बानी स्वामी जी महाराज
‘बचन सातवाँ शब्द पहला ‘
करू बेनती दोउ कर जोरी, अर्ज सुनो राधास्वामी मोरी।
सत्त पुरुष तुम सतगुरु दाता, सब जीवन के पितु और माता।
दया धार अपना कर लीजे, काल जाल से न्यारा कीजे।
सतयुग त्रेता द्वापर बीता, काहु न जानी शब्द की रीता ।
कलयुग में स्वामी दया विचारी, परगट करके शब्द पुकारी।
जीव काज स्वामी जग में आये, भौ सागर से पार लगाये।
तीन छोड़ चैथा पद दीन्हा, सत्तनाम सतगुरु गत चीन्हा ।
जगमग जोत होत उजियारा, गगन सोत पर चन्द्र निहारा।
सेत सिंहासन छत्र बिराजे, अनहद शब्द गैब धुन गाजे।
क्षर अक्षर निःअक्षर पारा, बिनती करे जहाँ दास तुम्हारा।
लोक अलोक पाऊं सुख धामा, चनर सरन दीजे बिसरामा।
करूँ बेनती दोउ कर जोरी, अर्ज़ सुनो राधास्वामी मोरी।
( राधा स्वामी जी )
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१ – साखी हज़ूर साहिब ,
महाराज चरण सिंह जी के जमाने की बात है एक सेवादार जिसका नाम था श्री राम दास जो दिल्ली से Beas भंडारे के दिनों में कैंटीन में सेवा करने के लिए आता था और वो दिल्ली से पैदल चल कर आता था रास्ते भर कुछ नहीं खाना केवल निम्बू पानी पीता था शरीर भी भारी था
जब 1962 में जंग लगीं थी तो मिलिटरी वालो ने हुज़ूर महाराज जी से ब्लड के लिये प्रार्थना की और उस वक़्त Beas में मिलिटरी वालों ने पहला ब्लड कैम्प लगाया गया और सभी सेवादारों को ब्लड देने के लिए हुज़ूर ने announcement की सेवादारों में इतना उत्साह था कि सभी एक दूसरे से आगे होकर पहला नम्बर लेना चाहते थे
ब्लड देने वालों में रामदास पहले नम्बर पर था पहलवानो वाला शरीर देखकर डॉक्टर ख़ुश हुए कि अच्छा ख़ासा ब्लड इकठा हो जाएगा
जब डॉक्टर ने रामदास के शरीर में सुई लगायी तो देखा ब्लड नहीं आ रहा दूसरी तरफ़ ट्राई किया फिर भी ब्लड नहीं निकला तब डॉक्टर टीम ने मिलकर मुआयना किया और उसकी डेली की रूटीन पूछी तो उनकी आँखे खुली रह गयी कि ये आदमी इतनी बड़ी देह के साथ दिल्ली से 400 मील चलकर आना कैंटीन में चाय की भट्ठी पे चाय बनाना बिना ख़ून के ये आदमी केसे सारे काम करता है जबकि मेडिकल साइंस के हिसाब से ख़ून के बिना इंसान ज़िंदा ही नही रह सकता जब बात हुज़ूर तक पहुँचीा।
उन्होंने कहा की ये आशिक़ों की कहानी है जिनका शरीर का ख़ून सूख जाता है पर देह शब्द के सहारे चलती रहती है ।
**राधास्वामी जी** सखियाँ भाग -२
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२ -बानी श्री गुरु अमरदास जी,
आप समझाते हैं। जिस चीज़ को हम दिन-रात ढूँढ़ रहे हैं, वह हमारे शरीर के अंदर है। बाहर आज तक न किसी को परमात्मा मिला है, न मिल सकता है। हर एक महात्मा, हर एक धर्म और हर एक धर्मग्रंथ हमें यही समझाता है कि वह परमात्मा हमारे शरीर के अंदर है। अगर इसी एक बात को समझकर सब अपने-अपने शरीर में परमात्मा की खोज शुरू कर दें, तो इस दुनिया में सब झगड़े आज ही ख़त्म हो जायें। हमारे झगड़े उस समय शुरू होते हैं जब उस परमात्मा की खोज कोई गुरुद्वारों में जाकर करता है, तो कोई मंदिरों में। कोई मसजिदों को मालिक के रहने की जगह बनाये बैठा है तो कोई गिरजे को। उस परमात्मा के जलूस हम बाहर गलियों-बाजारों में निकालना शुरू कर देते हैं। हमारे आपस में झगड़े शुरू हो जाते हैं।अगर सब दुनिया के जीव अपने-अपने घर में बैठकर देह के अंदर ही परमात्मा की खोज करने लगें तो किसी का किसी के साथ झगड़ा कैसे हो सकता है?
