* आग का मूल्य आँख *
शेख फरीद के बारे में कहा जाता है कि उनका एक शिष्य बहुत नेक-पाक था। जब वह बाजार जाता तो एक वेश्या उससे मजाक किया करती। वह बेचारा दूसरी ओर ध्यान कर लेता। ज्यों-ज्यों वह दूसरी तरफ ध्यान करता, वह और मजाक करती। ज्यों-ज्यों खयाल हटाता वेश्या और छेड़ती।
एक दिन फरीद साहिब ने उस शिष्य से कहा कि आग चाहिये। उस जमाने में लोग आग दबा कर रखते थे। घर में आग नहीं थी। उसने गली व मुहल्ले में पूछा, बहुत घूमा लेकिन आग न मिली। बाजार में गया। देखा कि वही वेश्या हुक्का पी रही है। अब सोचता है कि यह हमेशा मजाक उड़ाती है। अच्छा ! पीर का हुक्म है। ऊपर मकान पर चढ़ गया। वेश्या ने उसे देख कर पूछा कि क्या बात है ? वह बोला, माता जी ! आग चाहिये। वह माजाक के साथ कहने लगी कि आग की कीमत आँख है। आँख दे जाओ, आग ले जाओ। उसने फौरन उंगली डाल कर आँख निकाल कर आगे रख दी। वेश्या डर गई। आग दे दी। मन में कहती है, मैंने तो मजाक में कहा था। खैर वह पटटी बाँध कर फरीद साहिब के पास आ गया। उन्होंने पूछा, आग ले आये हो ? कहता है, हाँ हजूर, ले आया हूँ। फरीद साहिब ने कहा कि यह आँख पर पटटी क्यों बाँधी है ? कहता है, आँख आई हुई है। उन्होंने कहा, अगर आई हुई है तो पटटी खोल दे। जब पटटी खोली तो आँख पहले की तरह सही सलामत।
मालिक हमेशा अपने भक्तों की लाज रखता आया है।
*राधा सवामी जी *
* मौत की खुशी *
ढिलवाँ गाव का जिक्र है। एक स्त्री शरीर छोेड़ने लगी तो अपने घर वालों को बुला कर कहने लगी, सतगुरु आ गये है। अब मेरी तैयारी है। उम्मीद है कि आप मेरे जाने के बाद रोओगे नहीं; क्योंकि मैं अपने धाम को जा रही हूँ। इससे ज्यादा और खुशी की बात क्या हो सकती है कि सतगुरु खुद साथ ले जा रहे हैं। उसके बेटे कहने लगे कि हम कहाँ जायेगे ? कहती है कि अपनी चिन्ता तुम आप करो। जब मौत का वक्त गुरु आ गये तो और क्या चाहिये ? अगर आप टाट का कोट उतार कर मखमल का कोट पहन लें तो आपको क्या घाटा हैं। अगर आप इस गन्दे देश से निकल कर उत्तम देश में चले जाये तो आपको और क्या चाहिये।