{ गुरु नानक और गरीब की रोटी }
गुरु नानक साहिब के समय एमनाबाद में मलिक भागो नामक एक धनी वयक्ति था। वह पठान हाकिम का दीवान होने के कारण एक प्रतिष्ठित व्यक्ति माना जाता था। उसने अपने पिता का श्राद्ध किया। दूर-दूर से संत-महात्मा बुलाये गये और भोजन खिलाया गया ताकि उसे परमार्थी लाभ मिल सके। उन दिनों गुरु नानक देेव जी भी एमनाबाद आये हुए थे। आप एक बढ़ई, लालो के नम्रतापूर्वक विनती करने पर वहाँ आये थे और उसके घर खाना खाते थे। किसी ने मलिक भागो से शिकायत की कि एक तपा ( महात्मा ) हैं जिनका नाम नानक खत्री है, मगर भोजन लालो शूद्र के घर खाते हैं।
जब मलिक भागो को इस बात का पता लगा कि लालो के घर एक महात्मा ठहरे हुए हैं तो उसने अपने आदमी भेजकर गुरु नानक और उनके साथियों को ब्रह्म-भोज पर बुलवा लिया, पर गुरु साहिब ने उसके न्यौते को ठुकरा दिया। मलिक भागो ने सोचा कि जब तक सभी महात्मा उसके घर का भोजन नहीं खा लेते तब तक उसका भोज अधूरा रहेगा। इसलिए उसने गुरु नानक को बुलाने के लिए अपना आदमी फिर भेज दिया। आखिर गुरु जी मलिक भागो के घर आ गये और भाई लालो भी उनके पीछे-पीछे वहाँ पहुँच गया।
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मलिक भागो ने गुरु साहिब से पूछा, ’आप ब्रह्म-भोज में क्यों नहीं आये? गुरु साहिब ने कहा, ’ला मालिक ! अब खिला दे। जब गुरु साहिब ने पीछे पलटकर देखा कि लालो बढ़ई खड़ा है तो उससे कहा, लालो! तू भी अपनी रोटी ले आ। लालो दौड़कर गया और कोधरे की रोटी और बिना नमक का साग ले आया। उधर मलिक भागो के आदमी पूरी-कचैरी ले आये। इतने में वहाँ एक बड़ी भीड़ इकटठी हो गयी।
गुरु साहिब ने अपने दाहिने हाथ में कोधरे की रोटी और अलूणा साग और बायें हाथ में पूरी-कचैरी पकड़ी और सबके सामने उनको निचोड़ा, तो लालो की रोटी से दूध निकला और मलिक भागो की पूरी-कचैरी से खून। आपने कहा, मलिक देख ! मैनें तेरा भोज क्यों नहीं खाया? यह ब्रह्म-भोज नहीं, लोगों का खून है। ब्रह्म-भोज तो हमेशा लालो के घर होता है।
बिना नेक कमाई के परमार्थ में कामयाबी नहीं मिलती।
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