जब परमात्मा एक है, परमात्मा ने हर एक को हाथ, पैर, नाक, मुँह, कान वग़ैरा एक जैसे दिये हैं और वह परमात्मा हम सबके अंदर बैठा हुआ है, तो हम किस तरह सोच सकते हैं कि उसने हिंदुओं के लिये अपने मिलने का कोई और तरीक़ा रखा है तथा सिक्खों, ईसाइयों या मुसलमानों के लिये कोई और तरीक़ा रखा है? हमारी समझ में ही फ़रक़ हो सकता हैः लेकिन वह परमात्मा एक है और उससे मिलने का रास्ता भी हमारे शरीर के अंदर एक ही है। और जब हम अपने ख़याल को आँखों के पीछे इकट्ठा करेंगे, तभी हम उस कलमे को सुन सकेंगे, उस बाँगे आसमानी को पकड़ सकेंगे, जिसे पकड़कर और जिसके पीछे जाकर ही हम वापस अपने घर पहुँच सकते हैं।
” राधा स्वामी जी “
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४-हुकुम की पालना :-
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एक सेवक ने अपने गुरू को अरदास की, जी मैं सत्सँग भी सुनता हूँ, सेवा भी करता हूँ, मग़र फिर भी मुझे कोई फल नहीं मिला
सतगुरु ने प्यार से पूछा, बेटा तुम्हे क्या चाहिए ?
सेवक बोला
मैं तो बहुत ही ग़रीब हूँ दाता
सतगुरु ने हँस कर पूछा, बेटा तुम्हें कितने पैसों की ज़रूरत है ?
सेवक ने अर्ज की, सच्चे पातशाह, बस इतना बख्श दो, कि सिर पर छत हो, समाज में पत हो
गुरु ने पूछा और ज़्यादा की भूख तो नहीं है बेटा ?
सेवक हाथ जोड़ के बोला नहीं जी, बस इतना ही बहुत है ।
गुरु ने उसे चार मोमबत्तियां दीं और कहा मोमबत्ती जला के पूरब दिशा में जाओ, जहाँ ये बुझ जाये, वहाँ खुदाई करके खूब सारा धन निकाल लेना
अगर कोई इच्छा बाकी हो तो दूसरी मोमबत्ती जला कर पश्चिम में जाना
और चाहिए तो उत्तर दिशा में जाना,
लेकिन सावधान, दक्षिण दिशा में कभी मत जाना, वर्ना बहुत भारी मुसीबत में फँस जाओगे ।
सेवक बहुत खुश हो कर चल पड़ा
जहाँ मोमबत्ती बुझ गई, वहाँ खोदा, तो सोने का भरा हुआ घड़ा मिला
बहुत खुश हुआ और सतगुरु का शुक्राना करने लगा
थोड़ी देर बाद, सोचा, थोड़ा और धन माल मिल जाये, फिर आराम से घर जा कर ऐश करूँगा
मोमबत्ती जलाई पश्चिम की ओर चल पड़ा हीरे मोती मिल गये ।
खुशी बहुत बढ़ गई, मग़र मन की भूख भी बढ़ गई ।
तीसरी मोमबत्ती जलाई और उत्तर दिशा में चला वहाँ से भी बेशुमार धन मिल गया।
सोचने लगा के चौथी मोमबत्ती और दक्षिण दिशा के लिये गुरू ने मना किया था,
सोचा, शायद वहाँ से भी क़ोई अनमोल चीज़ मिलेगी ।
मोमबत्ती जलाई और चला दक्षिण दिशा की ओर, जैसे ही मोमबत्ती बुझी वो जल्दी से ख़ुदाई करने लगा
खुदाई की तो एक दरवाजा दिखाई दिया, दरवाजा खोल के अंदर चला गया
अंदर इक और दरवाजा दिखाई दिया उसे खोल के अन्दर चला गया।
अँधेरे कमरे में उसने देखा, एक आदमी चक्की चला रहा है
सेवक ने पूछा भाई तुम कौन हो ?
चक्की चलाने वाला बहुत खुश हो कर बोला, ओह ! आप आ गये ?
यह कह कर उसने वो चक्की गुरू के सेवक के आगे कर दी
सेवक कुछ समझ नहीं पाया,
सेवक चक्की चलाने लगा,
सेवक ने पूछा भाई तुम कहाँ जा रहे हो ?
