* माँ की शिक्षा *
कहा जाता है कि जब प्राचीन भारत के एक राजा गोपीचंद ने दुनिया की ऐशो-इशरत से तंग आकर अपना राज्य छोड़ दिया और गोरखनाथ के पास योगी बनने के लिए चला गया तो गोरखनाथ ने उसे योग में दीक्षा दे दी। मगर यह सोच कर कि यह राजा है, इसके अन्दर लोक-लाज है, जो परमार्थ में बड़ी भारी दीवार है और जिसे दूर करना जरूरी हैं, उसने हुक्म दिया, बच्चा! पहले अपने शहर में ही जाकर भिक्षा माँग। अब राजा होकर अपने शहर में जाकर भिक्षा माँगना-अपनी प्रजा! अपने आदमी!! कोई छोटी सी बात नहीं। हम कह लेते हैं लेकिन व्यवहार में लाना कोई छोटी बात नहीं।
जब शहर में गया, लोगों ने देखा कि यह राजा है। जिसे पैसा देना था उसने रुपया दिया। गोपीचन्द उसे अपने साथ के योगी को देता गया और योगी गुरु के पास पहुँचाते गये। शहर में माँग कर फिर रानियों के पास गया। उन्होंने देखा कि यह तो राजा है, जो अच्छे कपड़े और गहने थे, सब योगी को दे दिये कि अब राजा के बिना ये सब हमारे किस काम के। सबसे बाद में गोपीचन्द ने मां के दरवाजे पर जाकर अलख जगाई।
मां ने देख कर कहा, योगी! मैं गृहस्थी हूँ; तू त्यागी पुरुष है। गृहस्थी का धर्म नहीं कि त्यागी को उपदेश दे लेकिन इस समय तू मेरे दरवाजे पर माँगने आया है, मुझे अधिकार है कि मैं जो चाहूँ भिक्षा दूँ! जो कुछ तू माँग कर लाया, यह तो योगी लोग खा जायेंगे, तेरे पास तो कुछ नहीं रहेगा। इसलिये मैं तुझे ऐसी भिक्षा नहीं देती, बल्कि तीन बातों की खैर डालती हूँ। पहली बात तो यह है कि रात को मजबूत से मजबूत किले में रहना। दूसरी बात यह है कि स्वादिष्ट से स्वादिष्ट भोजन खाना और तीसरी यह कि नरम से नरम बिस्तरे पर सोना।
यह सुन कर योगी बोला, मां! तेरे उपदेश से मैं साधू हुआ हूँ, लेकिन अब तू मुझे क्या उलटा उपदेश दे रही है। अगर कोई और स्त्री यह कहती तो मैं कहता कि यह पागल है। देख मां! जंगलो में मजबूत किले और स्वादिष्ट भोजन कहाँ होते हैं ? इसी तरह नरम बिछौने कहाँ ? वहाँ तो सूखे टुकड़े खाने पड़ते हैं। घास पर लेटना पड़ता है। मां ने उत्तर दिया, योगी! तूने मेरा मतलब नहीं समझा।
गोपीचन्द द्वारा मतलब पूछने पर उसने कहा, मेरा मतलब यह है कि तू दिन-रात जागना, अभ्यास करना। जिस वक्त तुझे नींद तंग करे, गिरने लगे तो वहीं सो जाना, चाहे नीचे काँटे हों या कंकर, वही नरम से नरम बिछौना होगा। तुझे ऐसी नींद आयेगी जैसी कभी फूलों की सेज पर भी नहीं आती होगी। दूसरे, जहाँ तक हो सके, थोड़ा खाना और भूखे रहना। जब भूख से प्राण तड़प् उठें, प्राण निकलने लगें, तो रूखा-सूखा, बासी, जैसा भी टुकड़ा मिले, खा लेना। उस वक्त सात दिनों का सूखा टुकड़ा भी तूझे हलवे और पुलाव से बढकर स्वादिष्ट लगेगा। तीसरे, तू राज्य छोड़कर योगी हुआ है। तेरे पास जवान स्त्रियों को भी आना है, वृद्ध और कम अवस्था की स्त्रियों भी आना है। गुरु की संगति से बढ़कर और कोई मजबूत किला नहीं है। अगर गुरु की संगति के वचनों से मन को ठोकर लगती रहती है, मन सीधा रहता है। बस! मैं तुझे इन तीनों बातों की भिक्षा देती हूँ और कुछ नहीं।
मां की शिक्षा पाकर गोरखनाथ धन्य हो गया और अपने गुरु चरणों में लोट गया।