No-1
{सुलतान महमूद और चोर }
सुलतान महमूद प्रजा की हिफाजत के लिये रात को वेश बदल कर घूमता था। एक बार उसको पाँच चोर मिले। उसने पूछा कि आप कौन हो? उन्होंने जवाब दिया, हम चोर हैं। फिर उन्होंने पूछा कि आप कौन हो? महमूद ने कहा, मै भी एक चोर हूँ। उन्होंने बादशाह को अपने गिरोह में शामिल कर लिया। अब चोरी करने की सलाह हुई, लेकिन चोरी करने से पहले यह निश्चय हुआ कि हमको आपस में किसी को सरदार बनाना चाहिये। इस पर सब सहमत हो गये। सरदार चुनने के लिये जरूरी था कि सब अपना-अपना गुण बयान करें। जिसका गुण सबसे अच्छा हो, वही सरदार चुना जाये। पहले चोर ने कहा कि मैं कमन्द लगाता हूँ तो एक ही बार में रस्सी फँस जाती है। फिर चाहे सैंकड़ों आदमी चढ़ जायें। दूसने ने कहा कि मैं सेंध लगाता हूँ कि किसी को आवाज तक नहीं आती। तीसरे चोर ने कहा कि मैं सूँध कर बता सकता हूँ कि किस कमरे में कहाँ पर माल दबा हैं। चैथे ने कहा कि मैं कुत्तों की बोली समझ सकता हूँ कि वह क्या कहते हैं। पाँचवें ने कहा कि जिसको रात को मैं एक बार देख लूँ, दिन को पहचान लेता हूँ। बादशाह सोच रहा था कि मैं क्या बताऊँ ? जब सारे चोर अपनी-अपनी विशेषता बता चुके तब बादशाह ने कहा कि मेरी दाढ़ी में यह विशेषता है कि चाहे कितने ही गुनाह वाले चोर-डाकू फाँसी चढ़ रहे हो, जरा दाढ़ी हिला दूँ सब आजाद हो जाते हैं। चोरों ने जब बादशाह का यह गुण सुना तो उसको अपना सरदार बना लिया। नजदीक ही महमूद का महल था। यह सलाह हुई कि अपने बादशाह का महल तोड़ो। मजबूरन बादशाह भी मान गया। जब महल को चले, रास्ते में एक कुत्ता भौंका, चोरों ने चैथे चोर से पूछा कि यह क्या कहता है ? उसने कहा कि कुत्ता कहता है कि इनमें से एक बादशाह है। सब जोर से हँस पड़े, बादशाह भी हँस पड़ा। महल में पहुँच कर पहले चोर ने कमन्द लगाई, जो तुरन्त लग गई। सारे चोर और बादशाह ऊपर चढ़ गये। दूसरे ने सेंध लगाई। तीसरे ने सूँघ कर खजाने का पता बता दिया। माल की गठरियाँ बाँध कर नीचे आ गये और अपनी जगह पहुँच कर चोरी का माल बाँट लिया और अपने-अपने घरों को चले गये।
अगले दिन बादशाह ने अपने आदमी भेज कर चोरों को पकड़वा लिया और फाँसी का हुक्म दे दिया। जब फाँसी चढ़ने लगे तो पाँचवा चोर सामने आया। अर्ज की कि बादशाह सलामत! अब तो दाढ़ी हिला दो। हम सच्चे दिल से वायदा करते हैं कि आज से चोरी का पेशा छोड़ा और अपने आप को हुजूर की सेवा में सारी उमर के लिये पेश करते हैं। बादशाह को दया आ गई। उसने दाढ़ी हिला दी। दाढ़ी का हिलना था कि पाँचों चोर तख्ते से नीचे उतार लिये गये। उनकी हथकड़ियाँ और बेड़ियाँ काट दी गई और वे हमेशा के लिये आजाद होकर बादशाह की सेवा में रहने लगे।
इसी तरह मालिक वेश बदल कर और हमारे जैसा बन कर हमारे जैसे चोरों, ठगों, अफीमचियों को सीधे रास्ते पर ले आता है। वह कहता है कि इस रास्ते चलो। तात्पर्य यह कि जीवों के उद्धार के लिये सन्तों को सब कुछ करना पड़ता है।
* राधा स्वामी जी *