अपनी चक्की सम्भालो,
आदमी ने केहा,
मैने भी अपने सतगुरु का हुक्म नहीं माना था, और लालच के मारे यहाँ फँस गया था, बहुत रोया, गिड़गिड़ाया, तब मेरे सतगुरु ने मुझे दर्शन दिये और कहा था, बेटा जब कोई तुमसे भी बड़ा लालची यहाँ आयेगा, तभी तुम्हारी जान छूटेगी
आज तुमने भी अपने गुरु की हुक्म अदूली की है, अब भुगतो
सेवक बहुत शर्मसार हुआ और रोते रोते चक्की चलाने लगा
वो आज भी इंतज़ार कर रहा है, कि कोई उससे भी बड़ा लालची, पैसे का भूखा आयेगा, तभी उसकी मुक्ति होगी
हमेशा सतगुरु की रज़ा में राज़ी रहना चाहिए, सतगुरू को सब कुछ पता है, कि उनके बच्चों को, कब और क्या चाहिए
जितना भी सतगुरु ने हमें बख्शा है, हमारी औकात से भी ज़्यादा है, बस अब सब्र करो और प्रेम से भजन करो
कल तो क्या एक पल का भी भरोसा नहीं है जी, आज मौका है, कुछ कर लो, नहीं तो बहुत पछताओगे !
*इस सन्देश को पढ़ कर यदि हम दस मिनट भी सिमरन पर बैठ गये, तो हमारी सेवा सफल होगी।
**राधा स्वामी जी **
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५-🌻 पिछले जन्म की सेवा का फल🌻
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चौथे पातशाही “श्री गुरु राम दास” जी महाराज के समय जब अमृतसर मै श्री हरिमंदिर साहब जी की सेवा चल रही थी। उस वक्त बहुत संगत सेवा कर रही थी। उस संगत में उस समय का राजा भी सेवा के लिए आता था। गुरु साहिबान उस राजा को देख कर मंद मंद मुस्कुराते रहते थे। ऐसा लगातार तीन-चार दिन होता रहा। फिर एक दिन राजा गुरू साहिबान के पास चला गया। और उसने गुरु साहिबान से पूछा :
हे सच्चे पातशाह ! आप हर रोज मुझे देख कर मुस्कुराते है क्यों भला…… ?
तब गुरु साहिबान ने बङे प्यार से राजा की तरफ देखा, और उन्हें एक छोटी सी बात सुनाई।”हे राजन ! बहुत समय पहले की बात है, एक दिन संगत इसी तरह सेवा कर रही थी। पर उस सेवा में कुछ दिहाडी़ दार मजदूर भी थे। जो संगत निष्काम भावना से सेवा करती थी। उन सारी संगत को गुरू साहिबान, शाम को दर्शन देते थे। एक दिन उस दिहाङीदार मजदूर ने सोचा कि क्यों ना मैं भी बिना दिहाड़ी के आज सेवा करूं।निष्काम सेवा करु। उसने यह बात अपने परिवार से की। परिवार ने कहा कोई बात नहीं, आप सेवा में जाओ। एक दिन हम दिहाड़ी नहीं लेंगे। भूखे रह लेंगे, लेकिन एक दिन हम सेवा को जरूर देंगे। उस समय मजदूर दिन में जो मजदूरी करके कमाता था। उसी से घर चलता था।
यह बात सुना कर गुरु साहिबान चुप कर गए। यह सुन कर राजा सोच में पड़ गया। और हाथ जोड़कर गुरु साहिबान से प्रार्थना की : हे सच्चे पातशाह ! लेकिन आप मुझे देख कर मुस्कुराते हैं, इसका क्या राज है…..?
गुरु साहिबान ने फिर मुस्कुराते हुए, उसको जवाब दिया : हे राजन! पिछले जन्म में वो मजदूर तुम थे। यह सुनकर राजा अचेत सा हो गया। कि उस एक दिन की सेवा का मुझे यह फल मिला कि, इस जन्म में मुझे राजा का जन्म मिला।
सेवा का फल, एक ना एक दिन जरूर मिलता है। सेवा कभी व्यर्थ नहीं जाती। चाहे ज्यादा की गई हो चाहे थोङी। जो सेवा हम हृदय से निष्काम भाव से करते हैं। वह हमारे लेखे मै लिखी जाती है।और उसका फल हमें जरूर मिलता है। निष्काम की गई सेवा का फल कभी व्यर्थ नहीं जाता। इसलिए हमें भी निष्काम भावना से सेवा करनी चाहिए। ताकि वह सेवा मालिक के दरवार मै प्रवान हो सके |
पतित उधारण सतिगुरु मेरा
मोहि तिस का भरवासा,
बखस लए सभि सचै साहिब
सुण नानक की अरदासा ।।
**राधा स्वामी जी **
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६-**रब्ब को मनाने का वक़्त **
