*सन्त कैसे जिन्दगी बदल देते हैं*
एक बार बारिश के मौसम में कुछ साधु महात्मा अचानक कबीर साहब के घर आ गये। बारिश के कारण कबीर साहिब बाजार में कपड़ा बेच नहीं सके थे और घर में मेहमानों के लिये खाना काफी नहीं था। उन्होंने अपनी पत्नी लोई से पूछा, ”क्या कोई दुकनदार कुछ आटा-दाल हमें उधार दे देगा जिसे हम बाद में कपड़ा बेच कर चुका देगें।“ पर एक गरीब जुलाहे को भला कौन उधार देता जिसकी कोई निश्चित आय भी नहीं थी।
लोई कुछ बनियों की दुकानों पर गई पर सभी ने नकद पैसे माँगे। आखिर एक बनिया उधार देने को तैयार हो गया पर उसने शर्त रखी कि वह एक रात उसके साथ बितायेगी। इस नीचतापूर्ण शर्त पर लोई को बुरा तो बहुत लगा, लेकिन वह खामोश रही। जितना आटा-दाल उन्हें चाहिये था, बनिये ने दे दिया। जल्दी से घर आकर लोई ने खाना बनाया, और जो बातचीत बनिये से हुई थी कबीर साहिब को बताई।
रात होेने पर कबीर साहिब ने लोई से कहा कि बनिये का कर्ज चुकाने का वक्त आ गया है। साथ में यह भी कहा कि चिन्ता मत करना, सब ठीक हो जायेगा। जब वह तैयार हो गई तो वे बोले, ”बारिश हो रही है और गली कीचड़ से भरी है। तुम कंबल ओढ़ लो मैं तुम्हें कन्धे पर उठा कर ले चलता हूँ।“ जल्दी ही दोनों बनिये के घर पहुँचे गये। लाई अन्दर चली गई और कबीर साहिब दरवाजे के बाहर उसका इन्तिजार करने लगे। लोई को देख कर बनिया बहुत खुश हुआ, पर जब उसने देखा कि बारिश में बाबजूद न लोई के कपड़े भीगे हैं और न पाँव, तो उसे बहुत हैरानी हुई। उसने पूछा, ”यह क्या बात है कि कीचड़ से भरी गली में से तुम आई हो, फिर भी तुम्हारे पाँवों पर कीचड़ का एक छीटा भी नहीं ?“ लोई ने जवाब दिया, ”इसमे हैरानी की कोई बात नहीं, मेरे पति मुझे कंबल ओढ़ा कर अपने कन्धे पर बिठा कर यहाँ लाये हैं।“
यह सुन कर बनिया दंग रह गया। लोई का निष्पाप चेहरा देख कर वह बहुत प्रभावित हुआ और अविश्वास से उसे देखता रहा। जब लोई ने कहा कि उसके पति कबीर वापस ले जाने के लिए बाहर इन्तिजार कर रहे हैं तो बनिया अपनी नीचता और कबीर साहिब की महानता को देख कर शर्म से पानी-पानी हो गया। उसने लोई और कबीर साहिब दोनों के आगे घुटने टेक कर माफी माँगी।
”उठो, मेरे भाई”, कबीर साहिब बोले,” लाखों में कोई एक ऐसा होगा जो कभी न कभी रास्ते से भटक नहीं जाता।“
कबीर साहिब और उनकी पत्नी अपने घर लौट आये। बनिया देर रात तक कोने में बैठा बीती हुई घटना के बारे में सोचता रहा। अन्त में इस नतीजे पर पहुँचा कि अपनाने के लिये संसार में एक ही मार्ग है, वह है परमार्थ का मार्ग। सुबह कबीर साहिब को ढूँढता हुआ वह उनके घर पहुँचा और समय बीतने पर उनके प्रेमी शिष्यों में गिना जाने लगा।
भटके हुए जीवों को सही रास्ते पर लाने के लिये सन्तों के अपने ही तरीके होते हैं।