्यक्ति के हाथ मे लाठी थी, जिसके किनारे पर थोडा लोहा लगा हुआ था। उसने उस लोहे को पारसमणि से छुवा दिया, सारा लोहा सोने मे बदल गया। उस निर्धन के आनंद की सीमा न रही,वह ख़ुशी से नाचने लगा।
लेकिन तभी अचानक उसके मन मे एक ख्याल आया आखिर संत के पास ऐसी कौन सी चीज या पारस है, जिसकी वजह से उन्हें पारसमणि भी व्यर्थ जान पड़ी।
वह फिर संत के पास वापस पहुँचा और बोला -करुणामय संत इस बार मैं कुछ माँगने नहीं आया हूँ , सिर्फ एक जानकारी चाहता हूँ , कृपया यह बता दीजिये की वह कौनसी चीज है । जिसे पाकर आपने पारसमणि को भी पत्थर की तरह तुच्छ समझा और उसे आप वही छोड़कर आ गए।
इसके उत्तर मे संत ने केवल चार अक्षरों का एक छोटा सा शब्द अपने मुख से निकाला…
🙏🏾परमात्मा है 🙏🏾
अनंत ऐश्वर्य युक्त परमात्मा के गुणों का आनन्द इस पारस पथ्थर से अनंत गुणा ज्यादा है।…
*राधा स्वामी जी*
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*भगवान की प्राप्ति*
जब हम छोटे बच्चे थे, पड़ोस में जब किसी के यहां कंस्ट्रक्शन का काम चलता था तो रेती बाहर ही पड़ी रहती थी, हम उस पर खेलते कूदते थे।
उस रेत पर हम छोटे छोटे घर बनाते थे, और कहते थे, यह मेरा घर, यह तेरा घर और कभी कभी जब वह ढह जाता था तो एक दूसरे से लड़ते भी थे, और कहते थे, ”ये मेरा एरिया है और वो तेरा”
जबकि उस रेत की कोई कीमत नही रहती, और जब खेलते खेलते समय हो जाता, घर से मां पुकारती थी, चलो जल्दी खाना खा लो, बहुत देर हो गई है, जल्दी आओ।
तो हम उस रेत को, उस एरिया को, यहां तक कि उस घर को जो हमने बनाया था, जिसके लिये लड़ रहे थे, उसे भी छोड़कर चले जाते थे। क्योंकि हम जानते थे, वह सिर्फ खेल कूद की ही जगह थी, हमारा असली घर तो वो है जहां से हमें पुकारा गया है।
इस जीवन का भी ऐसा ही है जब मालिक का बुलावा आयेगा, सब जैसे का तैसा छोड़कर चले जाना है। फिर इन सांसारिक चीजों के लिये इतने समय की बर्बादी क्यों?
विचार करें, जो कुछ करना है वो अब ही करना है। जो मकसद है वह करना है। मक्सद सिर्फ एक ही, ईश्वर की प्राप्ती!
*राधा स्वामी जी*
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—आत्मा से तृप्त लोग—
दिल्ली बस स्टैंड पर बैठा मैं पंजाब जाने वाली बस का इंतजार कर रहा था। अभी बस काउंटर पर नही लगी थी।
मैं बैठा हुआ एक किताब पढ़ रहाथा। मेरे को देखकर कोई 10 एक साल की बच्ची मेरे पास आकर बोली, “बाबू पैन ले लो,10 के चार दे दूंगी। बहुत भूख लगी है कुछ खा लूंगी।”
उसके साथ एक छोटा-सा लड़का भी था, शायद भाई हो उसका।
मैंने कहा: मुझे पैन तो नहीं चाहिए।
उसका जवाब इतना प्यारा था, उसने कहा, फिर हम कुछ खाएंगे कैसे ?*
मैंने कहा: मुझे पैन तो नहीं चाहिए पर तुम खाओगे कुछ जरूर।
मेरे बैग में बिस्कुट के दो पैकेट थे, मैने बैग से निकाल एक-एक पैकेट दोनों को पकड़ा दिया। पर मेरी हैरानी की कोई हद ना रही जब उसने एक पैकेट वापिस करके कहा,”बाबू जी!एक ही काफी है, हम बाँट लेंगे”।
मैं हैरान हो गया जवाब सुन के !
मैंने दुबारा कहा: “रख लो, दोनों कोई बात नहीं।”
फिर आत्मा को झिझोड़ दिया उसके के जवाब ने उसने कहा: “तो फिर आप क्या खाओगे”?
मैंने अंदर ही अंदर अपने आप से कहा कि ये होते हैं आत्मा के तृप्त लोग।
बेशक कपड़े होण मैले,
पर इज्जत होवे कजी।
ढिडों बेशक भुखा होवे,
पर रूह होवे रज्जी।
*राधा स्वामी जी*
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*यात्रा बहुत छोटी है*
एक बुजुर्ग महिला बस में यात्रा कर रही थी।अगले पड़ाव पर,एक मजबूत,क्रोधी युवती चढ़ गई और बूढ़ी औरत के बगल में बैठ गई।उस क्रोधी युवती ने अपने बैग से कई बार चोट पहुंचाई।
जब उसने देखा कि बुजुर्ग महिला चुप है,तो आखिरकार युवती ने उससे पूछा कि जब उसने उसे अपने बैग से मारा तो उसने शिकायत क्यों नहीं की?