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*एक फ़क़ीर बाजार में खड़ा रो रहा था, किसी ने रुक के पूछा बाबा क्यों रो रहे हो, किसी ने मारा है या भूख की सिद्दत है, फ़क़ीर ने कहा ना भाई, ये मेरे मसले नही हैं, मुझे हुक्म हुआ है कि मैं बंदों की और रब्ब की सुलह करवा दूं, राहगीर ने पूछा तो क्या हुआ, फ़क़ीर कहता, रब्ब तो मानता है पर बंदे नही मानते, वो तो कहता है ले आ इनको मेरी दहलीज़ पर, एक आंशू से सारे गुनाह माफ कर दूंगा, समुंदर की बूंदे जितने भी गुनाह होंगे सारे धो डालूंगा, लेकिन ये मेरी बात सुनते ही नही हैं, ऐसा प्यार हो गया है दुनिया से, मैं इनको समझाता हूँ, ये आगे से मुझे बुरा-बुरा बोलते हैं, मुझे इनकी अक्ल पे रोना आ रहा है,
वो दिन गुजरा तो वो राहगीर कब्रिस्तान से गुजरा तो क्या देखता है कि वो बाबा वहाँ भी रो रहा है, वो कहता बाबा अजीब कहानी है तेरी, बाज़ारों मे भी रोता है क़ब्रिस्तानों मे भी रोता है, तेरा आज क्या मसला है, फ़क़ीर कहता मेरा आज भी कल वाला ही मसला है, सोचा आज इनके कयामत के दिन ही इनकी और रब्ब की सुलह करवा दूं, तो उसने पूछा फिर आज क्या बना, फकीर कहता आज ये मानते है लेकिन रब्ब नही मानता
*समझो, इससे पहले की वो वक्त आये, फिर वो ना माने,
आज लो उनकी पनाह, आज मदद मांग उनसे,
कल कयामत पे नही मानेगा वो…
काश इस बात की गहराई हमइंसान समझ जाए*…..!
*अभी वक़्त है रब्ब को मनाने का…..
रब्ब की याद ,सिमरन ,सेवा परमार्थ में जीवन लगाने का ।।*
*राधा स्वामी जी *
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७-1970 की बात है
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🙇🏼♂️ डेरे मे सीवरेज का काम चल रहा था घुमान से जतथा सेवा के लिए बुलाया गया मंगल सिहं की कंटीन के पास खुदाई का काम चल रहा था। सारा जतथा सेवा मे लगा हुआ था।पास ही दीवार पर बैठा एक आदमी सारी संगत को मस्ती मे सेवा करता देख रहा था। उसके मन मे सेवा का विचार आया। उसने जतथेदार से जा कर कहा।मुझे भी सेवाकरनी है। वह सेवा करने लग पडा। खूब दिल लगाकर सेवा की।इस तरह सेवा करते हुए आठ दिन बीत गये |
आठवे दिन उसनेजतथेदार से कहा मुझे एक घंटेकी छुटटी चाहिऐ ताकि मै अपने कपडे धो सकू वह साबुन लेने गया तो लाइन काफी लंबी थी।वह दूसरी लाइन मे गया। वहा पर भी लंबी लाइन थी। कभी वह इधर जाता तो कभी उधर। यह सब कुछ एक सेवादार देख रहा था उसे वह जेब कतरा लगा सेवादार ने सीकोरिटी वालो को बुला लिया। वह उस आदमी को पकड कर जेल मे ले गये।और उलटा लटका दिया। तभी जतथेदार को किसी ने बताया कि आपके आदमी को पकड कर ले गये है।
जतथेदार भागा भागा गया और सारी बात बताई कि यह तो हमारे साथ सेवा कर रहा था अपने कपडे धोने के लिए छुटटी लेकर गया था।उसे छोड दिया गया वह रोने लगा और बोला मै जा रहा हू। यहां नही रहूगा।सभी लोगो ने समझाया कि इस समय कोई साधन नही मिलेगा। वह बडी मुशिकल से माना।
रात को जब सभी भजन पर बैठे थे तो वह आखे बंद करके सोच रहा था कि आज उसके साथ क्या हुआ और क्यों हुया। वह बहुत डरा हुआ था। तभी बडे बाबा जी उसके सामने आये और बोले कि तुमने बैंक में बहुत हेरा फेरी की है। उसके लिए तुमहे आठ साल जेल की सजा मिलनी थी।पर तुमने आठ दिन सेवा की तुम्हारी आठ साल की कैद आठ दिन की सेवा करने से मालिक ने खतम कर दी । तुमहे उलटा लटका कर कोडे लगने थे | परंतु मालिक ने उस सजा को कम करके सिर्फ पांच मिनट कर दिया। यह सब सेवा करने से हुआ है।तुम क्यों डर रहे हो मालिक ने तुम पर दया की है। यह कह कर बाबा जी आलोप हो गये। उस ने यह सारी बात जतथे वालो को बताई। वह रोने लगा और जतथेदार को कहने लगा कि अब मैने आठ दिन ओर सेवा करनी है
बाबा जी कहते है कि सेवा करने से हमारे पिछले करम हलके होते है और हम भजन सुमिरन मे तरककी करते है। इस लिऐ जब भी सेवा करने का मौका मिले तो उसका फायदा उठाए
**राधा स्वामी जी **
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८-सतगुरु सूली का कांटा केसे बनाते है :-
