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Santmt ki Sakhiya in hinid/ Foji Afsar ke karm

Sudhir Arora by Sudhir Arora
January 2, 2022
Reading Time: 1 min read
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Santmt ki Sakhiya in hinid/ Foji Afsar ke karm

*  फ़ौजी अफ़सर के कर्म  *

जब बड़े महाराज जी रावलपिंडी में थे तो वहाँ उनके एक दोस्त ने यह वृत्तान्त सुनाया:
एक फौजी अफसर रिसाले में नौकर था। काबुल की ओर पठानों ने कुछ फसाद को रोकने के लिये उस दस्ते को हुक्म दिया जिसमें वह सिपाही था। जब वह वहाँ गया तो वहाँ दोनों तरफ से गोलियाँ चल रही थीं। उस सिपाही की घोड़ी मुँहजोर हो गई। बहुत रोका, लेकिन जबरदस्ती उसको दुश्मन की फौेज में ले गई। पठानों ने पाँच-छः गोलियाँ घोड़ी को मार दीं, पाँच-छः गोलियाँ फौजी अफ़सर को मार दीं। दोनों मर गये।
फौज का यह नियम था कि फोजी दस्ते के राशन का ठेका बनिये के पास होता था। उस सिपाही के कोई बाल-बच्चा नहीं था, उसके जो नकद पैसे थे वह बनिये के पास अमानत रखे थे। जिस वक्त उसकी मौत हुई, सरकार ने उसके वारिसों को सूचना दे दी। उन्होंने आकर तनखाह और सामान वगैरह ले लिया। उसका सारा हिसाब खत्म करके ले गये। लेकिन जो दो हजार रुपया बनिये के पास जमा था, उसका वारिसों को पता नहीं था। बनिये ने उसको अपने हिसाब में शामिल कर लिया।
कुछ नियत समय के बाद बनियों के ठेके बदल दिये जाते हैं। अतएव जब उस बनिये का समय खत्म हो गया तो वह घर आ गया और दुकान खोल ली। उसके लगभग बीस साल बाद महाराज जी का वह मित्र हरिद्वार गया। उसके साथ कुछ और दोस्त भी थे। वापस आते समय सहारनपुर में उसकी उस बनिये से मुलाकात हो गई।
बनिये ने पहचान लिया क्योंकि रावलपिंडी में उससे माल खरीदने के कारण काफी पहचान हो गई थी। उसने रात ठहरने के लिये मजबूर किया कि एक तो आपकी रात आराम से बीत जायेगी, दूसरे आपको सहारनपुर दिखा दुँगा। वे वहाँ ठहर गया।
रात को उसने बड़े तकल्लुफ का खाना बनाया और परोस कर उनकेआगे रख दिया। जब वे खाने लगा तो नजदीक ही एक औरत की रोने-चीखने की आवाज आई। उन्होंने बनिये से पूछा कि कौन औरत रो रही है ? उसने कहा कि आप खाना खाओ। आपको इससे क्या गरज ! उन्होंने कहा कि पहले मुझे बात बताओ, खाना फिर खाऊँगा। मजबूरन बनिये को बताना पड़ा। उसने बताया कि यह मेरी विधवा पुत्र-वधू है। कुछ दिन हुए मेरा लड़का मर गया। उसको याद करके रोती है। उन्होंने कहा, ओ हो! तेरे लड़के की मौत हुई है और तू इतने तकल्लुफ का खाना खिला रहा है! कुछ बातचीत के बाद बनिये ने कहा कि सुनो, मैं आपको सारा वाकया पूरी तरह बताता हूँ। बीस साल हुए जब मैं रावलपिंडी से ठेका छोड़ कर आया था तो आकर शादी की, उसके साल बाद मेरे घर लड़का पैदा हुआ। उसे पाला-पोसा, पढ़ाया-लिखाया। उसकी शादी की। शादी के बाद वह बीमार हो गया। बड़े-बड़े हकीम व डाक्टर उसके इलाज के लिये बुलाये लेकिन दिनों-दिन उसकी हालत गिरती गई। आखिरकार डाक्टरी और वैद्यक दवाइयों से निराश हो गया तो एक मुल्ला को दम करने के लिये लाया। उसने दम किया। उस वक्त ढाई रुपये मेरी जेब में थे, वह दे दिये, तथा और देने का यकीन दिलाया।जिस वक्त ढाई रुपये दे दिये, लड़का हँस पड़ा। मुल्ला ने कहा मैं इसको बिलकुल ठीक कर दूँगा। मेरे एक बार ही दम करने से इसकी हालत अच्छी हो गई है। जब मुल्ला चला गया तो मैंने अपने लड़के से पूछा बेटा अब तुझे आराम हो गया है ? लड़के ने जवाब दिया, हाँ! अब मुझे पक्का आराम हो गया है। तब मैंने पूछा, पक्का आराम क्या ? लड़के ने कहा, बीस साल हुए, मैं सेना की नौकरी के दौरान तुम्हारे पास दो हजार रुपये छोड़ कर फौजी हमले में मारा गया था। अब मैंने तुमसे सब रुपये वसूल कर लिये है। केवल ढाई रुपये बाकी थे, जो तुमने अभी दे दिये हैं। वह जो मेरी औरत है यह वह घोड़ी है जो मुँहजोर होकर मुझे दुश्मन की फौज में ले गई थी। जिस तरह इसने मुझे मरवाया था, इसके बदले मैं इसको सारी उमर के लिये विधवा छोड़ चला हूँ।

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यह वृत्तान्त सुना कर बनिये ने कहा, अब मर गया फौजी , रोती है घोड़ी। मैं किसको रोऊँ ? रोऊँ घोड़ी को कि फौजी को ? मैं क्यों रोऊँ। आप अपना खाना खाओ।
सो यह कुटुम्ब, परिवार, रिश्तेदार कर्मों के हिसाब के अनुसार होते हैं। ज्यों-ज्यों कर्मों का हिसाब खत्म होता जाता है, त्यों-त्यों सम्बन्ध टूटते जाते हैं और हम सब बिछुड़ते जाते हैं।

* राधा स्वामी जी  *

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