NO -1 * मच्छर और रामदित्ता *
मैं जब बाबाजी महाराज के पास आया, तो मच्छर और रामदित्ता ’मंडाली’ के दो जाट सत्संगी थे। अच्छे प्रमी थे। जब तक सुबह उनको गुरु के दर्शन नहीं होते, वे काम को हाथ नहीं लगाते। जो प्रेमी हो, गुरु भी उनको देखता है, कभी-कभी आजमाइश भी करता है। उन्होंने अपने खेतों में मक्का बोया हुआ था। उस दिन कुएँ से पानी देने की बारी थी। रामदित्ता ने कहा, “मच्छर ! आज महाराज जी ( बाबाजी महाराज ) के दर्शन नहीं हुए।” मच्छर ने जवाब दिया, मुझे भी नहीं हुए लेकिन अगर आज पानी न दिया तो मक्का सूख जायेगा। रामदित्ता बोला, सूख जायेगा तो गुरु का सूख जायेगा। और दोनों फिर भजन पर बैठ गये। एक घण्टे के बाद महाराज जी के दर्शन हो गये ।तब उठ कर रहट चलाई और पानी दिया। सतगुरु हमेशा शिष्य के साथ और हर बात में मदद देता है।
No-2 * लक्खासिंह और नांदेड़ का जंगल *
लक्खासिंह अमृतसर में एक अच्छा प्रेमी सत्संगी था। एक बार वह दक्षिण में नांदेड़ गया। वहाँ उसको एक बूढ़ा आदमी मिल गया। दोनों को एक गुरुद्वारा जाना था। चलते-चलते रास्ते में एक जंगल आ गया। जंगल में शेर, बाघ और कई खूँख्वार जानवर थे। इधर शाम हो गई, उधर वे रास्ता गये। जिस तरफ जायें जंगल ही जंगल नजर आये। जायें कहाँ ? बूढ़ा आदमी रोने लगा कि अब क्या करें ? आज कोई जंगली जानवर हमें जरूर खा जायेगा। लेकिन लक्खासिंह कि हालत और ही थी। वह चुपचाप भजन में बैठ गया, तब महाराज जी ने प्रकट होकर बताया कि यहाँ से डेढ़ मिल दाहिनी तरफ जाओ, वहाँ एक पगडण्डी मिलेगी, उस पर चलते जाना। थोड़ी दूरी पर एक छोट-सा गाँव आयेगा, वहाँ से रास्ता मिलेगा। जब वह दोनों वहाँ से डेढ़ मील दाहिने हाथ गये तो पगडण्डी मिल गई और गाँव मिल गया। वहाँ रात ठहरे, दूसरे दिन सुबह गुरुद्वारा को चल पड़े और अपनी मंजिल पर पहुँच गये। सतगुरु तो हमेशा ही अंग-संग है, सिर्फ हमारे अन्दर कोशिश और विश्वास की कमी है।
No-3 * प्रेम की लपट *
स्वामीजी महाराज को तुलसी साहिब से परमार्थ की रोशनी मिली है। तुलसी साहिब स्वामीजी महाराज के घर आया करते थे। एक बार जब वे उनके घर तो उनकी प्रेमी सत्संगी महिलाओं को भी पता लगा। वे बड़े प्रेम से जिस हालत में थीं, जल्दी-जल्दी चली आई। उस जमाने में ऐसी मलमल नहीं थी, उनके खददर के कपड़े पसीने से भीगे हुए थे।
जब इन महिलाओं ने आकर माथा टेका तो तुलसी साहिब के एक सेवक गिरधारीलाल ने उनसे कहा, बीबियों, पीछे हट कर बैठो, तूम्हारे कपड़ो से बदबू आती है।
तुलसी साहिब ने कहा, गिरधारी ! तू इनके प्रेम की खुशबू की खबर नहीं। यह क्या खयाल ले कर आई हैं, तू नहीं जानता। इनसे तुझे बदबू आती है लेकिन मुझे बदबू नहीं आती।
जिनको ऐसी प्रीत होती है, गुरु उनसे प्रसन्न होता है और अपना निज सेवक मानता है।
No-4 * बीबी शिब्बो का प्रेम *
