* महमूद गजनवी और लूट का माल *
महमूद गजनवी ने हिन्दुस्तान पर सत्रह हमले किये और धन-दौलत, सोना-चाँदी, हीरे-जवाहरात लूट कर गजनी ले गया। आखिर जब मौत का वक्त आया तो वह सोचने लगा इतने माल का क्या करूँ। सोच कर हुक्म दिया कि सारा माल निकाल कर बाहर सजाया जाये। जब वह सजाया गया तो कई मीलों में आया। जब पालकी में बैठ की देखने आया जो तो पड़ा बोला कि आह ! इस दौलत के लिये मैंने करोड़ों बच्चे यतीम किये, लाखों औरतें विधवा कीं, लाखों जवानों को बे-गुनाह कत्ल किया परन्तु अब मेरे साथ नहीं जाती।
सच यह हैं कि हम जितना भी इकटठा कर ले साथ नहीं जाये गा।
*राधा सवामी जी *
* पपीहे का पन *
कबीर साहिब एक दिन गंगा के किनारे घूम रहे थे। उन्होंने देखा एक पपीहा प्यास से बेहाल होकर नदी में गिर गया है। पपीहा स्वाति नक्षत्र में बरसने वाली वर्षा की बूँदों के अलावा और कोई पानी नहीं पीता। उसके चारों ओर कितना ही पानी मौजूद क्यों न हो, उसे कितने ही जोर की प्यास क्यों न लगी हो, वह मरना मंजूर करेगा, परन्तु और किसी पानी से अपनी प्यास नहीं बुझायेगा।
कबीर साहिब नदी में गिरे हुए उस पक्षी की ओर देखते रहे। सख्त गर्मी पड़ रही थी और वह प्यास से तड़प रहा था, पर उसने नदी के पानी की एक बूँद भी नहीं पी। उसे देख कर कबीर साहिब ने कहा:
जब मैं इस छोटे से पपीहे की वर्षा के निर्मल जल के प्रति भक्ति और निष्ठा देखता हूँ कि प्यास से मर रहा हैं। लेकिन जान बचाने के लिये नही का पानी नहीं पीता, तो मुझे सतगुरु के प्रति अपनी भक्ति तुच्छ लगने लगती है:
पपीहे का पन देख के, धीरज रही न रंच।
मरते दम जल का पड़ा, तोउ न बोड़ी चंच।।
अगर हर शिष्य को परमात्मा के प्रति पपीहे जैसी तीव्र लगन और प्रेम हो, तो वह बहुत जल्दी ऊँचे रुहानी मण्डलों में पहुँच जाये।
*राधा सवामी जी *
* पण्डित लादे बैल *
जिक्र है कि एक पण्डित बैल पर किताबें लाद कर कबीर साहिब के साथ वाद-विवाद करने काशी में उनके घर आया। उस समय कबीर साहिब कहीं बाहर गये हुए थे। घर में उनकी धर्म-पुत्री कमाली थी। पण्डित ने पूछा कि कबीर साहिब का घर यही है ? कमाली ने कहा कि यह कबीर साहिब का घर नहीं, उनका तो घर ब्रह्मा, विष्णु और शिव को भी नहीं मिला:
कबीर का घर शिखर पर, जहाँ सिलहली गैल।
पांव न टिके पपील का, पंडित लादे बैल।।
तूने कबीर साहिब को शरीर समझा है। वे शरीर नहीं हैं। तूने कबीर साहिब को समझा ही नहीं। पण्डित चुपचाप वापस चला आया।
*राधा सवामी जी *
* आग का मूल्य आँख *
शेख फरीद के बारे में कहा जाता है कि उनका एक शिष्य बहुत नेक-पाक था। जब वह बाजार जाता तो एक वेश्या उससे मजाक किया करती। वह बेचारा दूसरी ओर ध्यान कर लेता। ज्यों-ज्यों वह दूसरी तरफ ध्यान करता, वह और मजाक करती। ज्यों-ज्यों खयाल हटाता वेश्या और छेड़ती।
