* मन की तानाशाही *
राजा परीक्षित ने वेदव्यास से प्रश्न्न किया कि क्या मेरे बुजुर्ग मन के इतने गुलाम थे कि इसे काबू करने में असमर्थ रहे ? वेदव्यास ने जवाब दिया कि राजा! मन लज्जत का आशिक है और बहुत बलवान है। इससे छूटने का कोई उपाय नहीं। तुम्हें जल्दी ही इसकी समझ आ जायेगी। राजा परीक्षित ने कहा कि इसका कोई उपाय ? वेदव्यास ने कहा कि कोई नहीं। परीक्षित को इस बात का विश्वास न हुआ। फिर वेदव्यास ने कहा, अच्छाए मैं तुझे पहले ही बता देता हूँ कि आज से तीन महीने बाद तेरे पास एक सौदागर घोड़ा लायेगा, उसको न खरीदना। अगर खरीद भी लिया तो उस पर सवारी न करना। अगर सवार भी हो जाये तो पूर्व दिशा की ओर मत जाना; अगर पूर्व दिशा की ओर चला भी जाये तो तुझे एक औरत मिलेगी, उससे बात न करना; अगर बात भी कर ली तो उसको घर न लाना; अगर घर भी ले आये तो उससे शादी न करना। अगर शादी भी कर ले तो उसके कहने मेें न आना। अच्छा जा! मैंने तुझे मन की शक्ति के बारे सचेत कर दिया है, अब तू इसका इलाज कर ले।
तीन महीने के बाद एक सौदागर घोड़ा लाया, ऐसा घोड़ा राजा ने कभी नहीं देखा था। अमीरों, वजीरों ने तारीफ की और कहा कि महाराज खरीद लो, सवारी न करना, बाहर के राजा आकर देखेंगे। तबेले का श्रृंगार तो है। राजा ने वह घोड़ा खरीद लिया।
कुछ दिन बाद साइसों ने तारीफ की कि यह घोड़ा बहुत अच्छा है, इसमें कोई ऐब नहीं है, आपकी सवारी के लायक है। राजा ने मन में कहा, अच्छा सवार हो जाते हैं, पूर्व दिशा को न जायेंगे। जब घोड़े पर सवार होकर निकला, घोड़ा मुँहजोर होकर पूर्व दिशा में जंगल की ओर चल पड़ा। आगे एक जगह एक बड़ी खूबसूरत स्त्री बैठी रो रही थी। राजा ने घोड़े से उतर कर रोने का कारण पूछा तो वह कहने लगी, मेरे स्नेही और रिश्तेदार मुझसे बिछुड़ गये है। जंगल में अकेली हूँ मुझे समझ नहीं आती कि कहाँ जाऊँ। मुझे साथ ले चलो। राजा ने कहा, अगर मैं तुम्हें अपने साथ राज-दरबार लेकर जाता हूँ तो मैं तुम्हें सारी सुविधाएँ प्रदान कर सकता हूँ पर मुझे यह समझ नहीं आ रही कि मैं तुम्हें साथ ले जाऊँ या नहीं। कहने लगी, यहाँ जंगल में मुझे रीछ या शेर खा जायेंगे, आपको पाप लगेगा। राजा ने सोचा कि घर ले चलता हूँ, इसके साथ शादी नहीं करूँगा।
जब घर लाया कुछ दिनों के बाद लोगो ने तारीफ की कि बड़ी नेक है, बड़ी सुशील है, आपके लायक है। राजा ने पूछा, तू क्या चाहती है ? बोली, ऋषियों, मुनियों, नेक पुरूषों को बुलाकर खाना खिलाओ।
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जब सब ऋषि-मुनि आकर बैठ गये तो स्त्री ने राजा से कहा, मैं आपकी अर्धागिनी हूँ। मैं भी आपके साथ सेवा करूँगी। अब ऋषि-मुनि जंगल के रहनेवाले थे, रोटी परोसते-परोसते कहने लगी, ये सब बदमाश हैं और मेरी ओर देखते हैं। राजा को क्रोध आया, तलवार लेकर सबको कत्ल करना चाहा। उसी वक्त वहाँ वेदव्यास प्रकट हुए और बोले, बता राजा! तू क्या कहता था। राजा परीक्षित ने शर्म से अपना सिर झुका लिया।
मन ने बड़े-बड़ों की मिट्टी पलीत की है। पराशर, विश्वामित्र, श्रृंगी ऋषि और अन्य कई ऋषि-मुनि मन के वश में आकर गिर गये। पुराणों को पढ़कर देखो। हमारी धार्मिक पुस्तकें कहती हैं कि जो ताकत मन को वश में करती है वह मनुष्य के अंदर है। जब नौ दरवाजों को खाली करके ऊपर रूहानी मंडलों में पहुँचकर उस नामरूपी अमृत को पियोगे तो मन वश में आयेगा।
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