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Santmt ki Sakhiya in hindi/sadhe char tke

Sudhir Arora by Sudhir Arora
December 20, 2021
Reading Time: 1 min read
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Santmt ki Sakhiya in hindi/sadhe char tke

* साढ़े चार टके *

सत्ता और बलवंडा नामक दो मिरासी थे। ये गुरु अर्जुन साहिब के दरबार में राग-पाठ करते थे। उनके घर एक जवान लड़की थी, उसकी शादी का फिक्र हुआ। एक दिन गुरु साहिब से कहने लगे कि लड़की की शादी करनी है, कुछ माया चाहिये। गुरु साहिब ने कहा, ‘बहुत अच्छा।‘ यह कह कर सौ दो सौ रुपया देना चाहा लेकिन उन्होंने इनकार कर दिया और कहा कि आपके दरबार में दो-दो, चार-चार सौ शिष्य आते हैं, आपको क्या परवाह ? रुपयों की बोरियों के मुँह खोल दो। अब सन्तों के पास रुपया कहाँ ? जब गुरु साहिब ने जवाब न दिया तो मिरासी कहने लगे, ‘या हमें कम से कम एक टका प्रति शिष्य वसूल कर दो।‘
उनका ख्याल था कि गुरु साहिब के सिक्ख काबुल कंधार तक हैं, हमारे हजारों रुपये बन जायेंगे। लेकिन जब दूसरे दिन गुरु साहिब ने साढ़े चार टके आगे रख दिये, तो देख कर हैरान रह गये। गुरु साहिब ने उनकी हैरानी देखते हुए कहा, ‘पहले सिक्ख गुरु नानक साहिब, दूसरे सिक्ख गुरु अंगददेव, तीसरे सिक्ख गुरु अमरदास, चैथे सिक्ख गुरु रामदास जी, और आधा सिक्ख मैं हूँ।‘ इस पर वे दोनों नाराज होकर चले गये और अगले दिन सत्संग में नहीं आये। उनका विचार था कि अगर हम राग न करेंगे तो यहाँ कोई भी नहीं आयेगा। हम राग करते हैं, इसलिये लोग आते हैं। जब कोई नहीं आयेगा तो हमें जरूर मनायेंगे और खुश करेंगे। गुरु साहिब ने शिष्य के हाथ सन्देश भेजा कि आओ, कीर्तन करो, लेकिन वे न आये। दूसरा सन्देेश भेजा कि आओ कीर्तन करके संगत को खुश करो, हम आपको खुश कर देंगे, नहीं आये। तीसरा सन्देश भेजा, नहीं आये।
गुरु अर्जुन साहिब में सहिष्णुता और नम्रता कमाल की थी, जरा बुरा नहीं माना, बल्कि आप उनके घर गये, और उन्हें कहा कि जितना रुपया हमारे पास है ले लो, बाकी रुपया फिर सही। लेकिन रूठो नहीं और आकर कीर्तन करो। फिर भी वे न माने। उनको पक्का विश्वास हो गया कि हमारे बिना इनका काम नहीं चलता, इसलिये अब आप आये हैं। बोले कि अगर हम राग नहीं करेंगे तो दुनिया नहीं आयेगी, और साथ यह भी कहा कि जो आपके बड़े गुरु नानक जी थे उनको भी हमारे मरदाने ने बनाया था। इसी तरह गुरु नानक साहिब और अन्य गुरु साहिबान की निन्दा की। गुरु अर्जुन साहिब ने उन्हें कहा कि आप मेरी निन्दा जितनी मरजी हो कर लेते, परन्तु मेरे गुरु नानक साहिब और अन्य गुरु साहिबान की शान में गुस्ताखी के वचन नही कहने चाहिये थे। जाओ तुम भ्रष्ट हो गये। जो तुम्हारा मुँह देखेगा वह भी भ्रष्ट हो जायेगा। जो इनकी सिफारिश लेकर आयेगा उसे गधे पर सवार किया जायेगा, मुँह काला किया जायेगा और पीछे लड़के लगाये जायेंगे और गाँव-गाँव घुमाया जायेगा।
इधर गुरु साहिब ने और आदमी बुला कर कीर्तन करवा लिया। जब संगत को पता लगा तो संगत ने भी उन्हें दुत्कार दिया। मालिक की मौज। वे दोनों उसी वक्त बीमार हो गये, कोढ़ हो गया और शरीर से खून व पीप बहने लगा। जितना रुपया पास था, दवाइयों में र्खच हो गया। अब जिस शिष्य के पास जाते हैं वह मुँह नहीं लगाता। जो गुरु के द्वारा तिरस्कृत हो उससे कौन बोले! जिधर जाते, शिष्य दरवाजा बन्द कर लेते। जब सख्त परेशान हो गये तब भाई लद्धा के पास गये। लद्धा अपने परोपकार के लिये मशहूर था। उसको नीचे से आवाज लगाई, ‘लद्धा! लद्धा!! जैसे भी हो सके अब हमको बचाओ। दुनिया मे हमें कोई बरदाश्त करने वाला नहीं है।‘ जब लद्धा ने आवाज सुनी, उसने भी मुँह ढ़क लिया और दरवाजा बन्द करते हुए बोला कि गुरु के फटकारे हुए को कौन बरदाश्त करे! ज्ब उन्होंने बहुत विनती की और कहा कि गुरु की खातिर हमें बचाओ तो उसने कहा, ‘अच्छा, जो कुछ मुझसे हो सकेगा मैं करूँगा। अब तुम जाओ।‘ तब वे अपने घर चले गये।
भाई लद्धा ने एक गधा लिया। अपना मुँह काला किया, गधे पर सवार हो गया, पीछे लड़के लगवाये और गुरु साहिब की शर्त को पूरा करता हुआ, गाँव-गाँव फिरता हुआ अमृतसर आया। जब सारे शहर का चक्कर लगा कर गुरु साहिब के पास आया तो उन्होंने दूर से देख कर पूछा, ‘यह शोर कैसा है ?‘ संगत ने कहा कि जी! लद्धा गधे पर चढ़ा आ रहा है। जब पास आया तो अर्ज की, ‘सच्चे पातशाह! गुरु के धकेले हुए को कहीं ठिकाना नहीं, अगर कहीं ठिकाना हो तो बताओ।‘ गुरु साहिब दयाल हो गये और फरमाया, ‘ अच्छा उनको बुलाओ और कहो कि जिस मुँह से गुरु साहिबान की निन्दा की थी उसी मुँह से प्रशंसा करें।‘ वह सारी प्रशंसा गुरु ग्रन्थ में आई है। फिर भी उन्होंने यही कहा कि तू राम है, तू कृष्ण हैं, सन्तों की तारिफ करनी नहीं आई।
मतलब तो यह है कि सन्तों के द्वारा तिरस्कृत अथवा निकाले गये जीव को कोई स्थान नहीं, वह जाये तो कहाँ  जाये ? गुरु का हुक्म नहीं माना तो सजा पाई।

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