* काजी की खोई हुई लड़की *
ख़्वाजा हाफिज शीराजी ईरान में एक पहुँचे हुए महात्मा हुए है। क्योकि मुसलमानों में शराब से मुसल्ला रंगना कुफ्र का कलाम है, कहते हैं कि जब आपने अपने दिवान में यह बात कही कि “बमै सज्जादः रंगीकुन गरत पीरे मुगाँ गोयद’ ( अथात अगर मुर्शिद हुक्म दे तो शराब से मुसल्ला रंग ले ) तो शोर मच गया कि इसने ’शराब में मुसल्ला रंग दो’-यह कुफ्र का कलमा कहा है।
पहले इंसाफ करना काजियों के हाथ में था। लोगों ने जाकर काजी को कहा कि अमुक आदमी ने कुफ्र का कलमा कहा है। वह हाफिज साहिब के पास आया कि तुमने कुफ्र का कलमा कहा है, या तो इसका मतलब समझाओ या अपना कलमा वापस लो। ख्वाजा हाफिज ने कहा कि फकीर अपना कलाम वापस नहीं ले सकते; क्योंकि जो मालिक ने अन्दर से हुक्म दिया, मैंने बहार कह दिया। काजी ने दोबारा मतलब पूछा। हाफिज साहिब ने कहा कि वह जो सामने पहाड़ी है, वहाँ एक फकीर बैठा है, उसके पास जाओ, वह तुम्हें इस सवाल का जवाब देगा। खैर, काजी वहाँ पहुँचा। जब उस फकीर से मतलब पूछा गया तो उसने कहा कि वह जो सामने शहर है, उसमें एक मकान है, वहाँ एक अमुक वेश्या है। उसके पास जाओ। यह लो दो रुपये लेते जाओ। वह वेश्या इस सवाल का जवाब देगी।
काजी ने सोचा कि अजीब तरह के फकीर हैं। एक कहता है कि मुसल्ला रंग लो, दूसरा कहता है कि वेश्या के घर जाओ। खैर ! काजी ने सोचा तहकीकात जरूरी है। चलो देखें तो सही क्या मामला है।
आखिर काजी वहाँ से उस शहर में गया। वेश्या का मकान पूछ कर वहाँ चला गया। वेश्या तो कही गई हुई थी। लेकिन महलदारन घर पर थी। उसने सोचा कि मेहमान अमीर मालूम होता है, आसामी मोटी है, बहुत कुछ हासिल होगा। उन्होंने एक लड़की पाली हुई थी। अब वह जवान हो गई थी, उस लड़की से कहा, “देख हम जो कुछ करते हैं तुझे पता है, हमारा पेशा ही ऐसा है। इसलिये तुझे यह काम करना पड़ेगा। देख हमने तुझको इसी काम के लिय खरीदा है। अब तू जवान हो गई है।” आखिर उस लड़की को वेश्या के कपड़े पहना कर काजी के कमरे में छोड़ आई। लेकिन वह लड़की बहुत उदास थी। आँखो से आँसू बह रहे थे। काजी ने सोचा कि अगर वेश्या होती तो हँसी-खुशी के साथ आती; लेकिन यह वेश्या नहीं है, यह कुछ और ही मामला है। यह सोच कर काजी ने कहा, “बेटी, मैं तुझे कुछ नहीं कहता। बता तू कौन है ?” लड़की ने धीरे-धीरे, रोते-रोते जवाब दिया कि मैं मुसीबत की मारी हुई हूँ। आज तक मैं नेक पाक रही, लेकिन आज पहली बार है कि मैं बुरे कामों में पड़ने जा रही हूँ। मालूम नहीं क्या हाल होगा ?
काजी ने कहा कि तू डर मत। मैं तुझे कुछ नहीं कहता। सच-सच बता कि तू कौन है ? लड़की कहने लगी कि मुझे थोड़ा-थोड़ा याद है कि मैं जब छोटी-सी थी, हमारे गाँव में डाका पड़ा था। सब लोग भाग गये। मैं भी भागी लेकिन मुझे डाकुओं ने पकड़ लिया। वे यहाँ इनके घर बेच गये। काजी ने पूछा कि तेरा गाँव कौन-सा था ? लड़की ने कहा, मुझे थोड़ा-थोड़ा याद है कि मेरा अमुक गाँव था। वही काजी का गाँव था। काजी ने सोचा कि यह तो अपने ही गाँव की लड़की है। दिल में जोश आया। फिर पूछा कि क्या याद है कि तेरे मुहल्ले का क्या नाम था ? लड़की ने कहा, मुझे थोड़ा-थोड़ा याद है कि हमारे मुहल्ले का यह नाम था। वह काजी का अपना मुहल्ला था। अब मुहल्ले की लड़की, और पूछने का विचार आया। उसने पूछा कि तेरे बाप का क्या नाम था ? लड़की ने कहा कि मैं छोटी थी पर मुझे थोड़ा-थोड़ा याद है कि मेरे बाप का यह नाम था। वह काजी साहिब खुद बैठे हुए थे। रोकर गले से लगा लिया और बोला कि तू मेरी ही लड़की है। तूझे डाकू पकड कर ले गये थे। लड़की की बाँह पकड़ कर उस फकीर के पास ले गया। उनसे कहा कि बाहर से तो तुमने मुझे काम के लिये भेजा, लेकिन अन्दर कोई और ही राज था। मुझे अब पता लगा कि अन्दर से तुम्हारा मतलब लड़की से मिलाना था।
उस फकीर ने कहा कि ख्वाजा साहिब से कहो इसका अगला मिसरा ( पद ) भी कह दें, जब हाफिज के पास आया तो बोला कि इसका अगला मिसरा कह दो।
तब हाफिज ने कहाःके सालिक बेखबर न बवद ज राहे रस्मे मंजिलहा।
अर्थात मार्ग-दर्शक मंजिल की राह के भेद और रीति से अनजान नहीं है।