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No-2
{ गलत कर्म }
हम कहते है कि कोई गलत कर्म हो जाये तो ये काल का ज्यादा पहरा है भाई वो तो अपना फर्ज निभा रहा है जैसे कोई कैदी है वकील अपनी पैरवी करेगा और जज अपनी, पर फैसला ता सुर्पिम कोट ही सुनायेगा जैसा जुर्म होगा वैसी ही सजा दी जायेगी अपने किये कर्मो से कोई नही बच सकता जैसा-जैसा कोई कर्म करेगा वैसी ही सजा उसे जरूर मिलेगी परमात्मा ने इन्सान को सोचने समझने की शक्ति दी है अगर हम फिर भी गलत कर्म करते है किसी को धोखा देते है तो फल तो हमे भोगना ही पड़ेगा और अगर कोई सोचे कि दान-पुण्य करके, पूजा पाठ करके गलत कर्मा दा भुगतान हो जायेगा ता भाई इस गलत फहमी मे मत बैठो गलत कर्मा दी सजा ता मिलदी ही है पूजा पाठ दान-पुण्य कर्मो का अपना फल मिलेगा और गलत कर्मो का अपना भुगतान करना पवेगा अच्छे कर्मा करके राजे-महाराजे बन जायेगे ऐशो-इश्रत मे लग जायेगे धन-दौलत ज्यादा आ गई तो इन्द्रियो के भोगो मे लग जायेगे फिर तो और कर्म बना बैठे गे सो कर्मो का भुगतान तो केवल एक ही तरीके से हो सकता है और वो है नाम की कमाई शब्द की कमाई हौर कोई तरीका नही है कर्मा नू खत्म करन दा जिन्होने नाम की कमाई की उनकी लाज परमात्मा जरूर रखेगा उनकी जरूर सम्भाल होगी सो नाम की कमाई करो, नाम की कमाई।
* राधा स्वामी जी *
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सन्तमत की सखियाँ हिन्दी में भाग -३
No-3
Radha Soami ji 🙏
ये साखी मोगा सत्संग घर में एरिया सेक्रेटरी जी ने सुनाई — वह कहते है।
एक बार लुधियाना से अमृतसर जा रही ट्रेन का एक्सीडेंट हो गया और काफी यात्रियों की मृत्यु हो गयी, तो मुझे (Area Sect.) डेरा ब्यास से फ़ोन आया और कहा गया की पता करो की मरने वालों में कोई जीव डेरा ब्यास तो नहीं आ रहा था, मैंने (Area Sect.) एक्सीडेंट स्पॉट के सबसे नजदीकी सत्संग घर को पता करने को कहा, मेसेज मिला कि कोई भी ब्यास का यात्री नहीं था, मैंने डेरे में वही मेसेज दे दिया।
अगले दिन फिर से फ़ोन आया कि दुबारा पता करो, मैंने लुधियाना सत्संग घर से कुछ सेवादारों को जानकारी लेने भेजा, उन्होंने ने भी आकर किसी के ब्यास न उतरने के बारे में बताया, मैंने ब्यास फ़ोन करके बता दिया।
तीसरी बार बाबा जी का फ़ोन आया कि दुबारा चैक करो कि किसी यात्री को ब्यास तो नहीं उतरना था, मुझे (Area Sect.) पूरा यकीन हो चुका था की किसी भी यात्री को ब्यास नहीं उतरना था, परन्तु हुक्म मान कर मैं खुद स्टेशन गया और रिजर्वेशन लिस्ट check की, किसी का भी नाम ब्यास उतरने में नहीं था, Station Officers ने बताया कि Dead Bodies को लुधियाना सिविल हॉस्पिटल ले गये हैं।
हॉस्पिटल में मुझे बताया गया कि बाकि bodies को उनके रिश्तेदार ले गये हैं लेकिन 3 bodies लावारिस हैं, पूछने पर पता लगा कि इनकी रिजर्वेशन लुधियाना की थी और उन्होंने ट्रेन में ही अपनी ticket को ब्यास तक करवाया था।
