* अब मैं परमात्मा को मानता हूँ *
मेरा ( श्री हुजूर महाराज बाबा सावनसिंह जी का ) देखा हुआ वाकया है जब मैं मरी पहाड़ पर बतौर सब-डिवीजनल अफ़सर काम करता था। उनदिनों बाबू गज्जासिंह मेरे साथ थे। वहाँ एक लीडर आया जो परमात्मा को नहीं मानता था। इसलिये वहाँ उसको न मुसलमान रहने देते थे न हिन्दू। वह बड़ा दुखी हुआ। बाबू गज्जासिंह को पता लगा, वह मेरे पास आये और कहा कि एक सज्जन आये हैं जिनको लोग रहने नहीं देते। मैंने कहा कि उसको बुलाओ।
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वहाँ एक असिस्टेण्ट मैडिकल अफसर था जो सम्मोहन के द्वारा इलाज करता था, वह लीडर उसके पास इलाज कराने के लिये आया था। जब वह लीडर मेरे पास आया तो मैंने पूछा कि तुम्हें इलाज करवाने के लिए क्या चाहिये? वह बोला, “जी! एक कुर्सी, एक मेज और बरामदा।” उसको ये चीजें दे दी गई। बातचीत से पता लगा कि वह काठियावाड़ का एक बहुत बड़ा पण्ड़ित था़। परमार्थी खयाल रखता था और परमात्मा की तलाश में निकला था, लेकिन परमात्मा न मिला; किसी ऐसे समाज के हाथों में फँस गया जिसने साबित कर दिया कि परमात्मा नहीं हैं।
बड़े महाराज जी उन दिनों अकसर दौरो पर जाते रहते थे। उनके पीछे बाबू गज्जासिंह सत्संग करते थे और वह सत्संग में आया करता था। काफी समय सत्संग सुनता रहा, आखिर एक दिन बड़े महाराज जी से कहने लगा, “मुझे नाम दे दो।” आपने इस बात का कोई उत्तर नहीं दिया था, बल्कि कई दिन इसी तरह खामोशी में बिता दिये। उसने एक दिन बोला, जी! आप मजदूरों को रोजाना क्या मजदूरी देते हैं ? आपने कहा कि चार आने। उसने कहा, मैं तीन आने ले लूँगा, मुझे मजदूरों में शामिल कर लो। उसी बीच में वह बीमार हो गया। आपने उस जैसे विद्वान और श्रेष्ठ पुरुष को मजदूरों में तो क्या शामिल करना था, कह दिया जब तू ठीक होगा नाम दे दूँगा। आखिर वह बिना नाम लिये सोलन चला गया।
कुछ समय बाद मुझे सोलन से उसकी चिटठी आई, लिखा था कि मुझे उम्मीद नहीं कि मेरी चिटठी पहुँचे, खैर ! अब मैं परमात्मा को मानता हूँ। मालूम नहीं कि मौत के वक्त वह मेरी सँभाल करेगा कि नहीं ? बड़े महाराज जी ने उत्तर में लिखा, वह सबके अन्दर है, तेरे अन्दर भी है और तेरी सँभाल भी करेगा।
कहने का भाव है कि एक जो एक बार परमात्मा के रास्ते पर चल पड़ा परमात्मा हमेशा उसकी सँभाल करता हैं।
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