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यह घटना पैरोर सेंटर की है जब सत्संग शेड की सेवा चल रही थी पहाड़ियों को तोड़ा जा रहा था। शाम को 5बजे के बाद ब्लास्टिंग होती थी
, जालंधर से भी जत्था आया हुआ था। उसमे एक वकील भी थे। जब ब्लास्टिग का टाइम हुआ तो हेड जत्थेदार श्री ग्लोरा राम जी ने उस वकील की ड्यूटी लगाई किनारे पर कुर्सी लगा कर बिठा दिया और कहा कि ब्लास्टिंग के टाइम किसी को भी इस और नहीं आने देना।
जब को ब्लास्टिंग हुई तो एक। नुकीला पथर वकील की छाती में आकर लगा जिस से उनकी छाती की 3 पसलियां टूट गई।उनको पैरोर मै ही उपचार हुआ अगले दिन वह जालंधर वापिस चले गए। 3 महीने केबाद वह परौर आए अनोहने कहा कि मेरे पर सतगुरु की बहुत दया मेहर हो गई ।
उन्होंने बताया कि जब ब्लास्टिंग के टाइम मेरे को पथार लगा था उसी टाइम मेरे को मारने के लिए 4 लोग मेरे घर आए थे। मेरी बहन का अपने पति के साथ तलाक का मुकदमा चल रहा था जिस की वकालत मै कर रहा था फैसला हमारे हक मै होने वाला था। परन्तु मै सेवा के लिए यहां आया हुआ था जिस टाइम मुझे गोली से मरना था उस टाइम सतगुरु ने 2,,, 3,, पसलियां तुड़वा कर मेरा भुगतान करवा दिया। साध संगत जी सेवा के कारण सतगुरु ऐसे सूली का कांटा बनाते है।
**राधा स्वामी जी **
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९-बाप का आशीर्वाद!
सत्य घटना। ………….
.कर्नाटक मै बेंगलुरु के एक व्यापारी की यह सत्य घटना है। जब मृत्यु का समय सन्निकट आया तो पिता ने अपने एकमात्र पुत्र धनपाल को बुलाकर कहा कि..
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बेटा मेरे पास धनसंपत्ति नहीं है कि मैं तुम्हें विरासत में दूं। पर मैंने जीवनभर सच्चाई और प्रामाणिकता से काम किया है।
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तो मैं तुम्हें आशीर्वाद देता हूं कि, तुम जीवन में बहुत सुखी रहोगे और धूल को भी हाथ लगाओगे तो वह सोना बन जायेगी।
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बेटे ने सिर झुकाकर पिताजी के पैर छुए। पिता ने सिर पर हाथ रखकर आशीर्वाद दिया और संतोष से अपने प्राण त्याग कर दिए।
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अब घर का खर्च बेटे धनपाल को संभालना था। उसने एक छोटी सी ठेला गाड़ी पर अपना व्यापार शुरू किया।
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धीरे धीरे व्यापार बढ़ने लगा। एक छोटी सी दुकान ले ली। व्यापार और बढ़ा।
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अब नगर के संपन्न लोगों में उसकी गिनती होने लगी। उसको विश्वास था कि यह सब मेरे पिता के आशीर्वाद का ही फल है।
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क्योंकि, उन्होंने जीवन में दु:ख उठाया, पर कभी धैर्य नहीं छोड़ा, श्रद्धा नहीं छोड़ी, प्रामाणिकता नहीं छोड़ी इसलिए उनकी वाणी में बल था।
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और उनके आशीर्वाद फलीभूत हुए। और मैं सुखी हुआ। उसके मुंह से बारबार यह बात निकलती थी।
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एक दिन एक मित्र ने पूछा: तुम्हारे पिता में इतना बल था, तो वह स्वयं संपन्न क्यों नहीं हुए? सुखी क्यों नहीं हुए?
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धर्मपाल ने कहा: मैं पिता की ताकत की बात नहीं कर रहा हूं। मैं उनके आशीर्वाद की ताकत की बात कर रहा हूं।
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इस प्रकार वह बारबार अपने पिता के आशीर्वाद की बात करता, तो लोगों ने उसका नाम ही रख दिया बाप का आशीर्वाद!
