:- खुदा मर गया -:
एक बार एक मुसलमान फकीर एक पेड़ की ठंड़ी छाया में बैठे थे और उनके आसपास उनके शिष्य तथा बहुत से और लोग भी थे। उनमें से कुछ काजी और उलमा शरीअत के गूढ़ नुकतो पर बहस कर रहे थे। इतने में फकीर का एक तालिब ( शिष्य ) आया। उसका परदा खुला हुआ था और वह बहुत खुशी में था। फकीर ने पूछा, क्या बात है ? आज तू बड़ा खुश नजर आ रहा है। बोला, हजरत ! आप जो कह रहे हैं बिल्कुल ठीक है, मैं बहुत खुश हूँ क्योंकि आज खुदा मर गया है। फकीर ने हैरान होकर कहा, यह क्या पागलपन है, लगता है तेरा दिमाग खराब हो गया हैं। फकीर ने अपने पास बैठे हुए लोगों से कहा कि इस पागल को दूर हटा दो। कुछ काजी उसे पकड़कर दूर ले गये और उलमा फिर शरीअत की बाते करने लगे। पर कुछ ही मिनटों के बाद वह तालिब फिर वापिस आ गया और खुशी-खुशी ऊँचे स्वर में कहने लगा, भाईयो ! खुदा सचमुच मर गया है। फकीर ने चिल्लाकर कहा, इसे धक्के मारकर बाहर निकाल दो, वह काफिर है।
इस बार काजी और अहले शरीअत उस गरीब तालिब को पीटने लगे और जब वह गिरता-गिरता जाने लगा तो शरीअत वालों ने उसे पत्थर मारने शुरू कर दिये। सारे शरीअत वाले अपनी बातचीत खत्म करके अपने-अपने घरों को चले गये, पर बाकी लोग फकीर के पास बैठे रहे। वे यह देखकर हैरान रह गये कि वह तालिब तीसरी बार फिर वापिस आ गया। उस का चेहरा आनंद से भरपूर था। उसने फिर लोगों से कहा, प्रिय भाइयो, मेरा यकीन करो, खुदा सचमुच मर गया है।
फकीर बोला, मेरे दोस्त, आओ और मेरे पास बैठो। सचमुच खुदा मर गया है और तुम बहुत खुशनसीब हो क्योंकि तुमने सत्य का अनुभव कर लिया है।
यह बात सुनकर फकीर के आसपास बैठे लोग स्तब्ध रह गये।
उन्होंने पूछा, हजरत ! राज क्या है ? आप कह रहे हैं ? दो बार तो आपने कहा यह आदमी पागल है परंतु अब उसका बड़े स्नेह से स्वागत करके कहते हो कि वह बिल्कुल सच बोल रहा है।
फकीर ने उन्हें सारी बात समझायी कि वह ऐसा क्यों कर रहे थे। फकीर ने कहा, भाईयो, काजी और उलमा शरीअत से बँधे हुए हैं और मन के पीछे लगकर मनमरजी की भक्ति करते हैं। आत्मा अमर और सत्य है जब कि मन असत्य और धोखा है। काजी और उलमा मन और शरीअत के गुलाम हैं, इसलिए वे हमारे तालिब को गालियाँ देकर खुश थे जब कि हमारे तालिब ने आज अपने मन को जीतकर अपनी आतंरिक दृष्टि पर पड़ा परदा, जिसने सत्य को ढका हुआ था, फाड़ डाला है। इसी लिए वह खुश है क्योंकि वह सत्य के मार्ग पर चलकर आवगमन के चक्कर से मुक्त हो जायेगा और उसका अपने प्रियतम परमेश्वर से मिलाप हो जायेगा। अब काजी और उलमा सब चले गये हैं, इसलिए हम खुलकर अपने इस तालिब की प्रशंसा कर सकते हैं कि उसने अपने मन को वश में कर लिया है, सो उसके लिए खुदा सचमुच मर गया है।
* राधास्वामी जी *