NO-1* गुरु का हुक्म *
गुरु नानक साहिब ने अपने सेवकों को मुर्दा खाने का हुक्म दिया। देखने में यह मुनासिब हुक्म नहीं था। हम मुर्दे को छू जाने पर नहाते हैं फिर खाये कौन ? एक भाई लहना खड़े रहे बाकी सब शिष्य चले गये। यह सबको नाजायज हुक्म लगा था, लेकिन भाई लहना को नहीं। गुरु नानक साहिब ने उनको गुरु-गद्दी का हकदार बना दिया और वे भाई लहना से गुरु अंगद साहिब बन गये। इसी तरह जब गुरु गोबिन्दसिंह ने अपने शिष्यों की परख की तब पाँच हजार में से सिर्फ पाँच प्यारे निकले। जब गुरु परखता है तो बड़े-बड़े फेल हो जाते हैं। जीव का इम्तिहान में पास होना बड़ी मुश्किल बात है। गुरु किसी का इम्तिहान न ले।
* राधा स्वामी जी *
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NO-2* बकरा और बन्दर *
एक स्त्री ने एक बकरा और बन्दर पाल रखा था। एक दिन उसने बड़े प्रेम के साथ अच्छा खाना बनाया और दही लेने के लिये बाजार गई। बन्दर ने क्या किया, अपने हाथों से अपनी रस्सी खोल कर, रोटियाँ खाकर बकरे की रस्सी खोल दी और अपने गले में उसी तरह रस्सी डाल ली। जब वह स्त्री वापस आई तो देखा कि खाना नहीं है और बकरा खुला फिर रहा है। लगी बकरे को मारने। कोई सज्जन यह सब देख रहा था। उसने कहा कि यह बकरा बे-कसूर है, सारा कसूर उस भलेमानस बन्दर का है। इसलियं अपनी कामना पूरी करने के लिये यह मन रूपी बन्दर सबकुछ कर लेता है।
* राधा स्वामी जी *
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NO-3 * घोडे़ का अड़ना *
एक फकीर का जिक्र है। वह घोड़े पर बैठा हुआ कहीं जा रहा था। उसका एक शिष्य जंगल में उसकी याद में बैठा हुआ, उसका इन्तिजार कर रहा था। फकीर जिधर घोड़ा ले जाना चाहे, उधर न जाये, वह इधर करे तो घोड़ा उधर चला जाये। उसने बहुत जोर लगाया लेकिन घोड़े ने एक न मानी। आखिर हार कर कहता है, मालूम नहीं क्या बात है, मेरा घोड़ा कभी नहीं अड़ा। ( घोड़े के मुखातिब करके ) अच्छा! जिधर तेरी मरजी है ले चल। तो वह घोड़ा सीधा जंगल की ओर लेकर चल पड़ा और तीन-चार मील जाकर रुक गया। आगे वह शिष्य बैठा हुआ था। मुर्शिद को देख कर उठ खड़ा हुआ। फकीर ने कहा, अरे यह क्या ? शिष्य ने कहा कि आज मेरा दिल आपके दर्शन करने को तड़प रहा था। सो शिष्य के अन्दर कशिश होनी चाहिये। गुरु अपने आप पहुँच जाते है।
* राधा स्वामी जी *
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NO-4* क्बूतरों के परों पर अलिफ-बे *
