* पपीहे का पन *
कबीर साहिब एक दिन गंगा के किनारे घूम रहे थे। उन्होंने देखा एक पपीहा प्यास से बेहाल होकर नदी में गिर गया है। पपीहा स्वाति नक्षत्र में बरसने वाली वर्षा की बूँदों के अलावा और कोई पानी नहीं पीता। उसके चारों ओर कितना ही पानी मौजूद क्यों न हो, उसे कितने ही जोर की प्यास क्यों न लगी हो, वह मरना मंजूर करेगा, परन्तु और किसी पानी से अपनी प्यास नहीं बुझायेगा।
कबीर साहिब नदी में गिरे हुए उस पक्षी की ओर देखते रहे। सख्त गर्मी पड़ रही थी और वह प्यास से तड़प रहा था, पर उसने नदी के पानी की एक बूँद भी नहीं पी। उसे देख कर कबीर साहिब ने कहा:
जब मैं इस छोटे से पपीहे की वर्षा के निर्मल जल के प्रति भक्ति और निष्ठा देखता हूँ कि प्यास से मर रहा हैं। लेकिन जान बचाने के लिये नही का पानी नहीं पीता, तो मुझे सतगुरु के प्रति अपनी भक्ति तुच्छ लगने लगती है:
पपीहे का पन देख के, धीरज रही न रंच।
मरते दम जल का पड़ा, तोउ न बोड़ी चंच।।
अगर हर शिष्य को परमात्मा के प्रति पपीहे जैसी तीव्र लगन और प्रेम हो, तो वह बहुत जल्दी ऊँचे रुहानी मण्डलों में पहुँच जाये।