हुजूर स्वामीजी महाराज के वक्त भी दो-चार प्रेमी बीबियाँ थी; उनमें से एक थी बीबी शिब्बो। एक बार वह स्नान करने लगी तो एक योगी आया। जब योगी ने गुरु-प्रेम का शब्द पढ़ा तो शिब्बो का अपने गुरु, स्वामीजी महाराज की और ध्यान लग गया। वह इतनी ध्यान-मग्न हो गई कि वस्त्र पहनना भी भूल गई, अपने गुरु ( स्वामीजी महाराज ) के प्रेम में मग्न वह नंगी ही घर से निकल पड़़ी। वह गलियों में से होती हुई स्वामीजी महाराज के पास जा पहुँची और वह उनके चरणों में गिर कर रोने लगी। स्वामीजी महाराज ने फरमाया, अरी पगली तू तो नंगी है, जा कपड़े पहन कर आ। जब वह दूसरी ओर कपड़े पहनने चली गई तो स्वामीजी महाराज ने हँस कर कहा, ’अच्छा कोई तो प्रेमी मिला।’ सतगुरु की दया-मेहर की खास बात यह भी है कि बीबी शिब्बो गलियों में से गुजरती हुई उनके पास आई तो रास्ते में किसी ने उसको नहीं देखा।
No-5 * खुशबू पहचानने वाली नाक *
एक बार जब मैं एस ़डी ़ओ ़था, पहाड़ में जा रहा था। एकाएक मेरे दिल में खुशी आ गई। मैं समझ न सका कि वह किस बात की थी। कभी-कभी आदमी औलाद को याद करके खुश होता है। कभी अपने पद को याद करके खुश होता है। मेरे दिल में खयाल आया कि शायद अप्रैल का महीना शुरू है, खुशबूदार पेड़ो की खुशबू के कारण खुशी हैं। फिर खयाल आया कि मुझे अठारह साल हो गये हैं, आज खुशी क्यों है ? ज्यों-ज्यों मैं आगे गया खुशी बढ़ती गई। आगे गया तो सड़क के किनारे एक मस्त फकीर बैठा था, यह खुशी उसकी थी। मैं उसको देख कर उसकी इज्जत के लिये घोड़े से उतर गया। देख कर वह बोला, ’खुशबू लेने वाली नाक भी कोई -कोई होती है।’
No-6 * कर्मो का कानून अटल *
रामायण में आता है कि बाली ने तपस्या करके वर लिया था कि जो भी लड़ने के लिये उसके सामने आये, उसका आधा बल बाली में आ जाये। इसी कारण जब भी सुग्रीव उससे लड़ाई करने जाता? पराजित होकर लौटतां।
रामचन्द्र जी को इस भेद का पता था। जब सुग्रीव बाली के खिलाफ मदद के लेने उनके पास आया तो ( अपना बल सुरक्षित रखने के लियें) उन्होंने पेड़ों की ओंट में खड़े होकर बाली पर तीर चलाया और उसे मार डाला। मरते समय बाली ने रामचन्द्र जी से कहा, ’मैं बेगुनाह था, आपका कुछ नहीं बिगाड़ था। अब इसका बदला आपको अगले जन्म में देना पड़ेेगा।’
सो अगले जन्म में रामचन्द्र जी कृष्ण महाराज बने और बाली भील बना। कृष्ण महाराज महाभारत के युद्ध के बाद एक दिन जंगल में पैर पर पैर रख कर सो रहे थे, तो भील ने दूर से समझा कि काई हिरन है, क्योंकि उनके पैर में प़़द्य का चिह्न था जो धूप में चमक कर हिरन की आँख जैसा लग रहा था। उसने तीर-कमान उठाया और निशाना बाँध कर तीर छोड़ा जो कृष्ण महाराज को लगा। जब भील अपना शिकार उठाने के लिये पास आया तो उसे अपनी भयंकर भूल का पता चला। दोनों हाथ जोड़कर वह कृष्ण महाराज से अपने घोर पाप की क्षमा माँगने लगा। तब कृष्ण महाराज ने उसे पिछले जन्म की घटना सुनाई और समझाया कि इसमें उसका कोई दोष नहीं है, यह तो होना ही था। उन्हें अपने कर्मो का कर्जा चुकाना ही था।
कर्मो का कानून अटल है। कोई भी इससे बच नहीं सकता, अवतार भी नहीं।
No-7 * कर्मो का फल *