मैंने (Area Sect.) जल्दी से ब्यास फ़ोन किया और सारी बात बताई, मुझे कुछ देर wait करने को कहा गया, 10-15 मिनट बाद ब्यास से फ़ोन आया और बाबा जी ने कहा कि मेरे होते वो लावारिस नहीं हैं, उनको डेरे लेकर आजाओ।
सारी formalities पूरी करने के बाद मैं उनको ब्यास ले गया, बाबा जी ने खुद उनका अंतिम संस्कार अपने खुद के पैसे से किया से किया।
जो सतगुरु मौत के बाद भी अपनी संगत की संभाल करते हैं, सोचो वह हमारी जीते जी कितनी संभाल करते होंगे, कमी है अगर तो हमारे विश्वास में, गुरु कभी कोई कमी नहीं रखते।
सतगुरु जी के बारे में जितना भी लिखो काम है।
* राधा स्वामी जी *
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No-4
*योगी का गुटका *
एक बार गुरु तेगबहादुर साहिब आगरा की ओर गये। तम्बू लगा हुआ था कि बादशाह का एक मुसलमान अहलकार गुरु साहिब से मिलने के लिये आया। गुरु साहिब उठ कर उसके साथ गले से लग कर मिले। सिक्खों के मन में घृणा हुई कि गुरु साहिब एक मुसलमान से गले मिले। गुरु साहिब भी ताड़ गये कि सिक्खों के मन में अभाव आ गया है ? जब अहलकार प्यार की बातें करके चला गया, तब गुरु साहिब ने सिक्खों से कहा, जानते हो यह कौन है ? यह परमात्मा का प्यारा है। आओ आपको इसका एक वाकया सुनाये।
बहुत समय पहले यह अहलकार लाहौर का सूबेदार था। अपने महल की चैथी मंजिल पर सोता था। रोज मालिन उसकी सेज फूलों से सजाती थी। एक दिन की बात है, मालिन फूलो की सेज सजा कर गई ही थी कि एक योगी कहीं से उड़ता हुआ आ गया। सूना कमरा और फूलों की सेज देख कर खयाल आया, क्या अच्छा हो कि मैं दो घड़ी यहाँ आराम कर लूँ। मेरे पास गुटका है, मुझे कौन पकड़ सकता है, जब चाहूँगा मुँह में डाल कर उड़ जाऊँगा। यह सोच कर फूलों की सेज पर जा लेटा। जैसे ही फूूलों की महक दिमाग में पहुँची, नींद आ गई। शाम हो गई, लेकिन योगी की आँख न खुली। सूबेदार रोज की तरह जब शाम को सोने के लिये कोठे पर गया तो क्या देखता है कि एक आदमी बिस्तरे पर सो रहा है। उसका मुँह खुला है और कोई चीज मुँह से निकल कर बिस्तरे पर पड़ी हुई है। अब सोचा, सूबेदार हो, परदे वाला घर हो और गैर आदमी उसके बिस्तरे पर आ कर सो जाये, कितनी बड़ी बात है। उसने कुछ नहीं कहा, वहाँ चारों और फिर कर देखा मगर योगी को जगाया नहीं। सोचा आप ही उठेगा तो अच्छा है। जो गुटका उसके मुँह से निकल कर बिस्तरे पर पड़ा था, उसे उठा कर जेब में डाल लिया और दूर हट कर बैठ गया। जब योगी उठा तो लगा उड़ने की तैयारी करने, लेकिन उड़े कैसे ? उड़ने वाली चीज तो पास थी नही। उसका रंग उड़ गया। जब सूबेदार को देखा तो रहा सहा होश भी जाता रहा। सूबेदार ने पूछा, योगी तेरा क्या खो गया है ? योगी ने डरते हुए कहा, जी गुटका था। सूबेदार ने गुटका दिखाते हुए कहा, यह चीज तो नहीं ? योगी ने कहा, जी यही है। सूबेदार ने गुटका हवाले करते हुए कहा कि जा ले जा और उड़ जा।
