* संसार का मोह *
एक संत,एक सेठ के पास आए। सेठ ने उनकी बड़ी सेवा की। उनकी सेवा से प्रसन्न होकरए संत ने कहा. अगर आप चाहें तो आपको भगवान से मिलवा दूं ?
सेठ ने कहा. महाराज! मैं भगवान से मिलना तो चाहता हूँ, पर अभी मेरा बेटा छोटा है। वह कुछ बड़ा हो जाए तब मैं चलूँगा।
बहुत समय के बाद संत फिर आए बोले. अब तो आपका बेटा बड़ा हो गया है। अब चलें ?
सेठ. महाराज! उसकी सगाई हो गई है। उसका विवाह हो जाता घर में बहू आ जाती तब मैं चल पड़ता।
संत तीन साल बाद फिर आए। बहू आँगन में घूम रही थी। संत बोले. सेठ जी! अब चलें ?
सेठ. महाराज! मेरी बहू को बालक होने वाला है। मेरे मन में कामना रह जाएगी कि मैंने पोते का मुँह नहीं देखा। एक बार पोता हो जाए तब चलेंगे।
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संत पुनः आए तब तक सेठ की मृत्यु हो चुकी थी। ध्यान लगाकर देखा तो वह सेठ बैल बना सामान ढ़ो रहा था।
संत बैल के कान में बोले. अब तो आप बैल हो गए अब भी भगवान से मिल लें। सेठ. मैं इस दुकान का बहुत काम कर देता हूँ। मैं न रहूँगा तो मेरा लड़का कोई और बैल रखेगा। वह खाएगा ज्यादा और काम कम करेगा। इसका नुकसान हो जाएगा।
संत फिर आए तब तक बैल भी मर गया था। देखा कि वह कुत्ता बनकर दरवाजे पर बैठा था। संत ने कुत्ते से कहा. अब तो आप कुत्ता हो गए अब तो भगवान से मिलने चलो।
कुत्ता बोला. महाराज! आप देखते नहीं कि मेरी बहू कितना सोना पहनती है, अगर कोई चोर आया तो मैं भौंक कर भगा दूँगा। मेरे बिना कौन इनकी रक्षा करेगा ?
संत चले गए। अगली बार कुत्ता भी मर गया था और सेठ गंदे नाले पर मेंढक बने टर्र टर्र कर रहा था।
संत को बड़ी दया आई बोले. सेठ जी अब तो आप की दुर्गति हो गई। और कितना गिरोगे अब भी चल पड़ो।
मेंढक क्रोध से बोला. अरे महाराज! मैं यहाँ बैठकर अपने नाती पोतों को देखकर प्रसन्न हो जाता हूँ। और भी तो लोग हैं दुनिया में आपको मैं ही मिला हूँ भगवान से मिलवाने के लिए जाओ महाराज किसी और को ले जाओ। मुझे माफ करो।
संत तो कृपालु हैं बार बार प्रयास करते हैं। पर उस सेठ की ही तरह दुनियावाले भगवान से मिलने की बात तो बहुत करते हैं पर मिलना नहीं चाहते।