जब मैं लड़ाई में गया था तब की बात है। वहाँ एक दरोगा था, उसने जानवरों के राशन में से करीब एक लाख रुपया चुरा लिया। जब उसकी मौत आई तो कहने लगा कि यह गाय सींग मारती है, वह बैल सींग मारता है। इसी तरह एक और आदमी का जिक्र है। वह पुलिस में इन्सपेक्टर था। जब मौत आई तो बोला, ’लड़के की मां, देख यमदूत मेरे हाथ जलाते हैं।’ अर्थात हम जो-जो कर्म करते है, भुगतने पड़ते हैं।
No-8 * काल का सारा हिसाब दे दिया *
यहाँ एक ठाकुरसिंह नामक सत्संगी था। उसको लोगों के घर में खाने की आदत थी। उसको प्लेग की बीमारी हो गई। मैने पूछा कि क्या हाल हैं ? तो बोला कि जी, काल हिसाब माँगता है। मौत से चार दिन पहले बिलकुल चुप रहा। आखिर उसने कहा कि सारा हिसाब दे दिया है। अब शब्द पढ़ो। मैने मन्नसिंह से कहा कि शब्द पढ़ो। जब शब्द पड़ा उसकी रूह फौरन अन्दर चली गई। चेहरे पर गमी की जगह खुशी आ गई। इससे ज्यादा सत्संगी शिष्य को मौत के वक्त क्या चाहिये। नाम का बड़ा प्रताप है। आग की एक चिनगारी करोड़ मन लकड़ियों को जला देती है।
No-9 * विरह वेदना *
शेख शिबली एक दिन अपने शिष्यों के साथ बैठे थे। सर्दी का मौसम था, आग जल रही थी। अचानक उनका ध्यान चूल्हे में जलती हुई लकड़ियों के ऊपर पड़े एक लकड़ी के टुकड़े पर गया जो धीरे-धीरे सुलग रहा था। लकड़ी कुछ गीली थी, इसलिये आग की तपिश से पानी की कुछ बूँदे इकटठी होकर उसके एक कोने से टपक रही थीं। कुछ देर सोचने के बाद शेख शिबली ने अपने शिष्यों से कहा:
’तुम सब दावा करते हो कि तुम्हारे अन्दर परमात्मा के लिये गहरा प्रेम और भक्ति है, पर क्या कभी सचमुच विरह की आग में जले हो ? मुझे तुम्हारी आँखों में न कोई तड़प, न विरह की वेदना के आँसू दिखाई देते हैं। इस लकड़ी के टुकड़े को देखो, यह किस तरह जल रहा है और किस तरह आँसू बहा रहा है। लकड़ी के इस छोटे, मामूली टुकड़े से कुछ सीखो।’
No-10 * कौन बड़ा हैं ? *
एक पादरी हमेशा मेरे साथ बहस करता रहता था। एक बार जब मैं ब्यास स्टेशन पर उतरा , तो वह बोला कि एक सवाल का जवाब दो। मैंने कहा, ’कहो।’ उसने कहा कि मुझे बताओ गुरु नानक साहिब बड़े हैं कि कबीर साहिब बड़े हैं या जैमलसिंह जी ? मैनें कहा, ’भाई ! सभी को मेरे सामने खड़ा कर दो, तब मैं बता दूँगा कि कौन बड़ा है।’ वह कहने लगा, ’यह तो मैं नही कर सकता।’ तब मैंने कहा, ’भाई ! मैंने तो बाबा जैमलसिंह जी को देखा हैं, मै तो उनके बारे में सब कुछ कह सकता हूँ, परन्तु जिनके मैंने कभी दर्शन नहीं किये उनका आपस में मुकाबला करना मेरे लिये नामुमकिन है।’ सन्त-सतगुरु सब एक ही धाम से आते हैं, उनमें मुकाबले का सवाल ही नहीं पैदा होता।
No-11 * दो खुदा *