जीवों को समझाने के लिये महात्माओं के अलग-अलग तरीके होते हैं। जिक्र है, एक बादशाह का लड़का पढ़ाई में चोर था, उसको कबूतर रखने का बहुत शौक था। एक महात्मा आ गये। बादशाह ने कहा, महात्मा जी! मेरा लड़का पढाई का चोर है और कबूतरों का शौक रखता हैं। इसको हिदायत करो कि यह कुछ पढ़-लिख जाये। महात्मा ने बच्चे को बुला कर कहा, आओ कबूतर रखें। फिर पूछा, तेरे पास कितने कबूतर है ? लड़के ने कहा, जी बीस। महात्मा ने कहा कि नहीं सौ दौ सौ रख लो। दोनों इनकी उड़ान देखेंगे। लड़के ने कहा, जी बहुत अच्छा! जब कबूतर आ गये तो महात्मा ने कहा, यह तो बहुत सारे हो गये हैं, इनके नाम रखने चाहियें। फिर उनके परों पर लिखा, अलिफ, बे, पे, ते इत्यादि। इसी तरह उसको पढ़ना-लिखना सिखा दिया। बच्चों को जबरदस्ती किसी काम में या तालीम में डालने की जगह उनके मन की वृत्ति को अच्छी तरह समझ कर उनके अनुसार ही शिक्षा का प्रबन्ध करना हमेशा लाभदायक होता है।
* राधा स्वामी जी *
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NO-5* सुथरा और आग *
गुरु अर्जुन साहिब के समय में सुथरा नामक एक ला-धड़क फकीर हुआ है। किसी ने उनसे कहा कि एक महात्मा आये हैं, चलो दर्शन करें। बोले कि चलो। जब पहुँचे तो उस महात्मा से सुथरा ने कहा, हरिहर सन्तो। उस महात्मा ने भी कहा, हरिहर सन्तो! थोड़ी देर के बाद सुथरा उन्हें कहने लगे कि मुझे आग चाहिये। वह बोला कि मेरे पास आग नहीं है। सुथरा ने फिर पूछा, आग है ? कहता है कि तुम्हें जो कहा कि आग नहीं है। सुथरा ने फिर कहा, मुझे आग चाहिये, दे दो। कहता है कि तुम्हें कितनी बार कह दिया कि आग नहीं है। जब सुथरा ने चैथी बार फिर आग माँगी तो उसने उठ कर डण्डा पकड़ लिया। सुथरा ने कहा, अब तो आग की लपटें निकलने लगी हैं। महात्मा शर्मिन्दा हो गया। सहिष्णुता जरूरी है, पर वह कहीं-कहीं ही मिलती है, आम नहीं। लेकिन क्रोध की आग सबके अन्दर होती है।
* राधा स्वामी जी *
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NO-6* मँगते से क्या माँगना ? *
एक बार अकबर बादशाह सैर को गया। जब उसे भूख लगी तो एक जमीदार के कुएँ चला गया। उसने साधारण सवार समझ कर घोड़ेे को बाँध दिया और बादशाह को कुछ खाने को दिया। अकबर जाते समय उससे बोला, देख चैधरी! मैं बादशाह हूँ। अगर तुम्हें कोई काम पड़े तो मेरे पास आ जाना। उसने कहा, मुझे क्या काम ? जमीन का लगान तो हम अदा कर ही रहे हैं।
बादशाह चला गया। मालिक की मौज, कुछ समय बाद जमींदार को कोई काम पड़ गया। शहर में गया, बादशाह को खबर कराई। उसने बुला लिया। उस समय बादशाह नमाज पढ़ रहा था। नमाज के बाद बादशाह ने हाथ उठा कर दुआ माँगी। चैधरी सबकुछ देख रहा था। जब बादशाह नमाज से फारिग हुआ तो चैधरी ने पूछा, आप क्या कर रहे थे ? बादशाह ने कहा कि खुदा से दुआ माँग रहा था कि मेरा अमुक काम हो जाये, मेेरे राज्य में शान्ति रहे, वगैरह-वगैरह। यह सुन कर जमींदार ने कहा, तो मैं जाता हूँ। बादशाह ने पूछा, क्यों क्या बात है। कहता है, मैं भी उसी से माँग लूँगा जिससे तू माँगता है !