एक दिन फरीद साहिब ने उस शिष्य से कहा कि आग चाहिये। उस जमाने में लोग आग दबा कर रखते थे। घर में आग नहीं थी। उसने गली व मुहल्ले में पूछा, बहुत घूमा लेकिन आग न मिली। बाजार में गया। देखा कि वही वेश्या हुक्का पी रही है। अब सोचता है कि यह हमेशा मजाक उड़ाती है। अच्छा ! पीर का हुक्म है। ऊपर मकान पर चढ़ गया। वेश्या ने उसे देख कर पूछा कि क्या बात है ? वह बोला, माता जी ! आग चाहिये। वह माजाक के साथ कहने लगी कि आग की कीमत आँख है। आँख दे जाओ, आग ले जाओ। उसने फौरन उंगली डाल कर आँख निकाल कर आगे रख दी। वेश्या डर गई। आग दे दी। मन में कहती है, मैंने तो मजाक में कहा था। खैर वह पटटी बाँध कर फरीद साहिब के पास आ गया। उन्होंने पूछा, आग ले आये हो ? कहता है, हाँ हजूर, ले आया हूँ। फरीद साहिब ने कहा कि यह आँख पर पटटी क्यों बाँधी है ? कहता है, आँख आई हुई है। उन्होंने कहा, अगर आई हुई है तो पटटी खोल दे। जब पटटी खोली तो आँख पहले की तरह सही सलामत।
मालिक हमेशा अपने भक्तों की लाज रखता आया है।
*राधा सवामी जी *
* मौत की खुशी *
ढिलवाँ गाव का जिक्र है। एक स्त्री शरीर छोेड़ने लगी तो अपने घर वालों को बुला कर कहने लगी, सतगुरु आ गये है। अब मेरी तैयारी है। उम्मीद है कि आप मेरे जाने के बाद रोओगे नहीं; क्योंकि मैं अपने धाम को जा रही हूँ। इससे ज्यादा और खुशी की बात क्या हो सकती है कि सतगुरु खुद साथ ले जा रहे हैं। उसके बेटे कहने लगे कि हम कहाँ जायेगे ? कहती है कि अपनी चिन्ता तुम आप करो। जब मौत का वक्त गुरु आ गये तो और क्या चाहिये ? अगर आप टाट का कोट उतार कर मखमल का कोट पहन लें तो आपको क्या घाटा हैं। अगर आप इस गन्दे देश से निकल कर उत्तम देश में चले जाये तो आपको और क्या चाहिये।
*राधा सवामी जी *
* आक और आम *
जब गुरु गोबिन्दसिंह साहिब मालवा गये, वहाँ गेहूँ नहीं होते थे, जौ और चने होते थे। उजाड़ इलाका था, बारिश नहीं होती थी। लोगों ने बहुत सेवा की। रेगिसतान में बीकानेर की ओर कौन जाता था ? डल्ला बराड़ कौम का सरदार था। आक लगे हुए थे। गुरु साहिब ने कहा, देख कितने अच्छे आम हैं। डल्ले ने कहा, ’जी ! आक हैं। गुरु साहिब ने कहा, तू कह दे आम हैं। कहता हैं, मैं कैसे कह दूँ आम हैं ? ये आक हैं। एक और जगह घास खड़ी थी, गुरु साहिब ने कहा कि कितना अच्छा गेहूँ है। डल्ला कहने लगा, यह घास है। गुरु साहिब ने कहा, तू कह दे यह गेहूँ है। डल्ला बोला, जी ! मैं ऐसा क्यों कह दूँ ! यह तो घास है। गुरु साहिब कहने लगे, जा, ओ भले लोग ! अगर तू कह देता तो यहाँ गेहूँ भी हो जाता, आम भी हो जाते। परन्तु अब नहीं। तेरे मरने के बाद आम और गेहूँ सबकुछ होगा। नहरें चलेंगी। आजकल वहाँ जाकर देखो।
सन्तों को पूरा ज्ञान होता है और जो वाक्य उनके मुख से निकलते हैं वे बेखबरी के नहीं होते।
*राधा सवामी जी *
* धरती की परिक्रमा *
जिक्र है कि शिवजी के लड़के कार्तिकेय और गणेशजी ने एक दिन शिवजी से पूछा कि आप अपनी गददी किसकों देंगे ? शिवजी ने कहा कि जो धरती की परिक्रमा करके पहले आ जाये। अब गणेश जी का वाहन था चुहा और कार्तिकेय की सवारी थी मोर। कार्तिकेय तो मोर पर सवार होकर धरती की परिक्रमा करने चल पड़ा। इधर गणेश जी ने यह जान कर कि गुरु ही कुल मालिक है, सारी सृष्टि में वह व्यापक है, उन्हीं ( शिवजी ) को माथा टेक दिया। और उन्हीं की परिक्रमा कर ली। कार्तिकेय भला इतनी जल्दी कैसे आ सकता था ? शिवजी ने सबकुछ गणेश जी को दे दिया। अब गणेश जी की पूजा होती है, कार्तिकेय का कोई नाम भी नहीं लेता।
इसलिये माँ-बाप और गुरु की सेवा ही सच्चा परमार्थ है।