बुज़ुर्ग महिला ने मुस्कुराते हुए उत्तर दिया:”असभ्य होने या इतनी तुच्छ बात पर चर्चा करने की कोई आवश्यकता नहीं है, क्योंकि आपके बगल में मेरी यात्रा इतनी छोटी है,क्योंकि मैं अगले पड़ाव पर उतरने जा रही हूं।”
यह उत्तर सोने के अक्षरों में लिखे जाने के योग्य है:”इतनी तुच्छ बात पर चर्चा करने की कोई आवश्यकता नहीं है,क्योंकि हमारी यात्रा एक साथ बहुत छोटी है।”
हम में से प्रत्येक को यह समझना चाहिए कि इस दुनिया में हमारा समय इतना कम है कि इसे बेकार तर्कों,ईर्ष्या,दूसरों को क्षमा न करने,असंतोष और बुरे व्यवहार के साथ काला करना समय और ऊर्जा की एक हास्यास्पद बर्बादी है। क्या किसी ने आपका दिल तोड़ा?शांत रहें।
यात्रा बहुत छोटी है।क्या किसी ने आपको धोखा दिया,धमकाया,धोखा दिया या अपमानित किया?आराम करें – तनावग्रस्त न हों
यात्रा बहुत छोटी है,क्या किसी ने बिना वजह आपका अपमान किया?शांत रहें।इसे नजरअंदाज करो।यात्रा बहुत छोटी है।
क्या किसी पड़ोसी ने ऐसी टिप्पणी की जो आपको पसंद नहीं आई?शांत रहें।उसकी ओर ध्यान मत दो।इसे माफ कर दो।यात्रा बहुत छोटी है।किसी ने हमें जो भी समस्या दी है, याद रखें कि हमारी यात्रा एक साथ बहुत छोटी है।
हमारी यात्रा की लंबाई कोई नहीं जानता।कोई नहीं जानता कि यह अपने पड़ाव पर कब पहुंचेगा।हमारी एक साथ यात्रा बहुत छोटी है।
आइए हम दोस्तों और परिवार की सराहना करें,आइए हम आदरणीय, दयालु और क्षमाशील बनें,क्योंकि आखिरकार हम कृतज्ञता और आनंद से भर जाएंगे,हमारी एक साथ यात्रा बहुत छोटी है।
अपनी मुस्कान सबके साथ बाँटिये ना,हमारी यात्रा बहुत छोटी है
*राधा स्वामी जी*
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*भगवान का घर*
कल दोपहर मैं बैंक में गया था! वहाँ एक बुजुर्ग भी अपने काम से आये थे! वहाँ वह कुछ ढूंढ रहे थे! मुझें लगा शायद उन्हें पैन चाहिये! इसलियें उनसे पुछा तो, वह बोलें “बिमारी के कारण मेरे हाथ कांप रहे हैं और मुझें पैसें निकालनें की स्लीप भरनी है उसके लिये मैं देख रहा हूँ कि कोई मदद कर दे!”
मैं बोला “आपको कोई हर्ज न हो तो मैं आपकी स्लीप भर देता हूँ….!”
उन्होंने मुझे स्लीप भरने की अनुमति दे दी! मैंने उनसे पुछकर स्लीप भर दी!
रकम निकाल कर उन्होंने मुझसें पैसे गिनने को कहा मैंने पैसें भी गिन दियें!
हम दोनों एक साथ ही बैंक से बाहर आये तो, बोले “साॅरी बेटा, तुम्हें थोडा कष्ट तो होगा परन्तु मुझे रिक्क्षा करवा दो इस भरी दोपहरी में रिक्क्षा मिलना बडा़ ही कष्टकारी होता है!”
मैं बोला “मुझे भी उसी तरफ जाना है, मैं आपको कार से आपके घर तक छोड देता हूँ!”
वह तैयार हो गये। हम उनके घर पहूँचें! ’60’ × 100′ के प्लाट पर बना हुआ घर क्या बंगला कह सकते हो! घर में उनकी वृद्ध पत्नी थीं! वह थोडी डर गई कि इनको कुछ हो तो नहीं गया जिससे उन्हें छोड़नें एक अपरिचित व्यक्ति घर तक आया हैं! फिर उन्होंने पत्नी के चेहरे पर आये भावों को पढकर कहा कि “चिंता की कोई बात नहीं यह मुझें छोड़नें आये हैं!”