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धर्मपाल को इससे बुरा नहीं लगता, वह कहता कि मैं अपने पिता के आशीर्वाद के काबिल निकलूं, यही चाहता हूं।
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ऐसा करते हुए कई साल बीत गए। वह विदेशों में व्यापार करने लगा। जहां भी व्यापार करता, उससे बहुत लाभ होता।
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एक बार उसके मन में आया, कि मुझे लाभ ही लाभ होता है !! तो मैं एक बार नुकसान का अनुभव करूं।
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तो उसने अपने एक मित्र से पूछा, कि ऐसा व्यापार बताओ कि जिसमें मुझे नुकसान हो।
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मित्र को लगा कि इसको अपनी सफलता का और पैसों का घमंड आ गया है। इसका घमंड दूर करने के लिए इसको ऐसा धंधा बताऊं कि इसको नुकसान ही नुकसान हो।
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तो उसने उसको बताया कि तुम भारत में लौंग खरीदो और जहाज में भरकर अफ्रीका के जंजीबार में जाकर बेचो। धर्मपाल को यह बात ठीक लगी।
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जंजीबार तो लौंग का देश है। वहां से लौंग भारत में लाते हैं और यहां 10-12 गुना भाव पर बेचते हैं।
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भारत में खरीद करके जंजीबार में बेचें, तो साफ नुकसान सामने दिख रहा है।
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परंतु धर्मपाल ने तय किया कि मैं भारत में लौंग खरीद कर, जंजीबार खुद लेकर जाऊंगा। देखूं कि पिता के आशीर्वाद कितना साथ देते हैं।
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नुकसान का अनुभव लेने के लिए उसने भारत में लौंग खरीदे और जहाज में भरकर खुद उनके साथ जंजीबार द्वीप पहुंचा।
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जंजीबार में सुल्तान का राज्य था। धर्मपाल जहाज से उतरकर के और लंबे रेतीले रास्ते पर जा रहा था ! वहां के व्यापारियों से मिलने को।
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उसे सामने से सुल्तान जैसा व्यक्ति पैदल सिपाहियों के साथ आता हुआ दिखाई दिया।
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उसने किसी से पूछा कि, यह कौन है?
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उन्होंने कहा: यह सुल्तान हैं।
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सुल्तान ने उसको सामने देखकर उसका परिचय पूछा। उसने कहा: मैं भारत के गुजरात के खंभात का व्यापारी हूं। और यहां पर व्यापार करने आया हूं।
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सुल्तान ने उसको व्यापारी समझ कर उसका आदर किया और उससे बात करने लगा।
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धर्मपाल ने देखा कि सुल्तान के साथ सैकड़ों सिपाही हैं। परंतु उनके हाथ में तलवार, बंदूक आदि कुछ भी न होकर बड़ी-बड़ी छलनियां है।
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उसको आश्चर्य हुआ। उसने विनम्रता पूर्वक सुल्तान से पूछा: आपके सैनिक इतनी छलनी लेकर के क्यों जा रहे हैं।
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सुल्तान ने हंसकर कहा: बात यह है, कि आज सवेरे मैं समुद्र तट पर घूमने आया था। तब मेरी उंगली में से एक अंगूठी यहां कहीं निकल कर गिर गई।
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अब रेत में अंगूठी कहां गिरी, पता नहीं। तो इसलिए मैं इन सैनिकों को साथ लेकर आया हूं। यह रेत छानकर मेरी अंगूठी उसमें से तलाश करेंगे।
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धर्मपाल ने कहा: अंगूठी बहुत महंगी होगी।
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सुल्तान ने कहा: नहीं! उससे बहुत अधिक कीमत वाली अनगिनत अंगूठी मेरे पास हैं। पर वह अंगूठी एक फकीर का आशीर्वाद है।
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मैं मानता हूं कि मेरी सल्तनत इतनी मजबूत और सुखी उस फकीर के आशीर्वाद से है। इसलिए मेरे मन में उस अंगूठी का मूल्य सल्तनत से भी ज्यादा है।
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इतना कह कर के सुल्तान ने फिर पूछा: बोलो सेठ, इस बार आप क्या माल ले कर आये हो।
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धर्मपाल ने कहा कि: लौंग!
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सुल्तान के आश्चर्य का ठिकाना नहीं रहा। यह तो लौंग का ही देश है सेठ। यहां लौंग बेचने आये हो? किसने आपको ऐसी सलाह दी।
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जरूर वह कोई आपका दुश्मन होगा। यहां तो एक पैसे में मुट्ठी भर लोंग मिलते हैं। यहां लोंग को कौन खरीदेगा? और तुम क्या कमाओगे?