मंगतो से माँगना किस काम का।
* राधा स्वामी जी *
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NO-7* खुदा मर गया *
एक मुसलमान फकीर थे। उनके पास बहुत सारे अहले-शरीयत ( शरीयत अथवा कर्मकाण्ड के टेकी ) बैठे हुए थे कि एक तालिब ( शिष्य ) आया। उसका परदा खुला हुआ था और वह बहुत खुशी में था। फकीर साहिब ने पूछा, क्या बात है ? आज तू बड़ा खुश नजर आता है। कहता है, हजरत! आज खुदा मर गया है। अपने पास बैठने वालों से कहा कि इस पागल को परे हटा दो। दूसरी बार फिर आया और कहने लगा, खुदा जरूर मर गया है। तब फकीर साहिब ने लोगों से कहा कि इसे धक्के मार कर बहार निकाल दो। वह फिर तीसरी बार आकर कहता है कि जी! खुदा सचमुच मर गया है। इसी बीच में शरीयत वाले जा चूके थे। फकीर साहिब कहने लगे, हाँ सचमुच मर गया है। लोगों ने पूछा कि यह क्या बात है ? पहले तो तालिब को धक्के मारे, अब आप कहते हैं कि हाँ खुदा मर गया है ? आपने जवाब दिया कि जो शरीयत वालों का खुदा अर्थात दुनिया का खुदा है वह ‘मन‘ है। आज मन उसके काबू में आ गया है।
सो उसके लिये खुदा जरूर मर गया।
* राधा स्वामी जी *
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NO-8* राबया बसरी *
मुसलमानों में राबया बसरी एक ऊँचे दर्जें की फकीर हुई है। एक फकीर ने उससे नरकों की आग का जिक्र किया। राबया ने कहा कि मेरे पास उसको बुझाने के लिये एक लोटा पानी ही काफी है। इतनी ताकत वाली स्त्रियाँ हुई हैं। सन्तों में ताकत है कि जीवों को नरकों से निकाल कर मनुष्य बना दें।
राबया बसरी के पास दो फकीर आये। राबया ने कहा कि कोई परमात्मा की बात सुनाओ। एक फकीर ने कहा, ‘जो परमात्मा की ओर से दुःख आये उसको प्यार से सह ले, वही सच्चा शिष्य है। कहने लगी कि इसमें अहंकार की बू है। कोई इससे ऊँची बात कहो। दूसरा फकीर बोला कि परमात्मा की ओर से जो तकलीफ, बीमारी, तंगी, दुःख आये उसको सुख मान कर भोग ले। राबया ने कहा, यह भी ठीक नहीं। कोई इससे भी अच्छी बात सुनाओ। उन्होंने कहा कि फिर आप ही बताओ। कहती है, ‘मैं उसको फकीर समझती हूँ, जिसको दुःख-सुख की तमीज न हो।‘ यही गुरु नानक साहिब कहते हैं:
सुखु दुखु दोनो सम करि जानै अउरु मानु अपमाना।
न दुःख में दुखी हो, न सुख में सुखी हो।
एक सत्संगी: हुजूर! और तो सारे दुःख सहे जाते हैं। अपनी निदा भी सुनी जा सकती हैं, लेकिन गुरु की निदा नहीं सही जाती।
म्हाराज जी: अगर कोई गुरु की निदा करे तो आप वहाँ से चुपचाप उठ कर चले जाओ। रही अपनी निदा और स्तुति। आप न निन्दा में नाराज हों, न स्तुति में खुश। एक हाथी जा रहा है। कुत्ते भौंकते हैं। वह चुपचाप चला जा रहा है। उनके भौंकने की परवाह नहीं करता। इसी तरह जो मालिक के प्यार में रंगा हुआ है, दुनिया उसको जो मरजी कहे, वह परवाह नहीं करता।
* राधा स्वामी जी *
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NO-9* शरण का प्रताप *
एक पुरानी कथा भागवत में आती है कि एक कमजोर बकरी थी। एक जंगल में रहती थी। शेर उस जंगल का राजा था। उसने उस बकरी पर दया करके आजाद कर दिया। वहाँ हाथी भी रहते थे। शेर ने उनसे कहा जब तुम पानी पीने जाओ इसको भी साथ ले जाकर पिला लाया करो। वह हाथी के ऊपर चढ़ जाती और पानी पीकर आ जाती। यह सारा प्रताप शरण लेने का है। इसी तरह सन्तों की शरण में आकर जीव राई से पहाड़ और अरण्ड से तुलसी बन जाता है अर्थात नीच गति से सन्त बन जाता है।
