* हुक्मसिंह को नामदान *
एक बार का जिक्र है। बाबाजी महाराज अम्बाला शहर तशरीफ ले गये। वहाँ मोतीराम दर्जी बड़े प्रेमी सत्संगी थे, उन्होंने बाबाजी महाराज से सत्संग के लिए अर्ज की। बाबाजी महाराज ने गुरू ग्रन्थ साहिब का शब्द सत्संग में लिया। क्योंकि उपदेश बड़ा ऊँचा है इसलिए जब उन्होंने शब्द की व्याख्या की, लोग बहुत प्रभावित हुए। वहाँ हुक्मसिंह नाम का एक अकाउण्टेण्ट रहता था। उसने मोतीराम के आगे नाम लेने की ख्वाहिश जाहिर की। मोतीराम ने सोचा कि यह एक बड़ा धनी और होशियार आदमी है। अगर इस तरफ लग जाये तो सत्संग की रौनक बढ़ जायेगी। बाबाजी के आगे अर्ज की और उस आदमी को पेश किया। बाबाजी ने कहा, “मोतीराम ! इस आदमी को नाम न दिलाओ। इसके बड़े जबरदस्त कर्म है।” मोतीराम ने कहा, “ बाबाजी ! अगर आपके पास भी आकर भी कर्म बाकी रहे, तो फिर दुनिया में और कौन-सी जगह है।” बाबाजी का विचार वहाँ एक महीना सत्संग करने का था। बाबाजी ने फरमाया, “अच्छा ! नाम तो दे देते हैं, लेकिन फिर मैं इस जगह नहीं ठहरूँगा। नाम देते ही ब्यास चला जाऊँगा।”
मोतीराम ने हठधर्मी की, अच्छा महाराज जी ! मैं ब्यास आकर सत्संग सुन लूँगा, लेकिन इसको नाम जरूर बख्शो। बाबाजी ने ताँगा मंगवा लिया और बिस्तरा बाँध कर उसमें रख दिया। इधर नाम दिया और उधर ताँगे पर सवार होकर स्टेशन पहुँचे और ब्यास को चल पड़े। रास्ते में इतिफाक से लुधियाना स्टेशन पर मुझे मिले। मैंने अर्ज की, “हुजूर मेरा गाँव ( महिमासिंह वाला ) नजदीक ही है, दर्शन देते जाओ !” फ़रमाने लगे, “ मैं इस वक्त नहीं उतरूँगा, तुम इतवार को डेरे न आना। ”
क्योंकि मेरा नियम था कि जब छुटटी पर आना, हर इतवार को सत्संग के लिये डेरे आना। बाबाजी आप तौर पर कहा करते थे कि तुम घर का काम-काज नहीं करते, डेरे दौड़ आते होे। मैंने समझा शायद इसीलिये यह हुक्म दिया है। जब बाबाजी डेरे पहुँचे, तो उन्हें ऐसा जोर का बुखार हो गया कि नीचे का स्वाँस नीचे, ऊपर का स्वाँस ऊपर। बहुत सख्त तकलीफ हुई। बीबी रुक्को और बहुत से सत्संगियों ने दवा खाने की अर्ज की। आपने फरमाया कि अभी बारह दिन नहीं खाऊँगा। बीबी रुक्को रोने लगी। आपने फरमाया, “बीबी ! अभी मैं जाता ( चोला छोड़ता ) नहीं, तू फिकर न कर।” बीबी रुक्को विधवा थी, सदा आपकी सेवा में रहा करती थी। बारह दिन के बाद बुखार कुछ कम हो गया। जब मैं अगले इतवार ( पन्द्रह दिन बाद ) डेरे पहुँचा, हालात का पता लगा तो अर्ज की कि महाराज ! आपने मुझे आने से क्यों रोक दिया था। अगर मैं आता तो आपकी कुछ सेवा करता। बाबाजी ने फरमाया कि तुमसे बरदाश्त नहीं होता और मुमकिन है कि अभाव आ जाता, इसलिए मैने टाल दिया। मैंने कहा, “बाबाजी ! आपकी तकलीफ का असली कारण क्या था ?” बाबाजी फरमाने लगे, “तुम्हें हजम नहीं होगा। ” मैंने इकरार किया कि मैं आपकी जिन्दगी में किसी कोे नहीं बताऊँगा। इस पर बाबजी ने फरमाया कि पक्का इकरार करो । मैंने जवाब दिया, “ जी हाँ ? मेरा पक्का इकरार है।” बाबाजी ने फरमाया कि हुक्मसिह को काल के द्वारा सात जन्म गर्म तवे पर तपाया जाना था। उसके कर्म मुझे अपने ऊपर उठाने पड़े। देखो, सन्तों को शिष्यों की खातिर कितना कष्ट उठाना पड़ता है। नाम देकर सारे पिछले कर्मो का बोझ अपने ऊपर ले लेते हैं, परन्तु जरा भी जाहिर नहीं करते।