* मुझे माथा टेक लेने दो *
महाराज बाबा जैमलसिंह जी के वक्त का जिक्र है। यहाँ हुक्मसिंह नाम का एक सत्संगी रहता था। वह एक मिनट भी बेकार नहीं बैठता था। रात को भजन करना और दिन को सेवा करनी। प्रेम में आकर अपनी औरत और बच्चों को भी छोड़ आया था जब मेहनत की, उसका अन्दर परदा खुल गया। लेकिन जिस तरह गरीब की झोंपड़ी में हाथी नहीं समाता, इसी तरह वह हजम न कर सका। बाबाजी महाराज ने कहा, ’हुक्मसिंह हजम कर !’ तो कहने लगा कि इस समय अगर चारों वेदों का पढ़ा हुआ पण्डित भी समाने आ जाये, तो मेरे साथ वह बात नही कर सकता। बाबाजी महाराज ने अन्दर शब्द का रास्ता बन्द कर दिया। उसने बहुत कोशिश की, मगर फिर परदा न खुला। आखिर कहने लगा, ’मै आपके खिलाफ अब चाचीजी को चिटठी लिखूँगा।’ खैर ! चिटठी लिखी या नहीं लिखी, वह नाराज होकर अपने गाँव चला गया। जब बाबाजी चोला छोड़ गये तो उनके बाद फिर डेरे आ गया और यहीं रहने लगा। डेरे में बीबी रुक्को के साथ उनकी नहीं बनती थी। उसके साथ लड़ाई किया करता। एक बार बीबी को ’कालेकी ’ गाँव एक साधु भेजने की जरूरत पड़ी। अभी वह तलाश में ही थी कि मैंने कहा हुक्मसिंह को ’काले’ भेज दें। बीबी रुक्को ने बात स्वीकार कर ली और मैंने उसको ’काले ’ भेज दिया। अगर उसके पास कोई सेवा नहीं होती थी तो वह रस्सियाँ बटने लग जाता। उसके पास हर रोज ती ही काम थे-1, हुक्म के मुताबिक भजन-सिमरन करना, नागा न करना, 2 ,पोथी पढ़ना और 3 ,सेवा करना। चाहे अन्दर परदा बन्द था लेकिन फिर भी उसने भजन-सिमरन नहीं छोड़ा। अखिर जब वह बीमार हो गया तो मैंने उसे डेरे बुलवा लिया। जब उसे परमधाम को जाना था, मुझे आगरा जाना था। उधर बीबी रक्खी की सुरत शब्द में लगी थी, रोज मैं उसकी तरफ भी जाता था। मेरा खयाल था कि बीबी रक्खी की तरफ से होकर हुक्मसिंह की ओर खबर लेने जाऊँ। मैं बीबी रक्खी को देख की उधर जाने वाला ही था कि उधर से हुक्मसिंह आ गया। मैंने कहा कि मैं तुम्हारी तरफ ही आ रहा था। वह बोला, ’ मैं एक माँग माँगने आया हूँ। ’ मैंने कहा कि कहो ? उसने कहा कि मुझे अपने चरणों में माथा टेक लेने दो। मैनें कहा कि मैं माथा टिकाना पसन्द नहीं करता। इस पर उसने कहा, ’अगर यह आपका शरीर बाबा जैमलसिंह जी का है तो माथा टेक लेने दो, नहीं तो मैं नहीं टेकता।’ अब कोई प्रेमी शिष्य क्या कह सकता है कि मेरा शरीर सतगुरु का नहीं ? मैंने मजबूरी से बाबाजी का ध्यान करके उससे कहा, ’अच्छा ! टेक लो। ’ जब उसने चरणों में माथा टेका उसी वक्त कहने लगा, ’जो मेरी सोलह वर्षों की कमाई बन्द थी वह एकदम मिल गयी है और अन्दर का परदा खुल गया है, दूसरे मेरी सँभाल हो गई है। सतगुरु आ गये हैं।’ फिर मैं तो आगरा चला गया। पीछे से सत्संगियों को कहता फिरता था कि आओ, मैं तुम्हें एकदम दसवें द्वार ले चलूँ।
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सो मतलब तो यह है कि कमाई का अहंकार करके आदमी गिर जाता है और अन्दर का रास्ता बन्द हो जाता है। यहीं शिष्य की आजमाइश का वक्त है। उसको भजन-सिमरन बन्द नहीं करना चाहिये और न ही अभाव लाना चाहिये। उसकी कमाई व्यर्थ नहीं जाती, शरीर छोड़ने के वक्त पूरी-पूरी सँभाल होती है।
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