* राधा स्वामी जी *
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NO-10* परमात्मा का शुक्र *
दोपहर का वक्त था। शाहजहाँ बादशहा को प्यास लगी। इधर-उधर देखा, नौकर कोई पास नहीं था। उस समय पानी की सुराई पास ही रखी होती थी। उस दिन सुराही में पानी एक घूँट भी न था। कुएँ पर पहुँचा, पानी निकलने लगा। ज्योंही आगे झुक कर देखा भौनी माथे में लगी। कहता है, शुक्र है ! शुक्र है ! मेरे जैसे बेवकूफ को जिसको पानी भी नहीं निकलना आता, मालिक ने बादशहा बना दिया। शुक्र नहीं तो और क्या है ? मतलब यह की दुःख में भी उसने मालिक का शुक्र मनाया ।
* राधा स्वामी जी *
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NO-11* सुखदेव का गुरु *
सुखदेव जी चैदह कला से सम्पूर्ण थे। उनको गर्भ में ही ज्ञान था। वेदव्यास जी के पुत्र थे। अंहकार ने गुरु धारण नहीं करने दिया। जब विष्णु पुरी गये तो वहाँ धक्के मिले, क्योंकि गुरु-विहीन थे। आखिर जब राजा जनक को गुरु धारण करके घर आये तो वेदव्यास जी ने पूछा कि पुत्र, नाम ले आया है ? अच्छा, बता कि गुरु कैसा है ? वह कहने लगा-क्या बतायें ? बाप ने फिर पूछा, चन्द्रमा जैसा है ? बेटे ने कहा, चन्द्रमा मे तो कालिख है, गुरु में कोई दाग नहीं है। क्या सूर्य जैसा है ? सूर्य में गर्मी है, परन्तु गुरु शीतल है। कहने लगे, गुरु के जैसा तो गुरु ही है, उस जैसा और कोई नहीं। गुरु धारण करने से सुखदेव इस अवस्था में आ गये थे। वे पहले गुरु की निन्दा किया करते थे। बारह बार गुरु धारण करने गये। बारह बार वापस आ गये। जब देख लिया, तब विश्वास हो गया।
* राधा स्वामी जी *
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NO-12* मजनू एक या सैंकड़ों *
मजनू लैला का आशिक था। लैला का बाप बादशाह था। उसने लैला की खुशी के ख्याल से हुक्म दिया कि मजनू जिस दुकान से मिठाई खाये, कपड़ा ले, पैसा ले या कोई और चीज ले उसका हिसाब मैं दूगा। जब लोगों ने सुना कि जिस दुकानदार से जो मरजी चीज ले लो, तो एक मजनू की जगह कई मजनू हो गये और हर रोज बढ़ने लगे। लगा शहर उजड़ने। आखिर लोगों ने बादशाह से जाकर पूछा कि मजनू एक है कि बहुत सारे ? राजा ने कहा कि मजनू तो एक ही है। फिर कहा कि मैं लैला को बुला कर पूछता हूँ। जब लैला को बुला कर पूछा कि मजनू एक है कि बहुत सारे! तब उसने जवाब दिया कि मजनू एक ही है। बादशाह बोला, ‘उधर तो सारा शहर लुटा जा रहा है और तू कहती है कि मजनू एक ही है!‘ आखिर बादशाह ने पूछा कि इसका कोई इलाज है ? लैला ने कहा कि मैं कल बता दूँगी। दुकानदार चले गये।
दूसरे दिन लैला के कहने पर बादशाह ने ढ़िढ़ोरा पिटवा दिया कि मजनू के जिगर का गौश्त लैला को चाहिये, मेरा जल्लाद आयेगा, आकर ले जायेगा। यह सुनना था कि सब मजनू भाग गये, एक रह गया। उससे कहा गया कि अपने जिगर का गोश्त दे। उसने झट शरीर पर से कपड़ा हटा करके कहा कि जितना मरजी है ले लो। लैला ने बादशाह से कहा कि यह मजनू है।