योगी ने सारी बात जाकर अपने गुरु को सुना दी। उसका गुरु बहुत खुश हुआ। उसने दो-चार और गुटके, अक्सीर के दो-चार तिनके और दो-चार शिष्यों को साथ लिया और सूबेदार से मिलने आया। सूबेदार को अपने आने की इत्तिला दी और मुलाकात करनी चाही। जब मिले तो गुरु ने कहा कि हम आपका शुक्राना अदा करने के लिये आये है। आपने हमारे एक कसूरवार योगी की जान बख्शी है। ये गुटके और अक्सीर के दो-चार तिनके आपको भेंट है, इनको स्वीकार करो। सूबेदार कहता है, हाय! हाय! आपने अपना जन्म बरबाद कर लिया। मालिक की भक्ति को छोड़ कर सोना बनाने और बाहरमुखी उड़ने के भ्रम में फँस गये। क्या आपको पता है कि मैं लाहौर का सूबेदार हूँ। खजाने मेरे पास है। फिर क्या मुझे सुनारों का काम करना है ? बाकी रह गये गुटके सो मैं नहीं चाहता कि गुटका मुँह में डाल कर चीलों की तरह उड़ता फिरूँ। मैं जब कभी बाहर निकलता हूँ मेरे साथ फौज होती है, तोपें होती हैं, और सामान होता है, मुझे गुटके लेकर क्या करना है ? “यह वृतान्त सुना कर गुरु साहिब ने कहा कि यह अहलकार वही व्यक्ति है।
इसी प्रकार सभी महात्माओं का आपस में प्यार होता है।
* राधा स्वामी जी *
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No-7
* हुक्मसिंह को नामदान *
एक बार का जिक्र है। बाबाजी महाराज अम्बाला शहर तशरीफ ले गये। वहाँ मोतीराम दर्जी बड़े प्रेमी सत्संगी थे, उन्होंने बाबाजी महाराज से सत्संग के लिए अर्ज की। बाबाजी महाराज ने गुरू ग्रन्थ साहिब का शब्द सत्संग में लिया। क्योंकि उपदेश बड़ा ऊँचा है इसलिए जब उन्होंने शब्द की व्याख्या की, लोग बहुत प्रभावित हुए। वहाँ हुक्मसिंह नाम का एक अकाउण्टेण्ट रहता था। उसने मोतीराम के आगे नाम लेने की ख्वाहिश जाहिर की। मोतीराम ने सोचा कि यह एक बड़ा धनी और होशियार आदमी है। अगर इस तरफ लग जाये तो सत्संग की रौनक बढ़ जायेगी। बाबाजी के आगे अर्ज की और उस आदमी को पेश किया। बाबाजी ने कहा, “मोतीराम ! इस आदमी को नाम न दिलाओ। इसके बड़े जबरदस्त कर्म है।” मोतीराम ने कहा, “ बाबाजी ! अगर आपके पास भी आकर भी कर्म बाकी रहे, तो फिर दुनिया में और कौन-सी जगह है।” बाबाजी का विचार वहाँ एक महीना सत्संग करने का था। बाबाजी ने फरमाया, “अच्छा ! नाम तो दे देते हैं, लेकिन फिर मैं इस जगह नहीं ठहरूँगा। नाम देते ही ब्यास चला जाऊँगा।”
मोतीराम ने हठधर्मी की, अच्छा महाराज जी ! मैं ब्यास आकर सत्संग सुन लूँगा, लेकिन इसको नाम जरूर बख्शो। बाबाजी ने ताँगा मंगवा लिया और बिस्तरा बाँध कर उसमें रख दिया। इधर नाम दिया और उधर ताँगे पर सवार होकर स्टेशन पहुँचे और ब्यास को चल पड़े। रास्ते में इतिफाक से लुधियाना स्टेशन पर मुझे मिले। मैंने अर्ज की, “हुजूर मेरा गाँव ( महिमासिंह वाला ) नजदीक ही है, दर्शन देते जाओ !” फ़रमाने लगे, “ मैं इस वक्त नहीं उतरूँगा, तुम इतवार को डेरे न आना। ”
