* संतों के सामने घमंड *
शेख़ फ़रीद को बहुत कम आयु में ही रूहानियत की गहरी लगन थी। उन्होंने ख़्वाजा मुईनुद्दीन चिश्ती का नाम सुना हुआ था जो राजस्थान के एक शहर अजमेर में रहते थे। उनसे दीक्षा लेने जब वे अजमेर पहुँचे तो देखा कि वे एक सूखे पेड़ का सहारा लेकर बैठे हैं।
फ़रीद को इस बात पर बहुत हैरानी हुई कि एक कामिल फ़कीर ने पेड़ का सहारा लिया हो और वह पेड़ फिर भी सूखा हो! उन्होंने अपनी योगशक्ति का प्रयोग करते हुए सूखे पेड़ पर दृष्टि डाली और वह एकदम हरा हो गया। ख़्वाजा साहिब ने यह सब देखा और पेड़ पर नज़र डाली, वह फिर पहले की तरह सूख गया। फ़रीद नहीं चहाता था कि पेड़ इसी तरह सूखा रहे। उन्होंने एक बार फिर उसे हरा कर दिया और ख़्वाजा साहिब ने पल-भर में उसे वापस उसी हालत में पहुँचा दिया। ख़्वाजा साहिब फ़रीद की ओर मुड़े और बोले, ’बेटा, तुम यहाँ रूहानी राज़ जानने और मालिक से मिलाप करने के लिए आये हो या कुदरत के क़ानूनों में दखल देने के लिए ? परमात्मा के हुक्म से ही यह पेड़ सूख गया है। तुम क़ुदरत की व्यवस्था में दखल देकर इस पेेड़ को बार-बार हरा क्यों करना चाहते हो ? जाओ, अब तुम दिल्ली में कुतुबुद्दीन बख़्तियार काकी के पास जाओ। वही तुम्हारे मन की हालत देखकर तुम पर बख़्शिश करेंगे।
हुक्म के अनुसार फ़रीद दिल्ली पहुँच गये। वहाँ पहुँचकर क्या देखते हैं कि क़ुतुबुद्दीन, जो उस समय अभी बालक ही थे, अपने साथियों के साथ खेल रहे हैं। कुछ देर तक संदेहपूर्ण दृष्टि से फ़रीद उन्हें देखते रहे, फिर अपने मन में सोचा, यह नादान बालक भला मुझे क्या शिक्षा देगा!
हज़रत कुतुबुद्दीन देखने में तो बालक थे, लेकिन उनकी रूहानी अवस्था ऊँची थी। खेल छोड़कर वे पास की कोठरी में गये और एक मिनट बाद ही सफ़ेद लंबी दाढ़ी वाले बुजु़र्ग के रूप् में बाहर आ गये और कहने लगे, ’अब तो तुम्हारा मुर्शिद बनने के लिए मैं पूरा बुज़ुर्ग और समझदार दिखायी देता हूँ ? फ़रीद को अपनी अज्ञानता और अहंकार का एहसास हो गया और शर्म से उनकी गर्दन झुक गयी। घुटनों के बल गिरकर उन्होंने अपनी भूल स्वीकार की और दया की भीख माँगी। फिर उनकी संगति में रहकर उनके सच्चे शिष्य बने और समय बीतने पर ख़ुद कामिल फ़क़ीर बने।
संतों की संगति का लाभ प्राप्त करने के लिए दीनता और नम्रता आवश्यक है।
* फटा कुर्ता *
हज़रत यूसुफ़ जिसको बाइबल में जोसफ़ कहा गया है, बहुत सुंदर और बुद्धिमान था। उसके बड़े भाई उससे ईष्या करते थे। दरअसल वे उससे घृणा करते थे क्योंकि वह बचपन से ही हर क्षेत्र में उनसे आगे रहता था। इस ईष्या के कारण उन्होंने एक योजना बनायी कि उसे एक गुलामों के व्यापारी के पास बेच दिया जाये। उस व्यापारी ने उसे खरीदकर, एक बड़ी रकम लेकर उसे मिस्र के बादशाह के पास बेच दिया।
उस बादशाह की बेगम का नाम था जुलेख़ा। हज़रत यूसुफ़ की शक्ल देखकर वह उस पर मोहित हो गयी। एक दिन वह हज़रत यूसुफ़ को अपने महल के अन्दर ले गयी, बाहर से दरवाजे़ बंद कर दिये और अपना बुरा विचार प्रकट किया। अब हज़रत यूसुफ़ ने सोचा कि एक ओर तो मेरा ईमान जाता है और मालिक की दरगाह से सजा मिलती है, दूसरी ओर वह बादशाह की बेगम है, अगर इसका कहना नहीं मानता तो यह मुझ पर झूठा इलजाम लगाकर सुबह मुझे मरवा देगी, इसलिए मैं करूँ तो क्या करूँ ? यह सोच ही रहा था कि जु़लेख़ा ने वहाँ पड़ी पत्थर की मूर्ति पर कपड़ा डालकर उसे ढक दिया।
वह पत्थर की मूर्ति की पूजा किया करती थी। हज़रत यूसुफ़ ने देखा तो पूछा, यह क्या है ? उसने कहा, यह मेरा देवता है। मैं इसकी पूजा करती हूँ, इसलिए परदा डाला है ताकि यह देख न ले।’
हज़रत यूसुफ़ ने कहा, ’जिसकी तू पूजा करती है उसके ऊपर तो कपड़ा डाल दिया, वह तो अब नहीं देखता, लेकिन जो मेरा ख़ुदा है वह तो हर जगह मौजूद है, सब कुछ देखता है। यह कहकर वह बाहर की ओर भागा। जुलेख़ा ने पीछे से कुर्ता पकड़ा, कुर्ता फट गया, लेकिन वह दौड़कर बाहर निकल गया।
जुलेख़ा ने अपने पति बादशाह से शिकायत की कि यूसुफ़ ने मुझे छुआ है, यह बदमाश है, इसे फाँसी पर चढ़ा दो। बादशाह दुविधा में पड़ गया कि रानी की बात का यक़ीन करे कि उस सुंदर गुलाम का। इसलिए उसने तहक़ीक़ात की। यूसुफ़ से पूछा। उसने सच-सच बता दिया। फिर बादशाह ने अपने अमीरों, वज़ीरों से सलाह ली, तो उन्होंने कहा कि इसका एक ही पक्का सबूत है। बादशाह नें पूछा कि वह क्या ? उन्होंने कहा कि अगर कुर्ता आगे से फटा है तो यूसुफ़ की ग़लती है, अगर पीछे से फटा है तो यूसुफ़ भागा है और जुलेख़ा ने कुर्ता पकड़ा है, तब फटा है। जब देखा, पता चला कि उसका कुर्ता पीछे से फटा हुआ था। अब जुलेख़ा की शर्मनाक हरकत साबित हो गयी और हज़रत यूसुफ़ को छोड़ दिया गया।
अगर हमारे अंदर यह ख़याल पक्का हो जाये कि वाकई ख़ुदा हर जगह हाज़िर-नाज़िर है, तो दुनिया में बहुत से बुरे कर्मों में कमी हो जाये।