* मन का साक्षी मन *
कहते है कि एक बार अकबर बादशाह और बीरबल जा रहे थे। कुछ फासले पर उन्हें एक जाट आता नजर आया। अकबर बादशाह ने बीरबल से कहा कि मैं सोचता हूँ, उस जाट को गोली मार दूँ, देखें उसके दिल में मेरे लिये क्या विचार आते हैं ? जब वह जाट उनके नजदीक आया तो बीरबल ने बादशाह की ओर इशारा करते हुए उस जाट से पूछा कि भाई, डरो न, सच-सच बताओ, जब तेरी नजर इस आदमी पर पड़ी तो तेरे मन में क्या खयाल आया था ? उस जाट ने कहा कि मेरा दिल चाहता था कि इस आदमी की दाढ़ी खसोट लूँ। खयाल की तरजुमानी ( पुष्टि ) हो गई।
इसी तरह कहते हैं कि अगर शिष्य प्यार करेगा तो गुरु भी जरूर उसे प्यार करेगा।
*राधा सवामी जी *
* मैं तो बूढ़ी हूँ *
एक बुढ़िया थी। उसकी एक जवान लड़की थी। एक बार वह लड़की सख्त बीमार हो गई। बहुत इलाज करवाया लेकिन फायदा न हुआ। बुढ़िया कहने लगी कि है परमात्मा, इसकी जगह मैं मर जाऊँ, यह बच जाये। मैं बूढ़ी हूँ। दुनिया में बहुत कुछ देख चुकी हूँ। यह जवान है, यह न मरे। बार-बार यही कहती। एक दिन बाहर का दरवाजा खुला रह गया। एक गाय कहीं से छूट कर अन्दर आ गई। रास्ते में एक देग पड़ी थी। गाय ने ज्यों ही देग में मुँह डाला उसके सींग उसमें फँस गये। लगी घबरा कर इधर-उधर दौड़ने। अब देग के नीचे का काला हिस्सा सामने था। जब गाय ने दो-चार चक्कर लगाये तो बुढ़िया डर गई और समझा कि मौत का फरिश्ता आ गया है। कहने लगी, मैं तो बूढ़ी हूँ, लड़की सामने पड़ी है, उसको ले जा।
सो मनुष्य बाहर से बातें करता हैं। दिल में कुछ और है तथा बाहर और। लेकिन एक सत्संगी नित्य जीते-जी मरता है। जब उसकी मौत आती है तो उसे इतनी खुशी होती है जितनी किसी को अपनी शादी की भी नहीं होती।
*राधा सवामी जी *
* पल्ला झाड़ कर आना *
एक महाजन था, वह रोज सत्संग में जाया करता था। उसका एक जवान लड़का था। एक दिन उसने पिता से कहा, ’लाला जी ! आपको सत्संग में जाते उमर हो गई, आज मुझे भी जाने की इजाजत दो। महाजन ने कहा, ’अच्छा, तू भी चला जा।’ जब सत्संग में गया जो वहाँ महात्मा ने वचन कहे, सबकी सेवा करनी चाहिये, किसी का कभी दिल नहीं दुखाना चाहिये। वह सत्संग सुन कर दुकान पर आ गया। बाजार में गायें फिरती रहती हैं। एक गाय आकर आटा खाने लगी। वह चुपचाप बैठा रहा। इतने में उसका बाप आ गया। उसने देखा तो बोला, ओ अँधे ! गाय आटा खा रही है। पुत्र ने जवाब दिया, तो क्या हो गया ! अगर दो-चार सेर खा जायेगी तो क्या घट जायेगा। हमारे पास बहुत है, कितना खा जायेगी ? महाजन ने कहा, आज तू यह कहाँ से सीख कर आया है ? लड़के ने झट कहा, यह सत्संग में सुना था कि सबकी सेवा करनी चाहिये, किसी का दिल नहीं दुखाना चाहिये। यह सुनकर बाप ने कहा, ऐसी बातें पल्ले नहीं बाँधा करते। मेरी ओर देख। मुझे कितना समय हो गया सत्संग में जाते, मैं हमेशा पल्ला झाड़ कर आता हूँ।
इसी तरह हम सत्संग सुनते हैं लेकिन अमल नहीं करते।