मैं एक बार अपने सबडिवीजन का दफ्तर लेकर रावलपिंडी आया; वहाँ एक एस ़डी ़ओ ़था जो इंचार्ज था। हमारा नियम था कि जब शाम को काम छोड़ना; इकटठे ही छोड़ना। एक दिन की बात है, छुटटी का वक्त हो चुका था कि मेरा क्लर्क कागज पर दस्तखत करवाने के लिये आ गया। उधर वह कहने लगा, ’चलो भाई ! कल कर लेंगे।’ मैंने कहा, ’मुझे दस्तखत कर लेने दो।’ वह बोला, ’छोड़ो भी। आप ही खुदा करेगा।’ मैंने पूछा, ’कौन-सा खुदा ? उसने कहा, ’क्या खुदा दो हैं ?’ मैंने कहा कि हाँ। उसकी समझ मे ंतो न आया लेकिन चुप हो गया। जब घर आया, सारे रास्ते सोचता आया। रात को कोई फकीर मिला, उसने अच्छी तरह समझा दिया कि दुनिया का खुदा और है, सन्तों का खुदा और है। जब सवेरे दफ्तर आया तो बोला कि तुम्हारी कल की बात में राज है। मैंने पूछा कि क्या स्पष्ट करके समझाऊँ ? उसने कहा, ’नहीं, मेरी तसल्ली हो गई।’ सो जो दुनिया का मालिक है वह काल है, और जो गुरुमुखों का खुदा है वह त्रिलोकी से आगे है, वह दयाल है।
No-12 * दरवाजे ही खोल दिये *
जिस तरह जेलखाने में कुछ कैदी हों, उनकी दुःखी हालत देख कर कोई परोपकारी आता है और यह सोच कर कि इनको ठण्डा पानी नहीं मिलता, दस-बीस बोरियाँ चीनी की और कुछ बर्फ मिला कर ठण्डा पानी पिला कर उनको खुश कर जाता है। एक दूसरा आता है और यह देख कर कि उनको अच्छे गेहूँ की रोटी नहीं मिलती, बाजरा खाते हैं, हजार दो हजार मन मिठाई मँगवा कर खिला देता है। कैदी खुश हो जाते है। इसी प्रकार तीसरा परोपकारी आता है और यह देखता कि उनको अच्छे कपड़े नहीं मिलते, बल्कि मोटे मिलते हैं जिनमें जूएँ पड़ जाती हैं, वह अच्छे नये कपड़ों की पोशाकें बनवा कर पहना देता है। कैदी खुश हो जाते हैं। उन सबने सेवा की लेकिन कैदी जेलखाने में ही रहे। हमें भी परोपकार करना चाहिये, लेकिन हमारा परोपकार किसी को चैरासी के जेलखाने से आजाद नही ंकर सकता। अब फिर इस जेलखाने की मिसाल की तरफ आओ। एक आदमी के पास जेलखाने की कुँजी है। उसने आकर सारे जेलखाने के दरवाजे खोल दिये और कैदियों से कहा कि जाओ अपने-अपने घरों को। सबसे अच्छा परोपकारी कौन है ? जिसने आजाद कर दिया। इसी तरह दुनिया के जेलखाने से आजाद होने की कुँजी नाम है। नाम पूरे गुरु से मिलता है।
No-13 * डेरा और दरिया *
जब मुझे महाराज जी ( बाबा जैमलसिंह ) के दर्शन हुए, वहाँ ( डेरा बाबा जैमलसिंह में ) कोई मकान नहीं था, सिर्फ एक छोटी-सी कोठरी थी; उसके आसपास बाड़ थी। पानी का कोई इन्तिजाम नहीं था। पानी दरिया से लाना पड़ता था या वड़ाइच ग्राम में एक कुआँ था, जहाँ से पानी लाया जाता था।
जिस समय यहाँ काम शुरू हुआ, कुएँ भी लगवाये और मकान भी बनवाये; उस वक्त वड़ाइच गाँव नदी में बाढ़ के कारण ढह रहा था। लोगों ने कहा कि तुम यहाँ मकान बनवाते हो, कुआँ लगवाते हो, यह तुम्हारी बेवकूफी है। अगर दरिया ले गया तो फिर ? मैंने उनको जवाब दिया कि अगर मकान बन जायें और सतगुरु एक बार भी आकर इनमें बैठ जायें तो मैं अपनी मेहनत को सफल , फिर चाहे दरिया ले जाये परवाह नहीं।
सो यह सतगुरु की सेवा है। मतलब यह कि जो धन साध-संगत की सेवा में लग जाये वह सफल है, उसकी रखवाली भी सतगुरु आप ही करते है।
No-14 * सिमरन की ताकत *
✍️ एक बार राजा अकबर ने बीरबल से पूछा कि तुम हिंदू लोग दिन में कभी मंदिर जाते हो, कभी पूजा-पाठ करते हो, आखिर भगवान तुम्हें देता क्या है ?