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धर्मपाल ने कहा: मुझे यही देखना है, कि यहां भी मुनाफा होता है या नहीं।
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मेरे पिता के आशीर्वाद से आज तक मैंने जो धंधा किया, उसमें मुनाफा ही मुनाफा हुआ। तो अब मैं देखना चाहता हूं कि उनके आशीर्वाद यहां भी फलते हैं या नहीं।
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सुल्तान ने पूछा: पिता के आशीर्वाद? इसका क्या मतलब?
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धर्मपाल ने कहा: मेरे पिता सारे जीवन ईमानदारी और प्रामाणिकता से काम करते रहे। परंतु धन नहीं कमा सकें।
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उन्होंने मरते समय मुझे भगवान का नाम लेकर मेरे सिर पर हाथ रखकर आशीर्वाद दिए थे, कि तेरे हाथ में धूल भी सोना बन जाएगी।
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ऐसा बोलते-बोलते धर्मपाल नीचे झुका और जमीन की रेत से एक मुट्ठी भरी और सम्राट सुल्तान के सामने मुट्ठी खोलकर उंगलियों के बीच में से रेत नीचे गिराई तो..
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धर्मपाल और सुल्तान दोनों का आश्चर्य का पार नहीं रहा। उसके हाथ में एक हीरेजड़ित अंगूठी थी। यह वही सुल्तान की गुमी हुई अंगूठी थी।
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अंगूठी देखकर सुल्तान बहुत प्रसन्न हो गया। बोला: वाह खुदा आप की करामात का पार नहीं। आप पिता के आशीर्वाद को सच्चा करते हो।
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धर्मपाल ने कहा: फकीर के आशीर्वाद को भी वही परमात्मा सच्चा करता है।
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सुल्तान और खुश हुआ। धर्मपाल को गले लगाया और कहा: मांग सेठ। आज तू जो मांगेगा मैं दूंगा।
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धर्मपाल ने कहा: आप 100 वर्ष तक जीवित रहो और प्रजा का अच्छी तरह से पालन करो। प्रजा सुखी रहे। इसके अलावा मुझे कुछ नहीं चाहिए।
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सुल्तान और अधिक प्रसन्न हो गया। उसने कहा: सेठ तुम्हारा सारा माल में आज खरीदता हूं और तुम्हारी मुंह मांगी कीमत दूंगा।
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इस कहानी से शिक्षा मिलती है, कि पिता के आशीर्वाद हों, तो दुनिया की कोई ताकत कहीं भी तुम्हें पराजित नहीं होने देगी।
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पिता और माता की सेवा का फल निश्चित रूप से मिलता है। आशीर्वाद जैसी और कोई संपत्ति नहीं।
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बालक के मन को जानने वाली मां और भविष्य को संवारने वाले पिता यही दुनिया के दो महान ज्योतिषी है।
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अपने बुजुर्गों का सम्मान करें! यही भगवान की सबसे बड़ी सेवा है।………………………
* राधा स्वामी जी *
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१०-संत के पास
बहरा आदमी सत्संग सुनने आता था।उसके कान तो थे पर वे नाड़ियों से जुड़े नहीं थे।एकदम बहरा, एक शब्द भी सुन नहीं सकता था किसी ने संत श्री से कहाः”बाबा जी ! वे जो वृद्ध बैठे हैं, वे कथा सुनते सुनते हँसते तो हैं पर वे बहरे हैं बहरे मुख्यतः दो बार हँसते हैं – एक तो कथा सुनते-सुनते जब सभी हँसते हैं तब और दूसरा, अनुमान करके बात समझते हैं तब अकेले हँसते हैं।
बाबा जी ने कहाः “जब बहरा है तो कथा सुनने क्यों आता है ? रोज एकदम समय पर पहुँच जाता है।चालू कथा से उठकर चला जाय ऐसा भी नहीं है, घंटों बैठा रहता है ”बाबाजी सोचने लगे, “बहरा होगा तो कथा सुनता नहीं होगा और कथा नहीं सुनता होगा तो रस नहीं आता होगा। रस नहीं आता होगा तो यहाँ बैठना भी नहीं चाहिए, उठकर चले जाना चाहिए। यह जाता भी नहीं है !”