सो खाने-पीने को तो बहुत प्रेमी बन जाते हैं, लेकिन जब इम्तिहान होता है तो फेल हो जाते हैं।
* राधा स्वामी जी *
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NO-13 * प्रेम की मस्ती *
एक बार जब कृष्णजी अपने सेवक विदुर के घर गये, उस समय वह घर पर नहीं था। उसकी स्त्री नहा रही थी। कृष्णाजी ने आवाज दी, जब आवाज सुनी तो उसे इतना भी होश नहीं रहा कि मैं कपड़े पहन लूँ । नंगी उठ कर दौड़ पड़ी। इतना प्रेम था। ऐसी हालत में न वहाँ पाप हैं न पुण्य। कृष्णजी ने कहा कि कपड़े तो पहन। तब उसने कपड़े पहने।
अब घर में खाने-पीने का सामान कोई नहीं था। सिर्फ केले पड़े हुए थे। वह प्रेम में इतनी मग्न हो गई कि छिलका छील-छील कर कृष्णजी को देने लगी और फली ( गूदा ) फेंकने लगी। उधर विदुर आ गया। जब उसने देंखा तो बोला, ‘अरी पगली! यह क्या कर रही है ? छिलका भगवान को खिला रही है और फली फेंक रही है।‘ यह सुनकर वह बोली, ‘ ओहो! मुझे पता नहीं था।‘ उसने फिर कृष्णजी को केले की फली दी तो कृष्णजी ने कहा, ‘ विदुर! इसमें वह स्वाद नहीं है जो छिलके में था।‘
सो यह प्रेम की अवस्था है।
* राधा स्वामी जी *
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NO-14 * लफ्जों का फेर *
जिक्र है कि तीन-चार अलग-अलग मुल्कों के आदमी इकटठे हो गये। उन्होंने मिल कर सलाह की कि कोई काम करें। उन्होंने जमीन खरीद ली। उनमें एक मध्य भारत का था। उसने कहा कि मैं तो गेहूँ बोऊँगा। दूसरा जो पंजाबी था वह बोला कि मैं तेरी बात कभी मानने को तैयार नहीं। मैं तो कनक बोऊँगा। तीसरा जिसकी जबान फारसी थी वह कहता है कि मैं गन्दुम बोऊँगा। एक पठान था। उसने कहा कि नहीं जी, हम तो गन्दम बोयेंगे। चारों आपस में झगड़ने लगे। एक समझदार आदमी उधर से निकला, उसने देखा कि ये बेकार में लफ्जों पर झगड़ रहे हैं। उसने कहा कि आप सब अपना-अपना बीज ले लाओ। जब बीज लाये तो सब एक ही था। सारा झगड़ा खत्म हो गया।
इसी तरह अगर हम अपनी रूह को नाम के साथ लगा दे तो कोई झगड़ा नहीं रहता, सारे झगड़े लफ्जों के हैं।
* राधा स्वामी जी *
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NO-15* जहाँ कोई न देखे *
किसी महात्मा के पास दो आदमी नाम लेने आये। उनमें से एक अधिकारी था, दूसरा अनधिकारी था। महात्मा कमाई वाले थे। उन्होंने दो बटेरे दे दिये और कहा कि जाओ, इनको अलग-अलग वहाँ जाकर मार लाओ, जहाँ कोई न देखे। उनमें एक तो झट पेड़ की ओट में जाकर बटेरे की गर्दन मरोड़ कर ले आया । जो दूसरा था वह उजाड़ में चला गया । अब वह सोचता है कि जब मै इसको मरता हूँ तो यह मुझे देखता है और मै इसको देखता हूँ । तब तो हम दो हो गये, तीसरा परमेश्वर देखता हैं, मगर महात्मा का हुक्म था इसको वहाँ मारो जहाँ कोई न हो। आख़िर सोच-सोच कर बटेरे को महात्मा के पास ले आया और बोला कि महात्मा जी ! मुझे तो कोई जगह ऐसी नहीं मिली जहाँ कोई न हो क्योंकि मालिक हर जगह मौजूद है। महात्मा ने कहा, मै तुझे नाम दूँगा। दूसरे से कहा, जाओ,अपने घर।
इसलिये अगर मालिक को हर जगह हाजिर-नाजिर समझें, तो हम कोई ऐब, पाप और बुरा काम न करें।
* राधा स्वामी जी *
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Radha Swami ji