क्योंकि मेरा नियम था कि जब छुटटी पर आना, हर इतवार को सत्संग के लिये डेरे आना। बाबाजी आप तौर पर कहा करते थे कि तुम घर का काम-काज नहीं करते, डेरे दौड़ आते होे। मैंने समझा शायद इसीलिये यह हुक्म दिया है। जब बाबाजी डेरे पहुँचे, तो उन्हें ऐसा जोर का बुखार हो गया कि नीचे का स्वाँस नीचे, ऊपर का स्वाँस ऊपर। बहुत सख्त तकलीफ हुई। बीबी रुक्को और बहुत से सत्संगियों ने दवा खाने की अर्ज की। आपने फरमाया कि अभी बारह दिन नहीं खाऊँगा। बीबी रुक्को रोने लगी। आपने फरमाया, “बीबी ! अभी मैं जाता ( चोला छोड़ता ) नहीं, तू फिकर न कर।” बीबी रुक्को विधवा थी, सदा आपकी सेवा में रहा करती थी। बारह दिन के बाद बुखार कुछ कम हो गया। जब मैं अगले इतवार ( पन्द्रह दिन बाद ) डेरे पहुँचा, हालात का पता लगा तो अर्ज की कि महाराज ! आपने मुझे आने से क्यों रोक दिया था। अगर मैं आता तो आपकी कुछ सेवा करता। बाबाजी ने फरमाया कि तुमसे बरदाश्त नहीं होता और मुमकिन है कि अभाव आ जाता, इसलिए मैने टाल दिया। मैंने कहा, “बाबाजी ! आपकी तकलीफ का असली कारण क्या था ?” बाबाजी फरमाने लगे, “तुम्हें हजम नहीं होगा। ” मैंने इकरार किया कि मैं आपकी जिन्दगी में किसी कोे नहीं बताऊँगा। इस पर बाबजी ने फरमाया कि पक्का इकरार करो । मैंने जवाब दिया, “ जी हाँ ? मेरा पक्का इकरार है।” बाबाजी ने फरमाया कि हुक्मसिह को काल के द्वारा सात जन्म गर्म तवे पर तपाया जाना था। उसके कर्म मुझे अपने ऊपर उठाने पड़े। देखो, सन्तों को शिष्यों की खातिर कितना कष्ट उठाना पड़ता है। नाम देकर सारे पिछले कर्मो का बोझ अपने ऊपर ले लेते हैं, परन्तु जरा भी जाहिर नहीं करते।
* राधा स्वामी जी *
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No-8
* करोड़ों बिजलियाँ टूट पड़ीं *
हमारे महाराज बाबा जैमलसिंह जी के पास दो-चार पण्डित आये। कुछ शास्त्रों के अर्थ को लेकर उनका आपस में झगड़ा था। कुछ कहते थे कि अर्थ ऐसे नहीं ऐसे है, तो कुछ कहते थे कि ऐसे नहीं ऐसे है। कहने लगे चलो ! महाराज जी के पास चलें, वह अन्दर जाते हैं। जब आये और अपना सारा विवाद पेश किया तो महाराज जी ने कहा कि मैं संस्कृत नहीं जानता। आखिर तरीके के साथ उन्हें समझा दिया। तब उन्होंने कहा कि हमें नाम दो। महाराज जी ने कहा कि विद्या वाले के लिये नाम की कमाई करना मुश्किल हैं। उनमें से एक रह गया और कहने लगा, मुझे नाम दे दो। महाराज जी ने उसे नाम दे दिया।
छः महीने के बाद वह आया और कहने लगा कि सुरत-शब्द योग का तरीका अच्छा नहीं, प्राणायाम अच्छा है। कोई नौ महीने बाद फिर आया और बोला कि प्राणायाम भी अच्छा नहीं। आप मुझे दिखाओ कि अन्दर क्या हैं ? तब महाराज जी ने कहा नाम की कमाई करो। फिर चला गया।
एक बार महाराज जी सठियाले पेंशन लेने जा रहे थे, रास्ते में वह पण्डित मिला और कहने लगा कि यहाँ उजाड़ है, मुझे जरा-सा बता दो। महाराज जी ने कहा, “ तेरा नुकसान हो जायेगा।” वह बोला कि जरा-सी तवज्जह दो। जब महाराज जी ने जरा-सी तवज्जह दी तो वह गिर पड़ा और चिल्लाया कि सँभाल लो। महाराज जी ने कहा कि अन्दर से खयाल हटा दो। जब हटाया और खयाल बाहर आ गया तो उसने बताया कि अन्दर करोंड़ों बिजलियाँ टूट पड़ी थीं। जब महाराज जी ने कहा कि तेरी उमर तीन साल बाकी है, चाहे तू भजन कर ले, चाहे दुनिया का काम कर ले। फिर वह चला गया।