बीरबल ने कहा कि महाराज मुझे कुछ दिन का समय दीजिए बीरबल ने एक बूढी भिखारन के पास जाकर कहा कि मैं तुम्हें पैसे भी दूँगा और रोज खाना भी खिलाऊंगा, पर तुम्हें मेरा एक काम करना होगा । बुढ़िया ने कहा ठीक है जनाब बीरबल ने कहा कि आज के बाद अगर कोई तुमसे पूछे कि क्या चाहिए तो कहना अकबर, अगर कोई पूछे किसने दिया तो कहना अकबर शहनशाह ने
वह भिखारिन “अकबर” को बिल्कुल नहीं जानती थी, पर वह रोज-रोज हर बात में “अकबर” का नाम लेने लगी । कोई पूछता क्या चाहिए तो वह कहती “अकबर”, कोई पूछता किसने दिया, तो कहती “अकबर” मेरे मालिक ने दिया है ।
धीरे धीरे यह सारी बातें “अकबर” के कानों तक भी पहुँच गई । वह खुद भी उस भिखारन के पास गया और पूछा यह सब तुझे किसने दिया है ? तो उसने जवाब दिया, मेरे शहनशाह “अकबर” ने मुझे सब कुछ दिया है, फिर पूछा और क्या चाहिए ? तो बड़े अदब से भिखारन ने कहा, “अकबर” का दीदार, मैं उसकी हर रहमत का शुक्राना अदा करना चाहती हूँ, बस और मुझे कुछ नहीं चाहिए
“अकबर” उसका प्रेम और श्रद्धा देख कर निहाल हो गया और उसे अपने महल में ले आया, भिखारन तो हक्की बक्की रह गई और “अकबर” के पैरों में लेट गई, धन्य है मेरा शहनशाह I
अकबर ने उसे बहुत सारा सोना दिया, रहने को घर, सेवा करने वाले नौकर भी दे कर उसे विदा किया । तब बीरबल ने कहा महाराज यह आपके उस सवाल का जवाब है ।
जब इस भिखारिन ने सिर्फ केवल कुछ दिन सारा दिन आपका ही नाम लिया तो आपने उसे निहाल कर दिया । इसी तरह जब हम सारा दिन सिर्फ मालिक को ही याद करेंगे तो वह हमें अपनी दया मेहर से निहाल और मालामाल कर देगा जी !!
“इस साखी का सार यह है कि हमें सारा दिन ही कुल मालिक का ध्यान करना है, आठों पहर उसके नाम का सिमरन करना है, एक बार वह हमारे ध्यान में बस गया तो हमारा काम ही बन जायेगा जी ,जब एक दुनियावी बादशाह के सिमरन से इतना कुछ मिल सकता है तो उस कुल मालिक जिसने ये सभी धरती और बादशह बनाये हैं उसके सिमरन से कितनी रहमत मिलेगी,हमारी क्या अवस्था होगी….”!