फिर बातचीत में वह बोले “इस भगवान के घर में हम दोनों पति-पत्नी ही रहते हैं! हमारे बच्चे तो विदेश में रहते हैं।”
मैंने जब उन्हें भगवान के घर के बारे में पुछा तो उन्होंने बताया कि “हमारे परिवार में भगवान का घर कहने की पुरानी परंपरा है! इसके पीछे की भावना हैं कि यह घर भगवान का है और हम उस घर में रहते हैं!
जबकि लोग कहते हैं कि “घर हमारा है और भगवान हमारे घर” में रहते है!”
मैंने विचार किया कि दोनों कथनों में कितना अंतर है! तदुपरांत वह बोले…
“भगवान का घर” बोला तो अपने से कोई “नकारात्मक कार्य नहीं होते और हमेशा सदविचारों से ओत प्रेरित रहतें हैं।”
बाद में मजाकिया लहजें में बोले …
“लोग मृत्यु उपरान्त भगवान के घर जाते हैं परन्तु हम तो जीते जी ही भगवान के घर का आनंद ले रहे हैं!”
यह वाक्य ही जैसे भगवान ने दिया कोई प्रसाद ही है!
भगवान ने ही मुझे उनको घर छोडने की प्रेरणा दी!
“घर भगवान का और हम उनके घर में रहते हैं”
यह वाक्य बहुत दिनों तक मेरे दिमाग में घुमता रहा, सही में कितने अलग विचार थे!
हमको उपरोक्त प्रसंग से प्रेरित होकर अगर हम इस पर अमल करेंगे तो हमारे और आनेवाली पीढियों के विचार भी वैसे ही हौंगे!
अच्छे कार्य का प्रारंभ जब से भी करो वही नई सुबह है!
*राधा स्वामी जी*
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{ विनम्रता का अभाव मनुष्य को घोर अहंकारी बना देता है }
एक बार नदी ने समुद्र से बड़े ही गर्वीले शब्दों में कहा बताओ पानी के प्रचंड वेग से मैं तुम्हारे लिए क्या बहा कर लाऊं ? तुम चाहो तो मैं पहाड़, मकान, पेड़, पशु, मानव आदि सभी को उखाड़ कर ला सकती हूं ।
समुद्र समझ गया कि नदी को अहंकार आ गया है । उसने कहा, यदि मेरे लिए कुछ लाना ही चाहती हो तो थोड़ी सी घास उखाड़ कर ले आना । समुद्र की बात सुनकर नदी ने कहा, बस, इतनी सी बात ! अभी आपकी सेवा में हाजिर कर देती हूं । नदी ने अपने पानी का प्रचंड प्रवाह घास उखाड़ने के लिए लगाया परंतु घास नहीं उखड़ी । नदी ने हार नहीं मानी और बार-बार प्रयास किया पर घास बार-बार पानी के वेग के सामने झुक जाती और उखड़ने से बच जाती । नदी को सफलता नहीं मिली ।
थकी हारी निराश नदी समुंद्र के पास पहुंची और अपना सिर झुका कर कहने लगी, मैं मकान, वृक्ष, पहाड़, पशु, मनुष्य आदि बहाकर ला सकती हूं परंतु घास उखाड़ कर नहीं ला सकी क्योंकि जब भी मैंने प्रचंड वेग से घास पर प्रहार किया उसने झुककर अपने आप को बचा लिया और मैं ऊपर से खाली हाथ निकल आई ।
नदी की बात सुनकर समुद्र ने मुस्कुराते हुए कहा, जो कठोर होते हैं वह आसानी से उखड़ जाते हैं लेकिन जिसने घास जैसी विनम्रता सीख ली हो उसे प्रचंड वेग भी नहीं अखाड़ सकता । समुद्र की बात सुनकर नदी का घमंड भी चूर चूर हो गया ।
विनम्रता अर्थात् जिसमें लचीलापन है, जो आसानी से मुड़ जाता है, वह टूटता नहीं । नम्रता में जीने की कला है, शौर्य की पराकाष्ठा है । नम्रता में सर्व का सम्मान संचित है । नम्रता हर सफल व्यक्ति का गहना है । नम्रता ही बड़प्पन है । दुनिया में बड़ा होना है तो नम्रता को अपनाना चाहिए । संसार को विनम्रता से जीत सकते हैं । ऊंची से ऊंची मंजिल हासिल कर लेने के बाद भी अहंकार से दूर रहकर विनम्र बने रहना चाहिए ।
विनम्रता के अभाव में व्यक्ति पद में बड़ा होने पर भी घमंड का ऐसा पुतला बनकर रह जाता है जो किसी के भी सम्मान का पात्र नहीं बन पाता । स्थान कोई भी हो, विनम्र व्यक्ति हर जगह सम्मान हासिल करता है । जहां विरोध हो जहां प्रतिरोध और बल से काम नहीं चल सकता । विनम्रता से ही समस्याओं का हल संभव है । विनम्रता के बिना सच्चा स्नेह नहीं पाया जा सकता । जो व्यक्ति अहं कार और वाणी की कठोरता से बचकर रहता है वही सर्वप्रिय बन जाता है..!!
*राधा स्वामी जी*
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