इसीलिए कहते है कि सन्तों के साथ जिद नहीं करनी चाहिये, बल्कि उनकी रजा या मौज में रहना चाहिये।
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No-9
* सम्मन-मूसन *
श्री गुरु अर्जुन साहिब के वक्त दो व्यक्ति, पिता और पुत्र अच्छे प्रेमी और शब्द के अभ्यासी थे। पिता का नाम सम्मन और पुत्र का नाम मूसन था। वे मजदूरी करके अपना गुजारा करते थे। जब गुरु साहिब अमृतसर से लाहौर गये तो कोई सेवक कहे कि मेरे घर खाना खाओ,कोई कहे मेरे घर खाओ। यह देख कर गुरु साहिब ने कहा कि आप लिस्ट बना लो कि किस दिन किसके घर प्रसाद है।
यह बात सुन कर सम्मन और मूसन को भी शौक हुआ कि हम भी प्रसाद करें। खर्च को पूरा करने के लिये और अधिक मजदूरी कर लेंगे। सो उन्होनें भी लिस्ट में नाम लिखवा दिया। जब प्रसाद करवाने का समय नजदीक आया तो वे बीमार पड़ गये। जो रुपये कमाये हुए थे, दवा और खाने-पीने में खर्च हो गये। अब प्रसाद कराने का दिन आ गया। लांगरियों का नियम था कि जो खाना उन्हें सुबह बनाना हो उसके लिये वे रात को ही बर्तन और अन्य सामान तैयार कर लेते थे। रात को लांगरी आये और उनसे बोले, “ भाई जी ! सुबह आपके घर प्रसाद है सो हमें सामान दो। ” अब उनके पास कोई चीज तैयार नहीं थी। आपस में सलाह करते हैं कि क्या करें। आखिर सलाह हुई कि चोरी करके इस जरूरत को पूरा किया जाये। बाद में इतना रुपया कमा कर वापस कर देंगे। सतगुरु की सेवा जरूर करनी है। अगर प्रसाद न किया तो गुरु साहिब क्या कहेंगे ? यह सोच कर उन्होंने लांगरियों से कहा कि अभी तो नहीं लेकिन कल सूरज निकलने से पहले ही सारा सामान दे देंगे। लांगरी चले गये।
उनकी गली में एक साहूकार की दुकान थी। रात को उसकी दुकान में सेंध लगाई। जो कुछ उन्हें सामान चाहिये था सब निकाल लिया। सिर्फ नमक मिर्च बाकि रह गया। पहले तो कहने लगे कि यह मसाला वगैरह रहने दें, फिर सोचा कि नहीं, दुबारा चल कर नमक-मिर्च भी ले आयें। जब वे मिर्च-मसाला लेने लगे तो साहूकार जाग पड़ा। उस समय बाप तो दुकान से बाहर आ गया था, बेटा सेंध से निकल रहा था। जब सिर बाहर निकाला तब साहूकार ने उठ कर नीचे से टांगें पकड़ लीं। अब वह पूरा बाहर न निकल सका। बाप सिर की ओर से पकड़ कर खींचने लगा और साहूकार पैर की ओर से। अब न बाप छोड़े न साहूकार छोड़े। बड़ी खींचातानी हुई। आखिर बेटे ने बाप से कहा कि आप मेरा सिर काट लो। सिर से ही पहचान होती है, अगर सिर न हुआ तो लाश किस तरह पहचानी जायेगी। अब बाप अपने ही बेटे का सिर किस तरह काटे ! उसने कहा, “ मैं सिर नहीं काट सकता।” पुत्र ने कहा, “पिता जी ! गुरु के लिये मेरा सिर काट लो, क्योंकि मैं नहीं चाहता कि हमारे गुरु की बदनामी हो। इस तरह बदनामी भी नहीं होगी और सतगुरु की सेवा भी हो जायंेगी।”