No-15 नाम की कमाई
एक गांव में एक नौजवान को सत्संग सुनने का बड़ा शौक था।
किसी से पता चला कि गांव के बाहर नदी के उस पार परम संत तुलसी दास जी ने डेरा लगाया हुआ है और आज उनका शाम को 5:00 बजे का सत्संग का प्रोग्राम है।
वह नदी पार करके नौका के द्वारा सत्संग में पहुंच गया। प्रेमी था बड़े प्यार से सत्संग सुना और बड़ा आनंद माना।
जब जाने लगा थोड़ा अंधेरा हो गया। देखा तूफान बहुत ज्यादा था और बारिश के कारण नदी बड़े तूफान पर चल रही थी।
अब जितनी नौका वाले मल्हाह थे, सब डेरे में रुक गए! कोई नौका से आने जाने का साधन नहीं है। संत तुलसी दास जी के पास पहुंचा और बोला महाराज मेरी नई नई शादी हुई है, मेरी पत्नी भी इस गांव में अनजान है और घर में मेरे कोई नहीं है। मेरे पास गहना वगैरा बहुत है,नकदी भी है और हमारा गांव में चोर लुटेरे भी बहुत हैं तो किसी भी हालत में मुझे वहां जाना ही पड़ेगा। नहीं तो पता नहीं क्या हो जाएगा..?
संत तुलसी दास जी ने एक कागज पर कलम से कुछ लिखा और बिना बताए उस पेपर को फोल्ड किया और उसके हाथ में पकड़ा दिया और कहा इसको खोलकर मत देखना कि इसमें क्या लिखा है।जब नदी के पास पहुंचो तो नदी को मेरा संदेश देना।
जब नदी के किनारे पहुंचा देखा तूफान बड़े जोरों का है। इसने चिट्ठी नदी की ओर दिखाते हुए कहा यह संत तुलसी दास जी ने तुम्हारे लिए भेजी है।
इतना सुनते ही नदी बीच में से अलग हो गई और ज़मीन दिखने लगी। पैदल चलने के लिए। यह बड़ा हैरान हुआ। इसे अपनी आंखों पर विश्वास नहीं हुआ। इसने आंखें मलीं, सोचा कहीं मैं सपना तो नहीं देख रहा हूं? फिर पैदल नदी पार करने लगा।
मन में जिज्ञासा उठी, देखूं तो सही इस चिट्ठी में लिखा कया है ? जब उसने चिट्ठी खोली तो उसमें लिखा था “राम”।
बड़ा हैरान हुआ, इतने में नदी वापस भर गई और रास्ता बंद हो गया। यह दौड़कर फिर वापस किनारे पर आ गया।
उसी समय संत तुलसी दास जी के पास पहुंचा और संत तुलसी दास जी को सारी बात कहकर सुनाई तो संत तुलसी दास जी ने कहा-भाई मैंने पहले ही कहा था कि चिट्ठी खोलना नहीं। खैर उसी समय दूसरी चिट्ठी दी और कहा इस चिट्ठी को खोलना नहीं और वैसे ही करना।
यह बड़ा हैरान था। संत तुलसी दास जी से पूछा – महाराज चिट्ठी पर तो राम लिखा था, तो इसमें अलग क्या है? राम तो हर कोई लिखता है, पढ़ता है। तो संत तुलसी दास जी ने फरमाया एक राम वो है,जो लोग पढ़ते हैं,सुनते हैं, लिखते हैं और यह मेरा अपना राम है जो मैंने सारी जिंदगी “भजन सिमरन” करके कमाया है।
मित्रो, जो गुरु का दिया “नाम” है, वो आपको हर जगह मिल जाएगा लिखा हुआ लेकिन जो उन्होंने हमें दिया है उसमें ‘पावर’ है। वह उन्होंने कमाया है उनका निजी खजाना है और जब हम “भजन सिमरन” का अभ्यास रोज-रोज करते हैं तो इसी खजाने को बढ़ाते हैं।
हजूर फरमाया करते थे, ये जो संगत है, मेरी फुलवारी है। हर भजन करने वाले से मुझे खुशबू आती है। हमे भजन सिमरन करके इसे बढ़ाना है, पर हम अज्ञानी इसे बढ़ाने की बजाय संसारी वस्तुओं को बढ़ा रहे हैं जो सब यहीं रह जाएँगी।
राम राम करता सब जग फिरे राम ना पाया जाए