* सुलतान महमूद और चोर *
सुलतान महमूद प्रजा की हिफाजत के लिये रात को वेश बदल कर घूमता था। एक बार उसको पाँच चोर मिले। उसने पूछा कि आप कौन हो? उन्होंने जवाब दिया, हम चोर हैं। फिर उन्होंने पूछा कि आप कौन हो? महमूद ने कहा, मै भी एक चोर हूँ। उन्होंने बादशाह को अपने गिरोह में शामिल कर लिया। अब चोरी करने की सलाह हुई, लेकिन चोरी करने से पहले यह निश्चय हुआ कि हमको आपस में किसी को सरदार बनाना चाहिये। इस पर सब सहमत हो गये। सरदार चुनने के लिये जरूरी था कि सब अपना-अपना गुण बयान करें। जिसका गुण सबसे अच्छा हो, वही सरदार चुना जाये। पहले चोर ने कहा कि मैं कमन्द लगाता हूँ तो एक ही बार में रस्सी फँस जाती है। फिर चाहे सैंकड़ों आदमी चढ़ जायें। दूसने ने कहा कि मैं सेंध लगाता हूँ कि किसी को आवाज तक नहीं आती। तीसरे चोर ने कहा कि मैं सूँध कर बता सकता हूँ कि किस कमरे में कहाँ पर माल दबा हैं। चैथे ने कहा कि मैं कुत्तों की बोली समझ सकता हूँ कि वह क्या कहते हैं। पाँचवें ने कहा कि जिसको रात को मैं एक बार देख लूँ, दिन को पहचान लेता हूँ। बादशाह सोच रहा था कि मैं क्या बताऊँ ? जब सारे चोर अपनी-अपनी विशेषता बता चुके तब बादशाह ने कहा कि मेरी दाढ़ी में यह विशेषता है कि चाहे कितने ही गुनाह वाले चोर-डाकू फाँसी चढ़ रहे हो, जरा दाढ़ी हिला दूँ सब आजाद हो जाते हैं। चोरों ने जब बादशाह का यह गुण सुना तो उसको अपना सरदार बना लिया। नजदीक ही महमूद का महल था। यह सलाह हुई कि अपने बादशाह का महल तोड़ो। मजबूरन बादशाह भी मान गया। जब महल को चले, रास्ते में एक कुत्ता भौंका, चोरों ने चैथे चोर से पूछा कि यह क्या कहता है ? उसने कहा कि कुत्ता कहता है कि इनमें से एक बादशाह है। सब जोर से हँस पड़े, बादशाह भी हँस पड़ा। महल में पहुँच कर पहले चोर ने कमन्द लगाई, जो तुरन्त लग गई। सारे चोर और बादशाह ऊपर चढ़ गये। दूसरे ने सेंध लगाई। तीसरे ने सूँघ कर खजाने का पता बता दिया। माल की गठरियाँ बाँध कर नीचे आ गये और अपनी जगह पहुँच कर चोरी का माल बाँट लिया और अपने-अपने घरों को चले गये।
अगले दिन बादशाह ने अपने आदमी भेज कर चोरों को पकड़वा लिया और फाँसी का हुक्म दे दिया। जब फाँसी चढ़ने लगे तो पाँचवा चोर सामने आया। अर्ज की कि बादशाह सलामत! अब तो दाढ़ी हिला दो। हम सच्चे दिल से वायदा करते हैं कि आज से चोरी का पेशा छोड़ा और अपने आप को हुजूर की सेवा में सारी उमर के लिये पेश करते हैं। बादशाह को दया आ गई। उसने दाढ़ी हिला दी। दाढ़ी का हिलना था कि पाँचों चोर तख्ते से नीचे उतार लिये गये। उनकी हथकड़ियाँ और बेड़ियाँ काट दी गई और वे हमेशा के लिये आजाद होकर बादशाह की सेवा में रहने लगे।
इसी तरह मालिक वेश बदल कर और हमारे जैसा बन कर हमारे जैसे चोरों, ठगों, अफीमचियों को सीधे रास्ते पर ले आता है। वह कहता है कि इस रास्ते चलो। तात्पर्य यह कि जीवों के उद्धार के लिये सन्तों को सब कुछ करना पड़ता है।