बाबाजी ने उस वृद्ध को बुलाया और उसके कान के पास ऊँची आवाज में कहाः “कथा सुनाई पड़ती है ?”उसने कहाः “क्या बोले महाराज ?”बाबाजी ने आवाज और ऊँची करके पूछाः “मैं जो कहता हूँ, क्या वह सुनाई पड़ता है ?” उसने कहाः “क्या बोले महाराज ?” बाबाजी समझ गये कि यह नितांत बहरा है।बाबाजी ने सेवक से कागज कलम मँगाया और लिखकर पूछा। वृद्ध ने कहाः “मेरे कान पूरी तरह से खराब हैं। मैं एक भी शब्द नहीं सुन सकता हूँ।”
कागज कलम से प्रश्नोत्तर शुरू हो गया।“फिर तुम सत्संग में क्यों आते हो ?” “बाबाजी ! सुन तो नहीं सकता हूँ लेकिन यह तो समझता हूँ कि ईश्वरप्राप्त महापुरुष जब बोलते हैं तो पहले परमात्मा में डुबकी मारते हैं। संसारी आदमी बोलता है तो उसकी वाणी मन व बुद्धि को छूकर आती है लेकिन ब्रह्मज्ञानी संत जब बोलते हैं तो उनकी वाणी आत्मा को छूकर आती हैं। मैं आपकी अमृतवाणी तो नहीं सुन पाता हूँ पर उसके आंदोलन मेरे शरीर को स्पर्श करते हैं।दूसरी बात, आपकी अमृतवाणी सुनने के लिए जो पुण्यात्मा लोग आते हैं उनके बीच बैठने का पुण्य भी मुझे प्राप्त होता है।” बाबा जी ने देखा कि ये तो ऊँची समझ के धनी हैं।
उन्होंने कहाः ” दो बार हँसना, आपको अधिकार है किंतु मैं यह जानना चाहता हूँ कि आप रोज सत्संग में समय पर पहुँच जाते हैं और आगे बैठते हैं, ऐसा क्यों ?” मैं परिवार में सबसे बड़ा हूँ। बड़े जैसा करते हैं वैसा ही छोटे भी करते हैं। मैं सत्संग में आने लगा तो मेरा बड़ा लड़का भी इधर आने लगा। शुरुआत में कभी-कभी मैं बहाना बना के उसे ले आता था। मैं उसे ले आया तो वह अपनी पत्नी को यहाँ ले आया, पत्नी बच्चों को ले आयी – सारा कुटुम्ब सत्संग में आने लगा, कुटुम्ब को संस्कार मिल गये।” ब्रह्मचर्चा, आत्मज्ञान का सत्संग ऐसा है कि यह समझ में नहीं आये तो क्या, सुनाई नहीं देता हो तो भी इसमें शामिल होने मात्र से इतना पुण्य होता है कि व्यक्ति के जन्मों-जन्मों के पाप ताप मिटने एवं एकाग्रतापूर्वक सुनकर इसका मनन-निदिध्यासन करे, उसके परम कल्याण में संशय ही क्या !
**राधा स्वामी जी **
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कौन सा दिया जलाने के लिए गुरुजी ने कहा…??
” नाम तेरे की जोत लगाई
भयो उजियार भवन सगलारे”!!
जगत गुरु रविदास महाराज जी ने कहा अपने भीतर नाम की ज्योत जलाने के लिए अर्थात ज्ञान की ज्योत जलाने के लिए ..के ज्ञान की ज्योत जलाने से आपकी जिंदगी के जितने भी अंधकार हैं दूर हो जाएंगे…ज्ञान से विचार उत्पन्न होते हैं विचारों से कर्म उत्पन्न होता है और जब कर्म उत्पन्न हो गया तो आप का विकास जरूर होगा… बस आपको अपने विचारों को और अपने कर्म को सही दिशा में रखना है…
गुरु रविदास महाराज जी ने एक और कथन कहा…
“गुरु का शब्द और सूरत कुदाली
खोदत कोई लहे रें”!!
गुरु से हमको शब्द मिलता है.. अब गुरु का शब्द कहां है यह खोजना है…. गुरु का शब्द मूर्ति में तो नहीं है लेकिन उनकी वाणी में जरूर है.. जगत गुरु रविदास महाराज जी ने कहा शब्द को समझो अर्थात वाणी को समझो…. जब इंसान वाणी के ऊपर चिंतन करता है.. उसको समझता है तो वह सूरत में आ जाता है अर्थात होश में आ जाता है..
फिर जगत गुरु रविदास महाराज जी ने कहा उस सूरत को उस होश को कुदाली बनाकर अपने भीतर खोद…अपने आप से भेंट कर.. अपने गुणों अवगुणों से भेंट कर.. अपनी बुराइयों और अच्छाइयों से भेंट कर… अपनी मूरत को खुद गढ़ तू… अर्थात अपने आप को तू लाइक बना.. अच्छे कर्मों को धारण कर.. अपना और अपने परिवार का विकास…
इसलिए जगत गुरु रविदास महाराज जी ने हम लोगों को अपने भीतर ज्ञान का दीपक जलाने के लिए कहा लेकिन हम लोग मंदिरों में ही दिए जलाते रहे…
अपना दीपक खुद बन… अपने आप के ऊपर भरोसा कर… और अपने अनमोल जीवन को ऊंचाइयों तक ले जा.
**राधा स्वामी जी **
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