* पीर की जूती का मोल *
अमीर खुसरो, निजामुद्दीन औलिया का शागिर्द और काबुल के हाकिम का मुलाजिम था। बड़ा कमाई वाला भक्त था। किसी बात पर उसकी हाकिम से अनबन हो गयी और उसने नौकरी छोड़ दी। उन दिनों पक्की सड़कें नहीं होती थीं। उसने अपना सामान ऊँटों पर लदवाया और मुर्शिद के दर्शनों के लिए दिल्ली की ओर चल पड़ा।
उधर एक गरीब आदमी हजरत निजामुद्दीन औलिया के पास गया और कहा कि मेरी लड़की की शादी हैं, मैं गरीब हूँ, कुछ दो। अब फकीरों के पास क्या होता है, उनका लंगर ही मुश्किल से चलता था। इसलिए उन्होंने कहा कि तीन दिन तक ठहर जा, जो भेंट आयेगी तू ले जाना। मालिक की मौज! उस दिन कुछ न आया। दूसरे दिन भी कुछ न आया और तीसरे दिन भी कुछ न आया। यह देखकर वह गरीब आदमी बोला, हजरत! अब मैं जाता हूँ। मेरी किस्मत में ही कुछ नहीं है। तब निजामुद्दीन ने कहा, अच्छा! यह जूती ले जा। मेरे पास तो बस एक यही वस्तु है। तुम इसे बेचकर कम से कम एक दिन के लिए खाने की सब सामग्री खरीद सकते हो। उसने टूटे हुए दिल से पीर का धन्यवाद किया, जूती ले ली और घर की ओर चल पड़ा।
जब वह थका हुआ धूल भरे कच्चे रास्ते पर अपने घर को जा रहा था, तो उसने देखा कि सामने कीमती सामान से लदे हुए ऊँटों का एक काफिला आ रहा है। यह अमीर खुसरो का काफिला था जो काबुल के हाकिम की नौकरी से सेवा-मुक्त होकर आ रहा था। ऊँट की सवारी करता हुआ, अमीर खुसरो काफिले की अगुआई कर रहा था। जब वह उस गरीब आदमी के पास पहुँचा तो उस महसूस हुआ कि कहीं से पीर की खुशबू आ रही है, पता नहीं कहाँ से आ रही है। जब वह आदमी सामने से आकर उसके पास से गुजर गया, तो खुशबू पीछे की ओर से आनी शुरू हो गयी। वह हैरान हो गया। समझ गया कि इस आदमी के पास कोई भेद है। ऊँट से नीचे उतरकर उसे बुलाकर पूछा, तू कहाँ से आया है ? उसने जवाब दिया कि दिल्ली गया था, निजामुद्दीन औलिया के पास! गरीब हूँ, लड़की की शादी है। मैंने कहा, कुछ दो। लेकिन फकीर भूखे, नंगे होते हैं। जब खुदा कुछ न दे तो फकीर भी कुछ नहीं देते।
अमीर खुसरो प्रेमी शिष्य था, इस बात से उसके दिल को ठेस लगी और पूछा, कुछ दिया भी ? मुसाफिर ने कहा, हाँ, यह पुरानी जूती दी है। अमीर खुसरो ने कहा कि क्या इसे बेचना चाहते हो ? मैं तुझे इसकी मुँह-माँगी कीमत दे सकता हूँ। उसने जवाब दिया, हाँ, ले लो। मैंने तो इसे अगले गाँव में किसी को बेचकर कुछ खाने के लिए लेना था क्योकि मुझे भूख लगी हुई है। अमीर खुसरो ने एक ऊँट अपना और एक अपनी स्त्री तथा बच्चों को रख लिया, बाकी सारे ऊँट, माल-असबाब समेत उसको दे दिये और कहा, जा! लड़की की शादी कर लेना।
मुसाफिर खुसरो का बार-बार शुक्रिया अदा करता हुआ माल से लदे ऊँट लेकर चला गया। इधर जब अमीर खुसरो अपने पीर के दरबार में पहुँचा तो जूती झाड़कर आगे रख दी। पीर ने पूछा इसका मोल क्या दिया है ? खुसरो ने अर्ज की, हजरत! मैं जो कुछ भी दे सकता था, सब दे दिया है। निजामुद्दीन ने कहा, फिर भी सस्ती है। उसके बाद अमीर खुसरो के इश्क को देखकर निजामुद्दीन ने यहाँ तक कह दिया था कि खुसरो को मेरी कब्र पर न आने देना, कहीं ऐसा न हो कि उसे मिलने के लिए मेरी कब्र फट जाये। यह अवस्था प्रेमियों की है। कबीर साहिब का कथन है:
सीस दिये जो गुरु मिलें, तो भी सस्ता जान।।