* नाम की कमाई *
एक गांव में एक नौजवान को सत्संग सुनने का बड़ा शौक था।
किसी से पता चला कि गांव के बाहर नदी के उस पार परम संत तुलसी दास जी ने डेरा लगाया हुआ है और आज उनका शाम को 5:00 बजे का सत्संग का प्रोग्राम है।
वह नदी पार करके नौका के द्वारा सत्संग में पहुंच गया। प्रेमी था बड़े प्यार से सत्संग सुना और बड़ा आनंद माना।
जब जाने लगा थोड़ा अंधेरा हो गया। देखा तूफान बहुत ज्यादा था और बारिश के कारण नदी बड़े तूफान पर चल रही थी।
अब जितनी नौका वाले मल्हाह थे, सब डेरे में रुक गए! कोई नौका से आने जाने का साधन नहीं है। संत तुलसी दास जी के पास पहुंचा और बोला महाराज मेरी नई नई शादी हुई है, मेरी पत्नी भी इस गांव में अनजान है और घर में मेरे कोई नहीं है। मेरे पास गहना वगैरा बहुत है,नकदी भी है और हमारा गांव में चोर लुटेरे भी बहुत हैं तो किसी भी हालत में मुझे वहां जाना ही पड़ेगा। नहीं तो पता नहीं क्या हो जाएगा..?
संत तुलसी दास जी ने एक कागज पर कलम से कुछ लिखा और बिना बताए उस पेपर को फोल्ड किया और उसके हाथ में पकड़ा दिया और कहा इसको खोलकर मत देखना कि इसमें क्या लिखा है।जब नदी के पास पहुंचो तो नदी को मेरा संदेश देना।
जब नदी के किनारे पहुंचा देखा तूफान बड़े जोरों का है। इसने चिट्ठी नदी की ओर दिखाते हुए कहा यह संत तुलसी दास जी ने तुम्हारे लिए भेजी है।
इतना सुनते ही नदी बीच में से अलग हो गई और ज़मीन दिखने लगी। पैदल चलने के लिए। यह बड़ा हैरान हुआ। इसे अपनी आंखों पर विश्वास नहीं हुआ। इसने आंखें मलीं, सोचा कहीं मैं सपना तो नहीं देख रहा हूं? फिर पैदल नदी पार करने लगा।
मन में जिज्ञासा उठी, देखूं तो सही इस चिट्ठी में लिखा कया है ? जब उसने चिट्ठी खोली तो उसमें लिखा था “राम”।
बड़ा हैरान हुआ, इतने में नदी वापस भर गई और रास्ता बंद हो गया। यह दौड़कर फिर वापस किनारे पर आ गया।
उसी समय संत तुलसी दास जी के पास पहुंचा और संत तुलसी दास जी को सारी बात कहकर सुनाई तो संत तुलसी दास जी ने कहा-भाई मैंने पहले ही कहा था कि चिट्ठी खोलना नहीं। खैर उसी समय दूसरी चिट्ठी दी और कहा इस चिट्ठी को खोलना नहीं और वैसे ही करना।
यह बड़ा हैरान था। संत तुलसी दास जी से पूछा – महाराज चिट्ठी पर तो राम लिखा था, तो इसमें अलग क्या है? राम तो हर कोई लिखता है, पढ़ता है। तो संत तुलसी दास जी ने फरमाया एक राम वो है,जो लोग पढ़ते हैं,सुनते हैं, लिखते हैं और यह मेरा अपना राम है जो मैंने सारी जिंदगी “भजन सिमरन” करके कमाया है।
मित्रो, जो गुरु का दिया “नाम” है, वो आपको हर जगह मिल जाएगा लिखा हुआ लेकिन जो उन्होंने हमें दिया है उसमें ‘पावर’ है। वह उन्होंने कमाया है उनका निजी खजाना है और जब हम “भजन सिमरन” का अभ्यास रोज-रोज करते हैं तो इसी खजाने को बढ़ाते हैं।
हजूर फरमाया करते थे, ये जो संगत है, मेरी फुलवारी है। हर भजन करने वाले से मुझे खुशबू आती है। हमे भजन सिमरन करके इसे बढ़ाना है, पर हम अज्ञानी इसे बढ़ाने की बजाय संसारी वस्तुओं को बढ़ा रहे हैं जो सब यहीं रह जाएँगी।
राम राम करता सब जग फिरे राम ना पाया जाए