बाप ने थोड़ी देर विचार किया, फिर मारी तलवार और पुत्र का सिर काट लिया। धड़ नीचे जा गिरा। सम्मन ने पुत्र मूसन का सिर लाकर घर में रख दिया। अब बेटे की मौत, कलेजा कैसे ठहरे ? बड़ी मुश्किल से एक घण्टा गुजारा। उधर साहूकार ने कहा कि चोर को देखें तो सही कौन है ?जब देखा, उसका सिर नहीं है। उसको फिक्र हो गया। मन में सोचता है अगर इसको यहाँ से कहीं और न हटाया तो सुबह पुलिस मेरे दरवाजे पर खड़ी होगी और मैं पकड़ा जाऊँगा। पुलिस कहेगी कि तूने सिर काटा है। हो न हो किसी के घर रख दें। उसने सम्मन को बुला कर उठवाई और कुछ रुपये भी दिये कि इसको ठिकाने लगा दे, मैं तुझे और भी खुश कर दूँगा। सम्मन ने धड़ को वहँा से उठा लिया और अपने घर लाकर धड़ और सिर दोनों जोड़ कर रख दिये। उसका बहुत- सा दुःख कम हो गया। सोचा कि मैं अब कहूँगा, जी मूसन बीमार है।
जब सुबह हुुई, लांगरी आये। सम्मन ने उनको सारा सामान दे दिया। लांगरी लगे प्रसाद तैयार करने। जब प्रसाद तैयार हो गया तब गुरु साहिब आये। गुरु साहिब ने कहा, “सम्मन, मूसन को बुला। ” सम्मन ने उनसे अर्ज की, “महाराज जी ! वह बिमार है।” गुरु साहिब ने फरमाया, “बीमार है तो क्या हुआ। उसे तू बुला।” सम्मन बोला, हजूर ! वह नहीं आ सकता। गुरु साहिब कहने लगे, नहीं उसको आना चाहिये। सम्मन ने हाथ जोड़ कर अर्ज की, हजूर ! मेरे कहने से वह नहीं आता। गुरु साहिब बोले, अच्छा तो फिर मैं बुलाऊँ ? सम्मन ने कहा, जी हाँ ! जरूर बुलाओ। गुरु साहिब ने आवाज लगाई, मूसन ! उठ कर बाहर आ जा, ऐसे वक्त तू कहाँ चला गया है ? गुरु जी का इतना कहना था कि मूसन उठ कर नौ-बर-नौ ( ठीक-ठाक ) होकर बाहर आ गया और मूसन और सम्मन दोनों गुरु साहिब के चरणों पर गिर पड़े।
सो मतलब यह कि जिन्होंने तन-मन दिया उन्होंने अपना सबकुछ कुर्बान कर दिया।
* राधा स्वामी जी *
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No-10
* काजी की खोई हुई लड़की *
ख़्वाजा हाफिज शीराजी ईरान में एक पहुँचे हुए महात्मा हुए है। क्योकि मुसलमानों में शराब से मुसल्ला रंगना कुफ्र का कलाम है, कहते हैं कि जब आपने अपने दिवान में यह बात कही कि “बमै सज्जादः रंगीकुन गरत पीरे मुगाँ गोयद’ ( अथात अगर मुर्शिद हुक्म दे तो शराब से मुसल्ला रंग ले ) तो शोर मच गया कि इसने ’शराब में मुसल्ला रंग दो’-यह कुफ्र का कलमा कहा है।
पहले इंसाफ करना काजियों के हाथ में था। लोगों ने जाकर काजी को कहा कि अमुक आदमी ने कुफ्र का कलमा कहा है। वह हाफिज साहिब के पास आया कि तुमने कुफ्र का कलमा कहा है, या तो इसका मतलब समझाओ या अपना कलमा वापस लो। ख्वाजा हाफिज ने कहा कि फकीर अपना कलाम वापस नहीं ले सकते; क्योंकि जो मालिक ने अन्दर से हुक्म दिया, मैंने बहार कह दिया। काजी ने दोबारा मतलब पूछा। हाफिज साहिब ने कहा कि वह जो सामने पहाड़ी है, वहाँ एक फकीर बैठा है, उसके पास जाओ, वह तुम्हें इस सवाल का जवाब देगा। खैर, काजी वहाँ पहुँचा। जब उस फकीर से मतलब पूछा गया तो उसने कहा कि वह जो सामने शहर है, उसमें एक मकान है, वहाँ एक अमुक वेश्या है। उसके पास जाओ। यह लो दो रुपये लेते जाओ। वह वेश्या इस सवाल का जवाब देगी।
