{ बरतन को टकोरना }
दादू जी एक कामिल फकीर हुए हैं। उनका जन्म मुसलमान परिवार में हुआ था। एक बार दो पंडित आपके पास इस गरज से आसे कि चलकर सत्संग सुनें और गुरु धारण करें। जब उनकी कुटिया के पास पहुँचे तो देखा कि आगे एक आदमी नंगे सिर वाला आदमी मिला है। अपशकुन टालने के लिए उस नंगे सिर वाले व्यक्ति के सिर पर दो तमाचे मार दिये। फिर पूछा कि दादू का डेरा कहाँ है? उसने अँगुली से इशारा करते हुए कहा कि वह रहा।
जब डेरे पहुँचे तो पता चला कि दादू साहिब बाहर गये हुए हैं। उन्होंने इंतजार किया। जब दादू साहिब आये और पंडितों ने देखा कि यह तो वही है जिसके सिर पर दो तमाचे मारे थे, तो काँपने लगे। लेकिन दादू साहिब हँस पड़े और बोले, ’लोग दो टके की हाँडी लेने से पहले उसे टकोर लेते हैं, आप तो गुरु धारण करने आये हो, खूब परखो। जब दिल माने विश्वास करो, फिर गुरु स्वीकार करो।
महात्मा बड़े शांत स्वभाव के होते हैं। संतों में जो नम्रता, धैर्य और क्षमा होती है, उसको बयान कर सकना संभव नहीं। गुरु धारण करने से पहले पूरी तसल्ली कर लेनी चाहिए, क्यो्रकि गुरु में पूर्ण विश्वास के बिना परमार्थ में उन्नति नहीं की जा सकती।