अनमोल पांडुलिपियाँ
एक बार का जिक्र है कि महान सूफ़ी दरवेश शम्स तब्रेज़ ने परमात्मा के आगे सच्चे दिल से दुआ की, ‘हे कुलमालिक ! मुझे अपने ऐसे प्यारे का साथ दे, जिसके साथ मैं तेरे प्रेम की बातें कर सकूँ और जिसको तेरी जुदाई की असह्म पीड़ा तथा तेरे मिलाप के अकथनीय आनंद की कथा सुना सकूँ।’
परमात्मा ने अपने प्रिय पुत्र की विनती सुनकर कहा, ‘शम्स, अगर तू क़ीमत देने को तैयार है, तो मैं तेरी इच्छा पूरी करने के लिए तैयार हूँ।’
शम्स तब्रेज़ समझ गया कि परमात्मा क्या चहाता है। वह फ़ौरन कहने लगा कि मैं अपना सिर भेंट करने के लिए तैयार हूँ। सिर देने से फ़क़ीरों का भाव अहं या हौंमैं का त्याग करके कुलमालिक की रजा में आ जाना होता है।
कुलमालिक खुश हो गया और शम्स को कूनीयाँ ले गया, जहाँ उसकी मुलाकात वहाँ के मशहूर विद्वान मौलवी रूम से हुई, जिसे लोग जलालुदीन रूमी के नाम से भी पुकारते थे और जिसका आदर देश का बादशाह भी करता था।
जब शम्स तब्रेज़ उसके पास पहुँचा तो मौलवी रूम एक सरोवर के किनारे बैठा माथे पर बल डाले ध्यान से अपनी पांडुलिपियाँ ( हस्तलेख ) पढ़ रहा था। शम्स तब्रेज़ ने उसको इस हालत में देखकर कहां, ’मौलवी साहिब, बड़े व्यस्त दिखायी देते हो। यह क्या है जो पढ़ रहे हो ?‘ मौलवी कहने लगा, ’ यें गूढ़ रहस्यमयी क़ीमती पांडुलिपियाँ हैं। बड़े-बड़े विद्वान इनको नहीं समझ सके। मैं इनमें बयान किये गये इलही भेदों को समझने की कोशिश कर रहा हूँ।‘
मौलवी रूम ने लंबी साँस ली और दरवेशों का पहनावा पहने शम्स तब्रेज़ की ओर देखकर कहा, ’भले आदमी, ये ब्रह्मज्ञान की बातें तेरी अक़्ल से बाहर हैं। इन गूढ़ समस्याओं को समझने के लिए सूक्ष्म बुद्धि की आवश्यकता है।’
शम्स तब्रेज़ मुस्कराया पर चुप रहा। पलक झपकते ही उसने आगे बढ़कर रूमी के हाथों से पांडुलिपियों का बस्ता छीन लिया और सरोवर में फेंक दिया और बोला, ’भले आदमी, ब्रह्मज्ञान किताबों में नहीं होता।‘
अपनी सारी उम्र की कमाई नष्ट हुई देखकर मौलवी रूम को धक्का लगा। यह सोचकर उसका दिल बैठ गया कि मेरी कीमती पांडुलिपियों का सत्यानाश हो गया। फिर भी उसने अपने आप को वश में रखा और मुस्कराते हुए कहने लगा, ’भले आदमी तूने यह क्या कर दिया। तू और जो चाहे जानता हो, पर यह नहीं जानता कि मेरी पांडुलिपियाँ नष्ट करके तूने दुनिया का कितना बड़ा नुकसान किया है।’
यह सुनकर शम्स तब्रेज़ मुस्कराता हुआ कहने लगा, ‘ये बच्चों के खिलौने हैं। अगर इनके खो जाने से तेरा दिल टूटता है तो तुझे ये खिलौने वापस दे देते हैं।’ यह कहकर शम्स तब्रेज़ ने सरोवर में हाथ डाला और पांडुलिपियाँ सूखी बाहर निकालकर रख दी।
पहले शम्स तब्रेज़ ने मौलाना को पांडुलिपियाँ पढ़ते देखकर कहा था, ’ईंचीस्त ( ये क्या हैं ) ?‘ अब पानी में से उन्हें सूखी निकले देखकर मौलवी रूम कहने लगा, ’ईंचीस्त ( यह क्या हैं )?‘ पहले मौलवी रूम ने शम्स तब्रेज़ से कहा था, ’ये बातें तेरी अक्ल से बाहर हैं। अब शम्स तब्रेज़ ने मौलवी से कहा, ’ये बातें तेरी अक्ल से बाहर हैं।‘
मौलवी रूम ने देखा कि पांडुलिपियों का एक अक्षर भी नहीं भीगा। समझदार था, झट समझ गया कि परमात्मा ने इस दरवेश को सच्चे ज्ञान का सच्चा रास्ता दिखाने के लिए मेरे पास भेजा है। वह एकदम शम्स तब्रेज़ के कदमों में गिर पड़ा और विनती की कि मुझे अपनी शरण में ले लें। चुनांचे शम्स तब्रेज़ ने उसको बैअत कर दिया, नाम का भेद बख़्श दिया। उसने शब्द की कमाई की और ऊँचे से ऊँचे रूहानी भेदों का जानकार हो गया। अब उनकी मसनवी को फ़ारसी भाषा के कुरान का दर्जा दिया जाता है। वह खुद लिखता है, ’अगर शम्स तब्रेज़ का मुरीद बनना नसीब न होता तो मौलवी रूम कभी मौलाना रूम न बन सकता‘ यानी गुरु की कृपा के बिना विद्वान कभी संत नहीं बन सकता।