काजी ने सोचा कि अजीब तरह के फकीर हैं। एक कहता है कि मुसल्ला रंग लो, दूसरा कहता है कि वेश्या के घर जाओ। खैर ! काजी ने सोचा तहकीकात जरूरी है। चलो देखें तो सही क्या मामला है।
आखिर काजी वहाँ से उस शहर में गया। वेश्या का मकान पूछ कर वहाँ चला गया। वेश्या तो कही गई हुई थी। लेकिन महलदारन घर पर थी। उसने सोचा कि मेहमान अमीर मालूम होता है, आसामी मोटी है, बहुत कुछ हासिल होगा। उन्होंने एक लड़की पाली हुई थी। अब वह जवान हो गई थी, उस लड़की से कहा, “देख हम जो कुछ करते हैं तुझे पता है, हमारा पेशा ही ऐसा है। इसलिये तुझे यह काम करना पड़ेगा। देख हमने तुझको इसी काम के लिय खरीदा है। अब तू जवान हो गई है।” आखिर उस लड़की को वेश्या के कपड़े पहना कर काजी के कमरे में छोड़ आई। लेकिन वह लड़की बहुत उदास थी। आँखो से आँसू बह रहे थे। काजी ने सोचा कि अगर वेश्या होती तो हँसी-खुशी के साथ आती; लेकिन यह वेश्या नहीं है, यह कुछ और ही मामला है। यह सोच कर काजी ने कहा, “बेटी, मैं तुझे कुछ नहीं कहता। बता तू कौन है ?” लड़की ने धीरे-धीरे, रोते-रोते जवाब दिया कि मैं मुसीबत की मारी हुई हूँ। आज तक मैं नेक पाक रही, लेकिन आज पहली बार है कि मैं बुरे कामों में पड़ने जा रही हूँ। मालूम नहीं क्या हाल होगा ?
काजी ने कहा कि तू डर मत। मैं तुझे कुछ नहीं कहता। सच-सच बता कि तू कौन है ? लड़की कहने लगी कि मुझे थोड़ा-थोड़ा याद है कि मैं जब छोटी-सी थी, हमारे गाँव में डाका पड़ा था। सब लोग भाग गये। मैं भी भागी लेकिन मुझे डाकुओं ने पकड़ लिया। वे यहाँ इनके घर बेच गये। काजी ने पूछा कि तेरा गाँव कौन-सा था ? लड़की ने कहा, मुझे थोड़ा-थोड़ा याद है कि मेरा अमुक गाँव था। वही काजी का गाँव था। काजी ने सोचा कि यह तो अपने ही गाँव की लड़की है। दिल में जोश आया। फिर पूछा कि क्या याद है कि तेरे मुहल्ले का क्या नाम था ? लड़की ने कहा, मुझे थोड़ा-थोड़ा याद है कि हमारे मुहल्ले का यह नाम था। वह काजी का अपना मुहल्ला था। अब मुहल्ले की लड़की, और पूछने का विचार आया। उसने पूछा कि तेरे बाप का क्या नाम था ? लड़की ने कहा कि मैं छोटी थी पर मुझे थोड़ा-थोड़ा याद है कि मेरे बाप का यह नाम था। वह काजी साहिब खुद बैठे हुए थे। रोकर गले से लगा लिया और बोला कि तू मेरी ही लड़की है। तूझे डाकू पकड कर ले गये थे। लड़की की बाँह पकड़ कर उस फकीर के पास ले गया। उनसे कहा कि बाहर से तो तुमने मुझे काम के लिये भेजा, लेकिन अन्दर कोई और ही राज था। मुझे अब पता लगा कि अन्दर से तुम्हारा मतलब लड़की से मिलाना था।
उस फकीर ने कहा कि ख्वाजा साहिब से कहो इसका अगला मिसरा ( पद ) भी कह दें, जब हाफिज के पास आया तो बोला कि इसका अगला मिसरा कह दो। तब हाफिज ने कहाः
के सालिक बेखबर न बवद ज राहे रस्मे मंजिलहा।
अर्थात मार्ग-दर्शक मंजिल की राह के भेद और रीति से अनजान नहीं है।
* राधा स्वामी जी *
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Radha Swami ji